वैसे तो हमारे समाज में महिलाओं को मासिक धर्म (menstruation) के दौरान किसी भी धार्मिक क्रियकलाओं में भाग लेने की अनुमती नहीं दी जाती। महिलाएं अपने पीरियड्स के दौरान मंदिरों में नहीं जा सकती हैं। लेकिन, हमारे देश में एक ऐसा भी मंदिर है जहां पर महिलाएं अपने पीरियड्स पर भी यहां जा सकती हैं। और यहां पर देवी की पूजा भी कर सकती हैं। आप को ये सुनकर बहुत हैरानी हो रही होगी।
आज हम बात कर रहे हैं 51 शक्ति पीठों में से एक कामाख्या मंदिर की। कामाख्या मंदिर असम के गुवाहाटी शहर में नीलाचल पहाड़ी पर स्थित एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है। यह देवी कामाख्या का निवास स्थान माना जाता है, जो देवी पार्वती का एक रूप हैं। ये सिद्ध पीठ हिंदू धर्म में शक्तिपीठों के रूप में जाना जाता है और इन्हें सबसे पवित्र माना जाता है।
कामाख्या मंदिर में आपकों कहीं भी दुर्गा या अम्बे मां की कोई मूर्ति देखने को आपको नहीं मिलेगी। यहां एक कुंड सा बना हुआ है जो हमेशा फूलों से ढका रहता है और उससे हमेशा प्राकृतिक जल निकलता रहता है। पूरे भारत में रजस्वला यानि मासिक धर्म को अशुद्ध माना जाता है। लड़कियों को इस दौरान अक्सर अछूत समझा जाता है, लेकिन कामाख्या के मामले में ऐसा नहीं है। हर साल यहां पर अम्बूवाची मेले के दौरान पास में स्थित ब्रह्मपुत्र का पानी 3 दिन के लिए लाल हो जाता है। पानी का ये लाल रंग देवी की मासिक धर्म के कारण होता है। फिर 3 दिन बाद श्रद्धालुओं की मंदिर में काफी भीड़ उमड़ पड़ती है।
मंदिर में मिलता है अनोखा प्रसाद
इस मंदिर में दिया जाने वाला प्रसाद भी दूसरी शक्तिपीठों से बिल्कुल अलग है। इस मंदिर में प्रसाद के तौर पर लाल रंग का गीला कपड़ा दिया जाता है। कहा जाता है कि जब मां को 3 दिन का रजस्वला होता है तो सफेद रंग का कपड़ा मंदिर के अंदर बिछा दिया जाता है। 3 दिन बाद जब मंदिर के दरवाजे खोले जाते हैं। तब वह वस्त्र माता के रथ से लाल रंग से भीगा होता है। इस कपड़े को अंब्बू वाची वस्त्र कहते हैं। इसे ही भक्तों को प्रसाद के तौर पर दिया जाता है।
मंदिर के इतिहास से जुड़ी अनेक कहानियां और किंवदंतियां हैं, चलिए उन पर एक नजर डालते हैं।
1. सती का योनि पीठ
सबसे प्रचलित कथा के अनुसार, देवी सती, अपने पिता दक्ष के यज्ञ में अपने पति भगवान शिव के अपमान से क्रोधित होकर, स्वयं को अग्नि में समर्पित कर देती हैं। भगवान शिव, सती के मृत शरीर को लेकर तांडव नृत्य करते हैं, जिसके कारण विष्णु चक्र से सती के शरीर के अंगों को विभिन्न स्थानों पर बिखेर दिया जाता है।
माना जाता है कि योनि का भाग नीलाचल पहाड़ी पर गिरा था, जहाँ आज कामाख्या मंदिर स्थित है।
2. कामुक देवी
एक अन्य कथा के अनुसार, कामाख्या देवी कामुकता और रजस्वला की देवी हैं।
3. नीलाचल पहाड़ी का महत्व
नीलाचल पहाड़ी को नीलकंठ (भगवान शिव) का निवास स्थान भी माना जाता है।
4. प्राचीन मंदिर
पुरातात्विक साक्ष्यों से पता चलता है कि कामाख्या मंदिर का इतिहास काफी प्राचीन है।
गुप्तकाल (4वीं-6वीं शताब्दी) के दौरान बनाए गए मंदिर के अवशेष मिले हैं।
16वीं-17वीं शताब्दी में, मंदिर का जीर्णोद्धार Ahom राजाओं द्वारा करवाया गया था।
5. तंत्र साधना:
कामाख्या मंदिर तंत्र साधना का एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है।
6. आधुनिक काल:
आज, कामाख्या मंदिर भारत और दुनिया भर के तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के लिए एक लोकप्रिय गंतव्य है।
कामाख्या मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह कला, संस्कृति और इतिहास का भी खजाना है।
कैसे पहुंचे कामाख्या मंदिर
अगर आप एक धार्मिक और आध्यात्मिक अनुभव की तलाश में हैं, तो कामाख्या मंदिर आपके लिए एकदम सही जगह है। गुवाहाटी हवाई अड्डा कामाख्या मंदिर से निकटतम हवाई अड्डा है। कामाख्या मंदिर की यात्रा करने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च के बीच का है। मंदिर सुबह 5:00 बजे से दोपहर 12:00 बजे तक और शाम 4:00 बजे से रात 9:00 बजे तक खुला रहता है। मंदिर के दर्शन के लिए कोई शुल्क नहीं है।
मंदिर के आसपास के दर्शनीय स्थल:
- नीलाचल पहाड़ी: कामाख्या मंदिर नीलाचल पहाड़ी पर स्थित है, जो एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है।
- गुवाहाटी शहर: गुवाहाटी शहर असम का सबसे बड़ा शहर है और यहां कई दर्शनीय स्थल हैं।
क्या आपने कभी कामाख्या मंदिर का दौरा किया है?
More Stories
दिशा पटानी के पिता के साथ 25 लाख रुपये की ठगी: राजनीतिक रुतबे के नाम पर धोखाधड़ी
पश्चिम बंगाल की लक्ष्मी भंडार योजना: महिलाओं के लिए आर्थिक संबल, जानें आवेदन प्रक्रिया और लाभ
सोशल मीडिया: दोस्त या दुश्मन?