आजादी के बाद देश के करीब 560छोटे छोटे रजवाड़ों में विभाजित देश को अखंड राष्ट्र बनाने की मुहिम सरदार पटेल ने छेड़ी।इस मुहिम में सबसे पहले अपना राज्य देश को समर्पित करने वाले राजा कौन थे क्या आप जानते हैं? आज हम बात करते हैं उस राजा की जिन्होंने सामने से चलकर अपना राज्य देश को समर्पित कर दिया।
देश को अखंड राष्ट्र बनाने के लिए सरदार पटेल ने सभी छोटे छोटे रजवाड़ों को देश की अखंडितता के लिए देश में विलीन होने की घोषणा की थी।
काठियावाड़ के 700 साल पुराने गोहिल राजवंश के महाराजा कृष्णकुमार सिंह जी एक ऐसे महाराजा थे, जिन्होंने इस घोषणा को हाथो हाथ लिया, और अपने राज्य को राष्ट्र के चरणों में समर्पित करने की पहल की। वे 17 दिसंबर 1947 के रोज रात 11 बजे गांधीजी से मिलने बिरला भवन पहुंचे,और अपना भावनगर राज्य राष्ट्र को भेंट देने की पेशकश की।देश के इतिहास में रजवाड़ों के विलीनीकरण की मुहिम में यह एक विरल घटना है। 15 जनवरी 1948 के रोज उन्होंने भावनगर की धारासभा में अपनी प्रजा को एक सशक्त,जिम्मेदार राजतंत्र देने की घोषणा की।
576 पेज की गंभीर सिंह गोहिल द्वारा लिखित पुस्तक “प्रजावत्सल राजवी” में महाराजा कृष्णकुमार सिंह जी की जीवनी है।
सरकार ने जब उनसे पूछा कि वह अपना राज्य जब देश को सौंप देंगे तो उसके बाद वे क्या करेंगे? तो उन्होंने कहा कि मैं खेती करूंगा,आधुनिक समय के अनुसार राज परिवार और समाज के मनोभावों को बदलने की जिम्मेदारी मेरी है। इससे पता चलता है कि वह स्वयं आधुनिक दृष्टिकोण वाला व्यक्तित्व थे। उन्होंने एक ही क्षण में अपने अभूतपूर्व राजसी ठाठबाठ त्याग दिए। गांधी जी ने उनके लिए कहा था कि, “यदि हर राजा कृष्ण कुमार सिंह जी जैसा होगा, तो देश को लोकतंत्र की नही राजतंत्र की जरूरत है।”
राज्य त्याग के बाद उन्हें सरकार ने महाराष्ट्र के गवर्नर के रूप में नियुक्त किया। इसी के साथ रॉयल भारतीय नौका दल के मानद कमांडर का पद भी दिया।
महाराजा कृष्णकुमार सिंह जी का जन्म भावनगर के महाराजा भावसिंहजी गोहिल द्वितीय के उत्तराधिकारी के रूप में 19 मई 1912 को हुआ। महाराजा भावसिंह जी उन्हें बहुत ही छोटी उम्र में छोड़कर चले गए। उनके निधन के बाद सन 1919 में 7 साल की उम्र में उन्होंने राज सिंहासन संभाला। 1931तक अंग्रेज हुकूमत के अंतर्गत उन्होंने शासन किया।बाद में उन्होंने प्रभाशंकर पट्टनी के मार्गदर्शन में कई सुधार कार्य किए। ग्राम पंचायत और भावनगर राज्य की धारासभा की रचना की।यह अपने आप में उनकी दूरदर्शिता का प्रतीक था। उन्होंने अपना शिक्षण राजकोट की राजकुमार कॉलेज,और इंग्लैंड की जानीमानी स्कूल हेरो से लिया।उनका विवाह राजकोट के पास गोंडल के महाराजा भाजीराजसिंह जी की बेटी,और महाराज भगवतसिंह जी की पौत्री विजयकुंवरबा के साथ हुआ।उनके दो पुत्र और तीन पुत्रियां हुई।भावनगर की सड़कें,शहर निर्माण व्यवस्था,स्कूल, कॉलेज बनाने में उनका बहुत बड़ा योगदान रहा।
आज वे हमारे बीच नहीं है,पर इतिहास में उनका नाम सुवर्ण अक्षरों में दर्ज है।
आज के लोकतंत्र की स्थिति देखते हुए ऐसा लगता है कि गांधीजी की बात सही थी, कि ऐसा राजवी हो तो देश को लोकतंत्र की नही राजतंत्र की जरूरत है। ऐसे प्रजावत्सल महाराजा को सलाम है।
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