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अरविंद केजरीवाल की जमानत पर सुनवाई: सुप्रीम कोर्ट में क्या होगा फैसला?

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी जमानत याचिका दाखिल की है। सीबीआई द्वारा गिरफ्तार किए जाने के बाद केजरीवाल ने इसे चुनौती दी थी। इस मामले में उनके करीबी सहयोगी और आम आदमी पार्टी (AAP) के मीडिया और संचार प्रमुख विजय नायर पर भी आरोप लगे हैं।

सीबीआई ने केजरीवाल पर आरोप लगाया है कि उन्होंने दिल्ली की आबकारी नीति को निजी हाथों में सौंपने की योजना बनाई थी, और इसके बदले पार्टी के लिए आर्थिक समर्थन की मांग की। आरोप है कि नायर ने दिल्ली के शराब कारोबार से जुड़े लोगों से रिश्वत मांगी थी ताकि नीति में उनके हित में बदलाव किया जा सके।

केजरीवाल को 26 जून को सीबीआई ने गिरफ्तार किया था और दिल्ली उच्च न्यायालय ने 5 अगस्त को उनकी गिरफ्तारी को सही ठहराया था। आज, 5 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट उनके जमानत की याचिका पर सुनवाई कर रहा है।

सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति सूर्यकांत और उज्जल भुयान की बेंच इस मामले की सुनवाई करेगी। यह सुनवाई दिल्ली में जारी आबकारी नीति घोटाले से जुड़ी है, जिसकी जांच पहले से ही चल रही है।

सीबीआई का कहना है कि केजरीवाल अपने पद का दुरुपयोग कर गवाहों को प्रभावित कर सकते हैं, यही कारण है कि उनकी गिरफ्तारी जरूरी मानी गई। हाई कोर्ट ने भी कहा था कि गवाहों को उनके प्रभाव के कारण बयान देने में हिचकिचाहट हो रही थी, लेकिन उनकी गिरफ्तारी के बाद गवाह सामने आने लगे।

सीबीआई और ईडी ने यह साबित करने की कोशिश की है कि आबकारी नीति में बदलावों के दौरान बड़े पैमाने पर अनियमितताएँ और लाइसेंस धारकों को अनुचित लाभ दिए गए। इस नीति को 2022 में वापस ले लिया गया था जब दिल्ली के उपराज्यपाल ने इसके खिलाफ सीबीआई जांच के आदेश दिए थे।

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। भ्रष्टाचार के आरोपों पर जिस तरह से केजरीवाल और उनकी पार्टी पर सवाल उठे हैं, वह राजनीति में नैतिकता के मुद्दे को फिर से उजागर करता है। हालांकि, यह देखना दिलचस्प होगा कि अदालत किस आधार पर निर्णय लेती है। क्या इस मामले में सत्ता का दुरुपयोग हुआ है या यह केवल राजनीतिक प्रतिशोध है? जनता की नज़रों में यह सवाल अहम बना रहेगा, क्योंकि एक ऐसे नेता के खिलाफ मामले चल रहे हैं, जिन्हें कई लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई का प्रतीक मानते हैं।

सवाल यह है कि क्या यह मामला भविष्य में राजनीतिक परिदृश्य को बदलने की क्षमता रखता है, या फिर यह सिर्फ एक और विवाद बनकर रह जाएगा?