जब-जब ये धरती मातृभूमि के सपूतों को याद करती है, तब-तब एक नाम बड़े गर्व से लिया जाता है—भगत सिंह।”वो एक ऐसा नाम है जो आज भी हर देशभक्त के दिलों में धड़कता है, एक ऐसी आवाज़ जो क्रांति की चिंगारी बनकर गूंजती है।
कहानी शुरू होती है, लाहौर की गलियों से
लाहौर की तंग गलियों में 23 साल का एक नौजवान हँसते-हँसते फांसी के फंदे की ओर बढ़ रहा था। उस दिन सिर्फ वो नहीं मरा था, बल्कि गुलामी की जंजीरों में जकड़ी हर उम्मीद ने खुद को आजाद महसूस किया था। भगत सिंह ने सिर्फ गोली-बंदूक से लड़ाई नहीं लड़ी, उन्होंने अपनी कलम से भी इंकलाब की जंग छेड़ी। उनकी एक-एक बात, एक-एक शब्द आज भी इंसान को अंदर से झकझोर कर रख देता है।
शुरुआत कैसे हुई?
कहते हैं, जब भगत सिंह ने जलियांवाला बाग का नरसंहार देखा, तो उनके दिल में क्रांति की मशाल जल उठी। उस दिन उन्होंने ठान लिया था कि वो सिर्फ आजादी के लिए नहीं, बल्कि आत्मसम्मान के लिए भी लड़ेंगे। वो जानते थे कि ये लड़ाई आसान नहीं होगी, पर उनके इरादे पहाड़ जैसे अडिग थे।”इंकलाब जिंदाबाद”—ये सिर्फ नारा नहीं था, ये उनका जीवन मंत्र था। जब उन्होंने असेम्बली में बम फेंका, उनका मकसद किसी की जान लेना नहीं था, बल्कि ब्रिटिश हुकूमत की नींव को हिलाना था। वो कहते थे, “अगर बहरों को सुनाना है, तो आवाज़ को बहुत ऊंचा करना होगा।”
फांसी का दिन
भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा सुनाई गई। 23 मार्च 1931 का वो दिन—जब देश के लाखों दिलों ने एक साथ धड़कना बंद कर दिया। लेकिन क्या भगत सिंह डरे थे? नहीं, उन्होंने मुस्कराते हुए कहा, “मुझे फांसी का डर नहीं, मुझे इस बात का गर्व है कि मैं अपने देश के लिए मर रहा हूं।”उन्होंने अपनी आखिरी इच्छा में कोई जश्न, कोई उत्सव नहीं मांगा, बस एक किताब और एक कलम की मांग की। उनका मानना था कि बंदूकें क्रांति नहीं लातीं, क्रांति विचारों से आती है। और उनके विचार आज भी हमारी नसों में दौड़ते हैं।
ये कहानी सिर्फ भगत सिंह की नहीं
ये कहानी हर उस युवा की है, जिसने अपने जीवन को देश के नाम कर दिया। भगत सिंह आज भी हमें सिखाते हैं कि आजादी सिर्फ भौतिक नहीं होती, ये मानसिक होती है। जब हम अन्याय के खिलाफ बोलने का साहस करते हैं, जब हम सच का साथ देने का संकल्प लेते हैं—तब हम भगत सिंह के विचारों को जीवित रखते हैं।आज भगत सिंह की जयंती पर हमें सिर्फ उनका सम्मान नहीं करना है, बल्कि उनके आदर्शों को अपनाना है। ये दिन हमें याद दिलाता है कि जब तक अन्याय रहेगा, तब तक भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों की ज़रूरत होगी।
तो आइए, इस भगत सिंह जयंती पर हम सब मिलकर वो संकल्प लें, जो उन्होंने लिया था—
“इंकलाब जिंदाबाद!”ये सिर्फ एक नारा नहीं, ये हमारी धड़कनों का हिस्सा होना चाहिए। जब-जब कोई अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाएगा, भगत सिंह का नाम उस आवाज़ में गूंजेगा। और जब तक ये आवाज़ जिंदा है, तब तक देश के हर कोने में भगत सिंह की क्रांति की चिंगारी जलती रहेगी।जय हिंद!
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