शोले (Sholay): 1975 में रिलीज हुई फिल्म शोले को भारतीय सिनेमा का मील का पत्थर कहा जाता है। गब्बर सिंह से लेकर वीरू, बसंती और ठाकुर, हर किरदार आज भी लोगों के दिलों में बसा हुआ है। लेकिन, इस फिल्म के एक सीन के बारे में बहुत कम लोगों को पता है, जिसे शूट करने में 3 साल का समय लगा। यह सीन जय (अमिताभ बच्चन) का था और इसने फिल्म की कहानी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
सही समय और भावनाओं को कैप्चर करने का जुनून
फिल्म का क्लाइमैक्स सीन, जहां जय की मृत्यु होती है, शोले के सबसे भावुक और यादगार पलों में से एक है। निर्देशक रमेश सिप्पी चाहते थे कि इस सीन में दर्शकों की संवेदनाओं को बखूबी कैद किया जाए। इसलिए उन्होंने इस सीन को शूट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। कई बार इसे रि-शूट किया गया, और सही कैमरा एंगल, भावनाएं, और हर किरदार की प्रतिक्रिया को पूरी बारीकी से दर्शाने में लगभग 3 साल का समय लग गया।
फिल्म की धीमी शुरुआत और जय का “अनिश्चित” अंत
शोले की रिलीज के पहले हफ्ते में बॉक्स ऑफिस पर प्रतिक्रिया बेहद ठंडी रही। इस पर रमेश सिप्पी ने कुछ दृश्यों को काटने का निर्णय लिया था, जिसमें जय का मृत्यु सीन भी शामिल था। अगर फिल्म हिट नहीं होती, तो शायद जय का किरदार जिंदा रहता और इस क्लाइमैक्स सीन को बदल दिया गया होता। परन्तु दूसरे हफ्ते से ही फिल्म ने ऐसा मोड़ लिया कि सिनेमाघरों में भीड़ उमड़ने लगी और यह बॉलीवुड की सबसे बड़ी हिट बन गई।
अमिताभ बच्चन नहीं थे पहली पसंद
दिलचस्प बात यह है कि शोले में जय का किरदार निभाने के लिए रमेश सिप्पी की पहली पसंद अमिताभ बच्चन नहीं थे। इस किरदार के लिए पहले धर्मेंद्र और शत्रुघ्न सिन्हा पर विचार किया गया था, मगर वीरू के किरदार में धर्मेंद्र फिट हो गए और जय का किरदार अंततः अमिताभ बच्चन को मिला। उस वक्त अमिताभ अपने करियर में संघर्ष कर रहे थे और उन्हें एक बड़ी हिट की तलाश थी। इस किरदार ने उनके करियर को एक नई दिशा दी और उन्हें ‘एंग्री यंग मैन’ के रूप में स्थापित कर दिया।
3 साल का इंतजार बना सफलता की कुंजी
रमेश सिप्पी ने अपने निर्देशन में कोई कमी नहीं छोड़ी और जय के अंतिम सीन को बारीकी से फिल्माया। 3 साल के इस इंतजार ने शोले को एक ऐसा कलेक्टिबल बना दिया जो हर सिनेमा प्रेमी के दिल में बसा है। यह सीन आज भी लोगों के दिलों को छू जाता है और इसने जय के किरदार को अमर बना दिया।
शोले का प्रभाव और सफलता की कहानी
शोले की सफलता ने न केवल इसे एक कल्ट क्लासिक बना दिया, बल्कि इसने बॉलीवुड में कई मानदंड भी स्थापित किए। फिल्म की लोकप्रियता का आलम यह है कि इसके कुछ डायलॉग्स, जैसे “कितने आदमी थे?”, “अरे ओ सांभा!” और “ये हाथ मुझे दे दे ठाकुर,” आज भी लोगों की जुबान पर हैं।
शोले का यह सीन, जिसे पूरा करने में 3 साल का समय लगा, सिनेमा के प्रति रमेश सिप्पी के जुनून और उनके द्वारा की गई मेहनत का प्रतीक है। यह वह सीन है, जिसने फिल्म को भावनात्मक ऊंचाई दी और जय के किरदार को एक ऐसी पहचान दी जो सिनेमा के इतिहास में हमेशा जिंदा रहेगी।
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