CATEGORIES

May 2025
M T W T F S S
 1234
567891011
12131415161718
19202122232425
262728293031  
Wednesday, May 7   12:44:00
pakistan balochistan (1)

बलूचिस्तान: पाकिस्तान का अनसुलझा घाव

किसी भी देश के लिए यह बेहद कठिन स्थिति होती है जब उसका कोई क्षेत्र खुद को उस देश का हिस्सा नहीं मानता और देश भी उस क्षेत्र को पूरी तरह अपनाने में असमर्थ होता है। ऐसी ही स्थिति पाकिस्तान के बलूचिस्तान की है। पिछले 77 सालों में, न तो बलूचिस्तान ने पाकिस्तान को अपनाया है और न ही पाकिस्तान ने बलूचिस्तान को। यह क्षेत्र आज भी अपने स्वतंत्र अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है, जबकि पाकिस्तान की सेना वहां की जनता की आवाज़ को बलपूर्वक दबाने में लगी हुई है। हाल के दिनों में, बलूचिस्तान में हिंसा और दमन अपने चरम पर पहुंच गए हैं।

यह तर्क दिया जा सकता है कि यदि किसी देश के भीतर चल रहे अलगाववादी आंदोलनों को महत्व दिया जाए, तो उस देश की अखंडता खतरे में पड़ सकती है। लेकिन, बलूचिस्तान का मामला अलग है। बलूचिस्तान को पाकिस्तान ने जबरन कब्जे में लिया था। 1947 में भारत के विभाजन के समय बलूचिस्तान एक स्वतंत्र राष्ट्र था, लेकिन पाकिस्तान ने इसे धोखे से अपने नियंत्रण में ले लिया।

बलूचिस्तान की स्वतंत्रता की संधि ब्रिटिश सरकार के साथ थी, जो ब्रिटिश शासन के समाप्त होते ही स्वतः समाप्त हो गई और बलूचिस्तान एक बार फिर स्वतंत्र हो गया। लेकिन पाकिस्तान ने बलूचिस्तान के नवाब बुगती को धोखे में रखकर वही संधि अपने साथ कर ली, जो पहले ब्रिटिश सरकार के साथ थी। इसके बाद धीरे-धीरे पाकिस्तान ने पूरे बलूचिस्तान को अपने कब्जे में कर लिया।

पाकिस्तान के इस छलपूर्ण अधिग्रहण के खिलाफ बलूचिस्तान में वक्त समय से स्वतंत्रता आंदोलन जारी है। बलूच नेता नवाब अकबर बुगती, जो इस आंदोलन के प्रमुख थे और उन्हें पाकिस्तानी सेना ने जनरल परवेज़ मुशर्रफ के कार्यकाल में मार डाला था। इस घटना के बाद से बलूचिस्तान में विद्रोह की आग और भी भड़क गई है।

बलूचिस्तान में जारी हिंसा के पीछे एक प्रमुख कारण चीन भी है। चीन ने ग्वादर बंदरगाह का निर्माण किया है, जिसे पाकिस्तान ने उसे लीज़ पर दे दिया है। बलूचिस्तान, जो पाकिस्तान का सबसे बड़ा और खनिज संसाधनों से भरपूर प्रांत है, चीन के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है। लेकिन, बलूचिस्तान को इससे कोई फायदा नहीं मिल रहा है, जिससे वहां के लोग चीन से नाराज़ हैं। पिछले दो दशकों में, बलूचिस्तान में कई चीनी इंजीनियर और मजदूर मारे जा चुके हैं, जिससे चीन भी पाकिस्तान से असंतुष्ट नजर आ रहा है।

पाकिस्तान अक्सर बलूचिस्तान में हिंसा के लिए भारत को दोषी ठहराता है, यह सोचते हुए कि भारत बलूचिस्तान को भी बांग्लादेश की तरह पाकिस्तान से अलग कर देगा। लेकिन पाकिस्तान यह मानने को तैयार नहीं है कि बलूचिस्तान में हिंसा की जड़ें उसके भीतर ही छिपी हुई हैं। पाकिस्तान खुद अपने नागरिकों की सुरक्षा करने में असमर्थ हो रहा है। बलूचिस्तान के अलावा, पंजाब, सिंध, अफगान सीमा से सटे इलाकों और पाक अधिकृत कश्मीर में भी लोग सुरक्षित महसूस नहीं करते। यह सवाल अब वहाँ के आम नागरिकों को भी परेशान कर रहा है कि इस पड़ोसी राष्ट्र में आखिर कौन सुरक्षित है?

बलूचिस्तान और भारत के बीच ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध भी इस संघर्ष का एक महत्वपूर्ण पहलू हैं। बलूचिस्तान का इतिहास भारतीय संस्कृति के बहुत करीब रहा है। हड़प्पा सभ्यता के अवशेष आज भी बलूचिस्तान की घाटियों में बिखरे हुए हैं। इस क्षेत्र ने कभी कुषाण शासन और मौर्य साम्राज्य का हिस्सा बनने का गौरव देखा है। बौद्ध धर्म का प्रभाव भी यहाँ से होकर अफगानिस्तान तक फैला था। परंतु आज का पाकिस्तान न तो अपने इतिहास की अहमियत समझता है और न ही चीन अपनी गलतियों से सबक लेना चाहता है।

बलूचिस्तान के लोग अपने हक के लिए संघर्ष कर रहे हैं, और उनकी आवाज़ को दबाने से समस्या का समाधान नहीं हो सकता। पाकिस्तान को यह समझना होगा कि बलूचिस्तान की समस्या का समाधान सैन्य ताकत से नहीं बल्कि संवेदनशीलता और राजनीतिक समझ से संभव है।