अर्जुन और रोहित बचपन के दोस्त थे। दोनों साथ बड़े हुए, एक ही स्कूल में पढ़े, और हमेशा एक-दूसरे का साथ दिया। लेकिन एक चीज़ थी जो रोहित को हमेशा परेशान करती थी—अर्जुन का स्वभाव। कभी वह बहुत ही आत्मविश्वास से भरा, खुशमिजाज और मज़ाकिया होता, तो कभी एकदम अलग—गुमसुम, गुस्से से भरा और लोगों से कटे-कटे रहने वाला।
रोहित समझ नहीं पाता था कि उसके सबसे अच्छे दोस्त के साथ ऐसा क्या हो रहा है। लेकिन उसे यह एहसास था कि अर्जुन के अंदर कुछ ऐसा चल रहा है जो उसकी समझ से परे था।
कॉलेज में पहुँचने के बाद, रोहित ने महसूस किया कि अर्जुन के मूड स्विंग्स अब और भी ज्यादा बढ़ने लगे थे। कभी-कभी वह दोस्तों के साथ हँसी-मज़ाक करता, जोशीले डिबेट्स में हिस्सा लेता और पूरी क्लास का ध्यान अपनी ओर खींच लेता। लेकिन अगले ही दिन वह कॉलेज तक नहीं आता, और अगर आता भी, तो एकदम शांत और बेरुखा रहता, जैसे दुनिया से कोई मतलब ही न हो।
एक दिन, जब अर्जुन पूरे हफ्ते गायब रहा, तो रोहित उससे मिलने उसके घर गया। “क्या चल रहा है अर्जुन? तू ऐसा क्यों कर रहा है ?”
अर्जुन ने एक फीकी हंसी हंसते हुए कहा, “काश मैं खुद जान पाता, रोहित धीरे-धीरे, रोहित को एहसास हुआ कि यह सिर्फ मूड स्विंग नहीं था। अर्जुन के अंदर दो अलग-अलग व्यक्तित्व थे। एक जोशीला, आत्मविश्वासी और दुनिया से लड़ने को तैयार, और दूसरा उदास, अकेला और खुद को खत्म कर देने की सोचने वाला।
एक दिन, जब अर्जुन का व्यवहार अचानक बहुत आक्रामक हो गया, तो रोहित ने उसका हाथ पकड़कर कहा, “मैं तुझे इस हालत में नहीं देख सकता। तुझे मदद की जरूरत है, अर्जुन!”
अर्जुन गुस्से में था, “मुझे तेरी कोई जरूरत नहीं! मैं खुद को संभाल सकता हूँ!”
रोहित की आँखों में आँसू आ गए, “अगर तू खुद को संभाल सकता, तो ये सब होता ही क्यों?”
यह सुनकर अर्जुन चुप हो गया। पहली बार उसने महसूस किया कि उसे वाकई मदद की जरूरत थी।
रोहित ने अर्जुन को थेरेपी के लिए तैयार किया। शुरुआत में अर्जुन बहुत झिझक रहा था, लेकिन धीरे-धीरे उसने अपने अंदर के द्वंद्व को समझना शुरू किया। डॉक्टर ने उसे बताया कि वह मिक्स पर्सनैलिटी डिसऑर्डर से जूझ रहा था—उसके अंदर दो अलग-अलग शख्सियतें थीं, जो कभी दोस्त बन जातीं, तो कभी एक-दूसरे से लड़ती थीं।
इस सफर में रोहित ने अर्जुन का साथ नहीं छोड़ा। उसने हमेशा उसे यह एहसास दिलाया कि वह अकेला नहीं है।
अंततः कई महीनों की थेरेपी के बाद, अर्जुन पहले से बेहतर महसूस करने लगा। वह पूरी तरह ठीक नहीं हुआ था, लेकिन अब उसे पता था कि खुद को कैसे संभालना है।
एक दिन, रोहित और अर्जुन कॉलेज के कैंपस में बैठे थे।
“तूने मेरा साथ कभी क्यों नहीं छोड़ा, रोहित?” अर्जुन ने पूछा।
रोहित मुस्कुराया, “क्योंकि दोस्त सिर्फ अच्छे वक्त के लिए नहीं होते, अर्जुन।”
अर्जुन की आँखों में नमी थी। उसे पहली बार लगा कि वह अकेला नहीं है।
शिक्षा:
यह कहानी हमें सिखाती है कि मानसिक स्वास्थ्य को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। अगर आपका कोई दोस्त किसी मानसिक परेशानी से जूझ रहा है, तो उसे समझने और उसका साथ देने की जरूरत होती है, न कि उसे जज करने की। एक अच्छा दोस्त कभी छोड़कर नहीं जाता, वह हर हाल में साथ रहता है।
मिक्स पर्सनैलिटी डिसऑर्डर (Mixed Personality Disorder) एक मानसिक स्थिति है जिसमें व्यक्ति के अंदर अलग-अलग व्यक्तित्व लक्षण मौजूद होते हैं। यह किसी एक विशेष पर्सनैलिटी डिसऑर्डर से नहीं जुड़ा होता, बल्कि विभिन्न पर्सनैलिटी डिसऑर्डर के लक्षणों का मिश्रण होता है। इससे व्यक्ति के सोचने, महसूस करने और व्यवहार करने के तरीके में अस्थिरता आ सकती है, जिससे उनके निजी और सामाजिक जीवन पर प्रभाव पड़ता है।
मिक्स पर्सनैलिटी डिसऑर्डर के प्रभाव-:
नकारात्मक प्रभाव:
1. भावनात्मक अस्थिरता: व्यक्ति का मूड बार-बार बदल सकता है, जिससे वह कभी बहुत खुश और आत्मविश्वासी लगता है, तो कभी एकदम उदास और अकेला महसूस करता है।
2. रिश्तों में समस्या: ऐसे लोग कभी बहुत नज़दीक आ जाते हैं, तो कभी अचानक दूरी बना लेते हैं, जिससे उनके रिश्तों में तनाव आ सकता है।
3.आत्म-परिभाषा में भ्रम: वे खुद को समझने में कठिनाई महसूस करते हैं और यह तय नहीं कर पाते कि वे असल में कौन हैं।
4. आवेगपूर्ण निर्णय: अचानक गुस्सा आना, किसी बात पर ओवररिएक्ट करना, या बिना सोचे-समझे कोई बड़ा निर्णय लेना इस स्थिति के सामान्य लक्षण हैं।
5. तनाव और डिप्रेशन: लगातार मानसिक संघर्ष के कारण व्यक्ति में चिंता, तनाव और डिप्रेशन की समस्या हो सकती है।
6. आत्महत्या की प्रवृत्ति: गंभीर मामलों में, व्यक्ति को आत्महत्या के विचार आ सकते हैं, इसलिए समय पर सही उपचार आवश्यक है।
सकारात्मक प्रभाव:
1. रचनात्मकता: ऐसे लोग अक्सर बहुत क्रिएटिव होते हैं क्योंकि उनके अंदर भावनाओं की गहराई होती है। वे कला, लेखन या संगीत में गहरी रुचि रखते हैं।
2. समझदार और संवेदनशील: वे दूसरों की भावनाओं को गहराई से समझ सकते हैं और एक अच्छे श्रोता होते हैं।
3. समस्या-समाधान में कुशल: उनके पास अलग-अलग दृष्टिकोण से सोचने की क्षमता होती है, जिससे वे समस्याओं को नए तरीके से हल कर सकते हैं।
4. अनुकूलन क्षमता: ऐसे लोग विभिन्न परिस्थितियों में खुद को ढालने में सक्षम होते हैं, क्योंकि उनके व्यक्तित्व में लचीलापन होता है।
5. जोशीला व्यक्तित्व: जब वे सकारात्मक मनःस्थिति में होते हैं, तो वे बहुत प्रेरित, ऊर्जावान और उत्साही होते हैं।
डॉक्टरों की सलाह:
1. थेरेपी:
संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी (CBT): यह थेरेपी व्यक्ति को नकारात्मक सोच को पहचानने और उसे नियंत्रित करने में मदद करती है।
डायलेक्टिकल बिहेवियर थेरेपी (DBT): यह पर्सनैलिटी डिसऑर्डर के मरीजों के लिए विशेष रूप से उपयोगी होती है, जिससे वे अपनी भावनाओं को बेहतर ढंग से समझ और नियंत्रित कर सकते हैं।
2.मेडिकेशन:
डॉक्टर एंटी-डिप्रेसेंट्स या मूड स्टेबलाइजर दवाएं दे सकते हैं, लेकिन इन्हें बिना डॉक्टर की सलाह के नहीं लेना चाहिए।
3. माइंडफुलनेस और ध्यान:
नियमित योग, ध्यान और साँस लेने की तकनीकें व्यक्ति को मानसिक रूप से संतुलित रखने में मदद कर सकती हैं।
4. परिवार और दोस्तों का सहयोग:
मरीज को प्यार और समझ की जरूरत होती है। परिवार और दोस्तों को उनके साथ धैर्य रखना चाहिए और जज करने की बजाय उन्हें सपोर्ट करना चाहिए।
5.स्वस्थ जीवनशैली:
अच्छी नींद, हेल्दी डाइट और नियमित एक्सरसाइज से मानसिक स्वास्थ्य को सुधारने में मदद मिलती है।
मिक्स पर्सनैलिटी डिसऑर्डर एक जटिल लेकिन प्रबंधनीय स्थिति है। इसके नकारात्मक प्रभाव व्यक्ति के जीवन को प्रभावित कर सकते हैं, लेकिन सही उपचार और सहयोग से वे बेहतर जीवन जी सकते हैं। आत्म-जागरूकता, थेरेपी और एक सकारात्मक दृष्टिकोण से व्यक्ति अपने अंदर के द्वंद्व को संतुलित कर सकता है। सबसे ज़रूरी बात यह है कि मानसिक स्वास्थ्य को नजरअंदाज न करें और समय पर सही कदम उठाएँ।
“एक अच्छा मानसिक स्वास्थ्य, एक सुखद जीवन की कुंजी है।”
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