छठ पूजा, सूर्य देव और छठी मइया की आराधना का ऐसा महापर्व है, जो श्रद्धा, आस्था और समर्पण से भरपूर होता है। यह पर्व पूर्वी भारत, खासकर बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। छठ पूजा के पहले दिन की शुरुआत नहाय-खाय से होती है, जो व्रत और पवित्रता के संकल्प का पहला कदम होता है। यह दिन भक्ति और उमंग के साथ-साथ शुद्धता और संयम का प्रतीक है।
नहाय-खाय: शुद्धता की पवित्र रस्म
पहले दिन को नहाय-खाय कहा जाता है, और इसकी शुरुआत एक विशेष नियम से होती है। इस दिन व्रती यानी व्रत करने वाले लोग सूर्योदय से पहले उठकर पवित्र नदी, तालाब या घर के साफ-सुथरे स्थान पर स्नान करते हैं। स्नान के बाद, व्रती महिलाएं और पुरुष पूरी पवित्रता और साफ-सफाई के साथ भोजन तैयार करते हैं। यह भोजन शुद्धता और सात्विकता का प्रतीक होता है, जिसमें लौकी की सब्जी, चावल, और चने की दाल का प्रसाद शामिल होता है। भोजन पकाने के दौरान घर में एक अलग ही पवित्रता और भक्ति का माहौल होता है।
भक्ति में लीन गंगा घाट और तालाब
नहाय-खाय के दिन गंगा घाटों और तालाबों पर एक अद्भुत दृश्य देखने को मिलता है। भक्त सफेद और रंग-बिरंगे पारंपरिक परिधान पहनकर जल में स्नान करते हैं। महिलाएं पवित्र जल में दीप और फूल चढ़ाती हैं, और सूर्य देव से परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। चारों ओर से छठी मइया के गीत गूंजते हैं, जो माहौल को भक्तिमय बना देते हैं। इस दिन की तैयारियां और पवित्रता, व्रतियों के उत्साह को और भी बढ़ा देती हैं।
छठ पूजा की सबसे खास बात यह है कि यह पर्व परिवार और समाज को एक साथ जोड़ता है। पहले दिन के नहाय-खाय में परिवार के सभी सदस्य मिलकर तैयारियां करते हैं। घर के बड़े-बुजुर्ग पूजा की विधियां बताते हैं, तो युवा सजावट और प्रसाद बनाने में हाथ बंटाते हैं। हर कोई पूरे दिल से इस पर्व का हिस्सा बनता है। यह त्योहार केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि पारिवारिक और सामाजिक एकता का प्रतीक भी है।
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व्रत का संकल्प और विशेष भावना
पहले दिन नहाय-खाय के साथ ही व्रत करने वाले लोग अपना संकल्प ले लेते हैं। इस दिन के बाद से वे शुद्ध आहार का सेवन करते हैं और अपने मन को भक्ति में लगा लेते हैं। छठ का व्रत अत्यंत कठिन माना जाता है, क्योंकि इसमें चार दिनों तक कठोर उपवास रखा जाता है। लेकिन भक्तजन इसे पूरी श्रद्धा और समर्पण के साथ निभाते हैं।
उमंग और भक्ति से भरा वातावरण
छठ पूजा का यह पहला दिन भक्तों के दिलों में एक विशेष उमंग और उत्साह भर देता है। घर-घर में पूजा की तैयारियां शुरू हो जाती हैं। महिलाएं छठी मइया के गीत गाती हैं, बच्चे छठ पर्व की महिमा को समझते हुए उत्साहित रहते हैं, और हर तरफ भक्ति का संचार होता है। नहाय-खाय की रस्म के साथ ही छठ पूजा के चार दिनों की पवित्र यात्रा की शुरुआत हो जाती है।
छठ पूजा का यह पहला दिन सचमुच एक अनोखा अनुभव है, जो न केवल भक्तों की श्रद्धा और विश्वास को दर्शाता है, बल्कि हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की झलक भी देता है। यह पर्व हमें प्रकृति से जुड़ने, एक-दूसरे के साथ समर्पित होने और समाज में सामूहिकता की भावना को मजबूत करने की प्रेरणा देता है।
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