पहले दो लेखो से हमने जाना की ऑटिज्म एक मानसिक बिमारी है। जिसमे मानसिक विकास पुरी तरह से नही होता हैं। और दूसरे लेख में हम ने जाना की ऑटिज्म के विभिन्न लक्षण जो छोटी उम्र से पता चल सकते हैं। ऑटिज्म एक डवलपमेंटल डिसाडॅर है।
इस लेख में हम ऑटिज्म मे काम मे आने वाली अलग-अलग थैरेपी के बारे में जानेगे और उनसे होने वाले फायदो को समझेगे।
थैरेपी का सही तरह और सही समय पर प्रयोग करने से कुछ हद तक बच्चो में सुधार आ सकता हैं।
आइए जाने, इन थैरेपी के बारे में-
1.सेंसरी इंटेग्रेशन थैरेपी-
ऑटिस्टिक डिसाडॅर बच्चे शोर से,रोशनी से, छुने से संवेदनशील होते है, इस थैरेपी से बच्चो की संवेदनशीलता को नियंत्रित किया जा सकता हैं।
2.स्पीच थैरेपी-
ऑटिस्टिक बच्चे लोगों से बात करने मे झिझकते है, सही उच्चारण करने मे दिक्कत होती है। स्पीच थैरेपी मे मुह की कसरत, नाॅन वरब्ल स्किल जैसे ऑंखो के इशारे, हाथो के संकेत देना आदि सिखाया जाता हैं।
3.फिजियोथैरेपी-
ऑटिस्टिक बच्चो में मोटर कौशल विकसित करने पर ध्यान केन्द्रित किया जाता हैं। उपचार उम्र, और विकासात्मक स्तरो से संबंधित होता हैं। फिजियोथैरेपी से मांसपेशियो की ताकत, समन्वय कौशल विकसित करने मे मदद करती हैं।
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4. बिहेवियर थैरेपी-
ऑटिज्म के शिकार बच्चो को गुस्सा आता है, किसी की बात सुनने और समझ ने मे तकलीफ होती हैं, यह थैरेपी की मदद से गुस्से पर नियंत्रण करना सिखाया जाता हैं।
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5. एजुकेशनल थैरेपी-
ऑटिस्टिक डिसाडॅर बच्चो का दिमागी हिस्से एक साथ काम नही कर पाते, एसे मे बच्चो को अलग-अलग तरह से पढाया जाता है, ताकि समाज मे वे अपना सामर्थ और रचनात्मकता दिखा सकें।
यह सभी थैरेपी बच्चो की जरूरतो को पहचान कर और सही तरह से एक्सपर्ट की सलाह लेकर ही करनी चाहिए।
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