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Thursday, May 8   3:02:12

अमृता प्रीतम की आज 102 वीं जन्मजयंती

“यह एक शाप है,
यह एक वर है,
और जहां भी ,
आजाद रूह की झलक पड़े, समझना वह मेरा घर है। “

पंजाबी भाषा की पहली लेखिका जिसे बीसवीं सदी की पहली पंजाबी कवियत्री का बिरूद हासिल हुआ,जिसे भारत और पाकिस्तान दोनों का प्यार मिला, भारतीय नवलकथाकार ,निबंधकार, कहानी और कविताओं की जिनकी लेखनी धनी रही, ऐसी कलम की धनी अमृता प्रीतम की आज 102 वीं जन्मजयंती है। 31अगस्त 1919 को पाकिस्तान के गुजरानवालान में उनका जन्म हुआ।उनकी लेखिनी ने स्त्री मन को बेहतरीन रूप से टटोला है। 1959 में पाकिस्तान में आई फिल्म करतार सिंह में जुबेदा खानम और इनायत हुसैन भट्टी द्वारा गाया गया गीत …..

” अज्ज आखा वारिस शाह नू
कितों कबरा विचो बोल….”

बंटवारे पर लिखी उनकी इस कविता में उन्होंने उस वक्त झेली दिक्कतों उस समय स्त्री पर हुए अत्याचारों का मंजर साफ नजर आता है। इस कविता को लेकर पाकिस्तान के किसी शख्स द्वारा उन्हें केले भेजे गए थे ,और उस शख्स का संदेश था कि,” मैं यही दे सकता हूं, मेरा आधा हज हो जाएगा ….” इस बात को भी वे हरदम याद किया करती थी। उन्होंने नारी के मन की इच्छा को, उसके अंदर छुपे डर, उसके साथ हुई ज्यादतियां और उनके सपनों को जुबां दी। औरत और मर्द के रिश्तों को उन्होंने नए नजरिए से जिया भी,और लिखा भी। इस नजरिए की काफी आलोचना भी हुई ,जिनमें उनके सबसे बड़े आलोचक खुशवंत सिंह थे। कलम की फनकार अमृता प्रीतम ने पिंजर ,रसीदी टिकट ,रिवेन्यू स्टैंप, कागज से कैनवास, मैं तुम्हें फिर मिलूंगी, धरती सागर ते सीपिया… सहित 100 से अधिक पुस्तकें लिखी। रसीदी टिकट उनकी आत्मकथा है, जिसमें साहिर लुधियानवी से जुड़े कई किस्से हैं ।इमरोज़ भी उनकी जिंदगी में तब प्यार लेकर आए, जब साहिर लुधियानवी उनसे दूर हुए।
बचपन में मां की मौत, बंटवारे का दर्द, एक ऐसी असफल शादी जिसमें बरसों घुटती रही, साहिर से प्रेम, दूरियां, इमरोज़ की आमद ,यू उनका जीवन सुख दुख का उलझा मांझा रहा।ऐसे में उनके अंतिम समय तक साहिर के प्रति उनके बेइंतहा प्यार को जानते हुए भी उनसे टूटकर इमरोज़ ने प्यार किया,और उनका साथ नहीं छोड़ा।
ज्ञानपीठ पुरस्कार,पंजाब रत्न पुरस्कार, साहित्य अकादमी सहित अनेकों पुरस्कारों से उन्हें नवाजा गया।
आजाद औरत का चेहरा मानी जाती अमृता प्रीतम की हर कविता अपने आप में खास है। जाते जाते उनकी साहिर के लिए लिखी गई यह कविता कहने से खुद को नहीं रोक पा रही हूं।

सिगरेट
यह आग की बात है
तूने यह बात सुनाई है
यह जिंदगी की
वही सिगरेट है
जो तूने कभी सुलगाई थी।

चिंगारी तूने दी थी
यह दिल सदा जलता रहा
वक्त कलम पकड़कर
कोई हिसाब लिखता रहा ।

14 मिनट हुए हैं
इसका खाता देखो
14 साल ही हैं
इस कलम से पूछो
मेरे जिस्म में
तेरा सांस चलता रहा।

धरती गवाही देगी ,
धुआं निकलता रहा,
उम्र की सिगरेट जल गई।

तेरे इश्के की महक
कुछ तेरी सांसो में
कुछ हवा में मिल गई।

देखो यह आखरी टुकड़ा है उंगलियों में से छोड़ दो
कहीं मेरे इश्कुए की आंच
तुम्हारी ऊंगली न छू ले,
जिंदगी का गम नहीं,
इस आग को संभाल ले,
तेरे हाथ की खैर मांगती हूं
अब और सिगरेट जला ले।

         अपने दौर से आगे की सोच रखने वाली अमृता प्रीतम आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन औरत को  उसके अस्तित्व का आज भी एहसास कराती है, उनकी लेखिनी।