औरंगज़ेब और छत्रपति संभाजी महाराज के बीच लड़ी गई लड़ाई में औरंगज़ेब ने संभाजी को फाँसी दे दी थी. यह घटना 17वीं शताब्दी के दक्कन भारत में हुई थी. इस घटना ने मराठों और मुगलों के बीच तनाव बढ़ा दिया था.
औरंगज़ेब और संभाजी के बीच की लड़ाई की कुछ खास बातें:
11 मार्च, 1689 को मुगल सेना ने संभाजी को पकड़ लिया था.
संभाजी ने मुगलों के सामने आत्मसमर्पण करने से इनकार कर दिया था. औरंगज़ेब ने संभाजी को इस्लाम कबूल करने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन उन्होंने इसे ठुकरा दिया इसके बाद संभाजी को जमकर यातनाएं दी गईं संभाजी को तुलापुर ले जाया गया, जहां उन्हें यातनाएं देकर मार डाला गया संभाजी की मौत के बाद मराठा एकजुट हुए और उन्होंने औरंगज़ेब के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी संभाजी की मौत भारतीय इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना थी, जो मराठा साम्राज्य के स्वर्ण युग के अंत का प्रतीक थी.
हाल में रिलीज हुई छावा मूवी पर समाजवादी पार्टी के नेता अबू आसिम आजमी ने हाल ही में मुगल शासक औरंगजेब को महान शासक बताते हुए कहा कि उन्होंने कई हिंदू मंदिरों का निर्माण कराया था। इस बयान के बाद महाराष्ट्र की राजनीति में विवाद खड़ा हो गया है।
महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने आजमी के बयान की कड़ी निंदा करते हुए कहा कि जिसने छत्रपति संभाजी महाराज को 40 दिनों तक बंदी बनाकर यातनाएं दीं, उसे महान कैसे कहा जा सकता है। उन्होंने आजमी पर देशद्रोह का मामला दर्ज करने और विधायक पद से बर्खास्त करने की मांग की।
शिवसेना (यूबीटी) नेता आदित्य ठाकरे ने भी आजमी के बयान पर नाराजगी जताते हुए सवाल किया कि महाराष्ट्र में यह क्या हो रहा है। उन्होंने कहा कि अबू आजमी छत्रपति संभाजी महाराज का अपमान कर रहे हैं और राज्य सरकार को इस पर कार्रवाई करनी चाहिए।
विधानमंडल के दोनों सदनों में मंगलवार को हंगामे और कामकाज स्थगित होने के बाद अबू आजमी ने अपने बयान पर माफी मांग ली है। उन्होंने कहा कि उनके शब्दों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है और यदि उनकी बात से किसी की भावनाएं आहत हुई हैं, तो वे अपने शब्द वापस लेते हैं।
इस विवाद के बाद, महाराष्ट्र के विभिन्न हिस्सों में विरोध प्रदर्शन हुए हैं, और आजमगढ़ तक भी इसकी आग पहुंच गई है, जहां भाजपा नेताओं ने आजमी का पुतला फूंका है।
इस प्रकार, अबू आजमी के औरंगजेब पर दिए गए बयान ने महाराष्ट्र की राजनीति में हलचल मचा दी है, जिससे विभिन्न राजनीतिक दलों और नेताओं की तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं
हालांकि इस बयान पर यह जानना रोचक होगा कि आम जनता ऐसे बयानों को कितना सही मानती है क्या वास्तविक में तब की पस्थिति धार्मिक आधार से अलग होकर केवल दो राजाओं के मध्य की लड़ाई थी..!

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