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केंद्र ने UPSC को क्यों लिखा पत्र? पीएम मोदी की ‘पारदर्शिता’ और ‘आरक्षण’ पर आई बड़ी बात!

केंद्र सरकार ने मंगलवार को संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) को पत्र लिखकर ‘लैटरल एंट्री’ की भर्ती से संबंधित विज्ञापन को वापस लेने का आग्रह किया है। केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने UPSC की अध्यक्ष प्रीति सूदन को लिखे इस पत्र में कहा कि 2014 से पहले अधिकांश प्रमुख लैटरल एंट्री बिना किसी संस्थागत प्रक्रिया के, मनमाने ढंग से की गई थीं, जिनमें पक्षपात के आरोप भी शामिल थे। लेकिन हमारी सरकार की कोशिश रही है कि यह प्रक्रिया संस्थागत रूप से संचालित, पारदर्शी और सभी के लिए खुली हो।

मंत्री जितेंद्र सिंह ने पत्र में आगे कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मानना है कि लैटरल एंट्री “समानता और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों” के अनुरूप होनी चाहिए, विशेष रूप से “आरक्षण के प्रावधानों” को ध्यान में रखते हुए।

उन्होंने यह भी बताया कि प्रधानमंत्री के लिए सार्वजनिक रोजगार में आरक्षण हमारे सामाजिक न्याय ढांचे का एक आधारशिला है, जिसका उद्देश्य ऐतिहासिक अन्यायों को दूर करना और समावेशिता को बढ़ावा देना है।

मंत्री ने इस बात पर भी जोर दिया कि पिछली सरकारों ने आरक्षण प्रक्रिया का पालन किए बिना, विभिन्न मंत्रालयों में सचिव और UIDAI जैसे महत्वपूर्ण पदों पर व्यक्तियों की नियुक्ति की थी, चाहे वह कमीशन से पहले हो या बाद में।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन, सपा प्रमुख अखिलेश यादव और कई अन्य विपक्षी नेताओं ने ब्यूरोक्रेसी में लैटरल एंट्री का विरोध किया था और बीजेपी पर आरक्षण छीनने का आरोप लगाया था।

क्या है लैटरल एंट्री?

ब्यूरोक्रेसी में परंपरागत सरकारी सेवा कैडर से बाहर के व्यक्तियों को मध्य और वरिष्ठ स्तर के पदों पर नियुक्त करने की प्रक्रिया को लैटरल एंट्री कहा जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के दौरान, 2018 में पहली बार इस प्रकार की रिक्तियों की घोषणा की गई थी। इन पदों के लिए अनुबंध आमतौर पर तीन से पांच वर्षों के लिए होता है, जिसे प्रदर्शन के आधार पर बढ़ाया जा सकता है। इसका उद्देश्य बाहरी विशेषज्ञता का लाभ उठाकर जटिल शासन और नीति क्रियान्वयन चुनौतियों का समाधान करना है।

लैटरल एंट्री कोई नई अवधारणा नहीं है। इसे सबसे पहले कांग्रेस नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) सरकार के दौरान 2005 में स्थापित द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) द्वारा अनुशंसित किया गया था। वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता वाले इस आयोग ने पारंपरिक सिविल सेवाओं के भीतर अनुपलब्ध विशिष्ट ज्ञान की आवश्यकता वाले पदों को भरने के लिए लैटरल एंट्री का सुझाव दिया था। इन सिफारिशों का उद्देश्य निजी क्षेत्र, शिक्षा जगत और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों से पेशेवरों की भर्ती कर नीति क्रियान्वयन और शासन को सशक्त बनाना था।