CATEGORIES

December 2024
M T W T F S S
 1
2345678
9101112131415
16171819202122
23242526272829
3031  
Monday, December 23   7:34:54
sholay

50 साल बाद थियेटर में शोलें का जादू फिर लौटा, दर्शकों का प्यार देखकर भावुक हुए सलीम-जावेद

1975 में रिलीज़ हुई ‘शोले’ को भारतीय सिनेमा का सबसे बड़ा और यादगार महाकाव्य माना जाता है। इस फिल्म का जादू 50 सालों से आज भी समय की कसौटी पर खरा उतर रहा है। नॉट फॉर प्रॉफिट ऑर्गेनाइजेशन फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन (एफएचएफ) ने ‘शोले’ की स्पेशल स्क्रीनिंग की थी। इस दौरान फैन ने शोले के जादू को फिर से जिया।

रमेश सिप्पी द्वारा निर्देशित इस फिल्म ने न केवल बॉक्स ऑफिस पर इतिहास रचा बल्कि दर्शकों के दिलों में भी एक अमिट छाप छोड़ी। फिल्म की कहानी, किरदार, संवाद और संगीत ने इसे एक कालजयी कृति बना दिया है, जिसे आज भी उतने ही उत्साह और प्रेम से देखा जाता है।

दरअसल महाराष्ट्र में कोलाबा के रीगल सिनेमा में एक आर्यक्रम आयोजित किया गया। इसमें 1975 की ब्लॉकबस्टर विंटेज को 70 मिमी सिनेमास्कोप प्रिंट पर दिखाया गया। इस फिल्म को देखने के लिए बड़ी संख्या में फैंस पहुंचे।

निंग से पहले फैन ने फिल्म के राइटर सलीम-जावेद का तालियों के साथ स्वागत किया। इस दौरान जावेद अख्तर ने कहा, “आमतौर पर लेखकों के साथ ऐसा नहीं होता है।” 79 साल के गीतकार और पटकथा लेखक जावेद अख्तर ने फैन का आभार व्यक्त किया और याद किया कि कैसे फिल्म के अन एक्पेक्टिड मल्टी-स्टारर एंगल ने इस मूवी में चार चांद लगाए।

शोले की कहानी एक ऐसे गांव ‘रामगढ़’ के इर्द-गिर्द घूमती है, जहां एक सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी ठाकुर बलदेव सिंह (संजीव कुमार) अपने परिवार की हत्या का बदला लेने के लिए दो पूर्व अपराधियों, जय (अमिताभ बच्चन) और वीरू (धर्मेंद्र) को नियुक्त करता है। इस बदले की कहानी में ठाकुर और उसके परिवार की हत्या करने वाले डाकू गब्बर सिंह (अमजद खान) से सामना होता है, जो अब तक के सबसे खतरनाक खलनायकों में से एक है। जय और वीरू का मिशन गब्बर को खत्म करना होता है, लेकिन यह सफर इतना आसान नहीं होता।

शोले के किरदारों ने भारतीय सिनेमा में एक अलग ही पहचान बनाई। जय और वीरू की दोस्ती, गब्बर सिंह का आतंक, ठाकुर की प्रतिशोध की भावना, बसंती (हेमा मालिनी) की चुलबुली अदाएं और राधा (जया बच्चन) की मौन संवेदनशीलता ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। गब्बर सिंह का संवाद “कितने आदमी थे?” और “अरे ओ सांभा!” आज भी लोकप्रियता के शिखर पर हैं।

संगीत: आर.डी. बर्मन द्वारा रचित संगीत फिल्म का एक और महत्वपूर्ण पहलू है। फिल्म के गीत “ये दोस्ती”, “होली के दिन”, और “महबूबा महबूबा” आज भी लोगों की ज़ुबान पर हैं। यह संगीत न केवल फिल्म की कहानी को आगे बढ़ाता है, बल्कि उसके साथ जुड़ी भावनाओं को भी गहराई से व्यक्त करता है।

संवाद: सलीम-जावेद द्वारा लिखे गए संवाद शोले के सबसे बड़े आकर्षण हैं। संवाद जैसे “जो डर गया समझो मर गया”, “तुम्हारा नाम क्या है बसंती?” और “मुझे तो बसंती पसंद है” आज भी लोगों के दिलों में जीवित हैं। इन संवादों ने फिल्म को एक अलग ही स्तर पर पहुंचा दिया।

शोले ने न केवल अपने समय में, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी एक बेंचमार्क सेट किया है। इसे भारत की सबसे सफल और प्रतिष्ठित फिल्मों में से एक माना जाता है। फिल्म ने भारतीय सिनेमा को एक नई दिशा दी और इसे बनाने में लगे सभी लोगों को अमर बना दिया।

शोले न केवल भारत में, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी लोकप्रिय हुई। इसने भारत के बाहर भी दर्शकों का ध्यान आकर्षित किया और यह साबित किया कि भारतीय सिनेमा भी विश्व स्तरीय सिनेमा है।

शोले एक ऐसी फिल्म है, जिसने भारतीय सिनेमा को न केवल पुनर्परिभाषित किया, बल्कि यह साबित कर दिया कि एक अच्छी कहानी, उत्कृष्ट अभिनय, और यादगार संवादों के साथ बनाई गई फिल्म दशकों तक लोगों के दिलों में बसी रह सकती है। यह फिल्म भारतीय सिनेमा की धरोहर है और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी।