अपनी सास की सेवा न करने वाली एक महिला के मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बड़ी टिप्पणी की है। न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति डोनादी रमेश की पीठ ने मुरादाबाद के एक पुलिस अधिकारी द्वारा दायर तलाक याचिका पर कहा, “यदि कोई महिला अपनी सास की सेवा नहीं करती है, तो इसे क्रूरता नहीं कहा जा सकता है।” ऐसी बातें व्यक्तिगत होती हैं। कोर्ट सभी घरों की स्थिति की विस्तृत जांच नहीं कर सकता। यह कोर्ट का काम नहीं है।’
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि पुलिस में कार्यरत होने के कारण वह हमेशा घर से दूर रहता था। उसकी पत्नी अपने सास-ससुर की सेवा का नैतिक कर्तव्य नहीं निभाती। जिस पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा, ‘ऐसे आरोप व्यक्तिपरक हैं. पति के घर से दूर रहने पर माता-पिता की देखभाल न करना क्रूरता नहीं कहलाती। पति द्वारा पर्यवेक्षण का स्तर कभी स्थापित नहीं किया गया है। महिला के खिलाफ तलाक सहित आरोप तय करने के लिए पति द्वारा अमानवीय या क्रूर व्यवहार की कोई दलील नहीं है। अगर कोई महिला अपने पति के घर से दूर रहने पर अपनी बुजुर्ग सास की देखभाल करने में विफल रहती है, तो इसे कभी भी क्रूरता नहीं कहा जा सकता।’
हाईकोर्ट ने की याचिका खारिज
क्रूरता का निर्धारण करते समय सभी झगड़ों को निष्पक्षता से तौला जाना चाहिए। इससे पहले याचिकाकर्ता ने क्रूरता के आधार पर मुरादाबाद की फैमिली कोर्ट में तलाक की अर्जी दी थी, लेकिन कोर्ट ने अर्जी खारिज कर दी थी। इसके बाद याचिकाकर्ता ने मुरादाबाद कोर्ट के फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में अर्जी दाखिल की. याचिकाकर्ता काम के कारण घर से दूर था और उसे उम्मीद थी कि पत्नी अपने माता-पिता के साथ रहेगी। इस मामले पर संज्ञान लेते हुए कोर्ट ने याचिकाकर्ता की दलील को निराधार बताते हुए याचिका खारिज कर दी है।

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