गुजरात, जिसे अक्सर ‘शांत और सुरक्षित’ राज्य के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, वहां दलित समुदाय के खिलाफ अत्याचार की घटनाएं चिंताजनक रूप से बढ़ती जा रही हैं। हालही में आधिकारिक आंकड़ों और रिपोर्टों से पता चलता है कि राज्य में दलितों के खिलाफ अपराधों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है, जो सामाजिक न्याय और समानता के दावों पर सवाल उठाती है।
2022 में, गुजरात में दलितों के खिलाफ अत्याचार के कुल 1,425 मामले दर्ज किए गए, जिनमें से अकेले अहमदाबाद शहर में 189 मामले सामने आए। इनमें हत्या, बलात्कार, गंभीर चोट और अन्य अपराध शामिल हैं। कच्छ और बनासकांठा जैसे जिलों में भी ऐसे मामलों की संख्या उल्लेखनीय रही है।
सजा की दर बेहद कम
2018 से 2021 के बीच, गुजरात में दलित अत्याचार के मामलों में सजा की दर मात्र 3.65% रही, जो राष्ट्रीय औसत से काफी कम है। इस अवधि में दर्ज 5,369 मामलों में से केवल 32 मामलों में दोष सिद्ध हो पाया।
महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध
दलित महिलाओं के खिलाफ अपराधों में भी वृद्धि देखी गई है। 2011 में जहां 51 बलात्कार के मामले दर्ज हुए थे, वहीं 2020 में यह संख्या बढ़कर 102 हो गई। अहमदाबाद, राजकोट, बनासकांठा, सूरत और भावनगर में ऐसे मामलों की संख्या सबसे अधिक रही है।
सामाजिक भेदभाव और हिंसा के उदाहरण
गुजरात में दलितों के खिलाफ सामाजिक बहिष्कार, शारीरिक हिंसा और अपमानजनक घटनाएं भी सामने आई हैं। जैसे कि साबरकांठा में एक दलित युवक को निर्वस्त्र कर पीटा गया और गांव में घुमाया गया। ऐसी घटनाएं जातिगत वर्चस्व और सामाजिक भेदभाव की गहरी जड़ों को उजागर करती हैं।
गुजरात में दलितों के खिलाफ अत्याचार की बढ़ती घटनाएं और न्याय प्रणाली की निष्क्रियता गंभीर चिंता का विषय हैं। यह आवश्यक है कि सरकार और समाज मिलकर इस दिशा में ठोस कदम उठाएं, ताकि दलित समुदाय को सुरक्षा और न्याय मिल सके।
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