आइसक्रीम खाना तो हर इंसान को पसंद आता है। मस्त ठंडी ठंडी, जमी हुई आइसक्रीम हाथ में हो, कड़कती गर्मी हो, और थोड़ी-थोड़ी आइसक्रीम पिघल रही हो। वाह! मज़ा आता है। लेकिन, कई बार इतनी गर्मी होती है और आइसक्रीम जल्दी पिघल जाती है। तब बहुत दुःख होता है। ऐसे में हमारी आत्मा चीखकर बोलती है कि काश ऐसी आइसक्रीम बन जाए जो पिघले ही ना। आराम से घर जाकर खोलें तो वैसी की वैसी जमी रहे।
और हमारी यही मनोकामना जापान ने सुन ली। जी हाँ, जापान ने एक ऐसी आइसक्रीम बनाई है जो कई घंटों तक वैसी की वैसी ही रहती है। पिघलती नहीं है। हो गए न हैरान! और ऐसा इसलिए नहीं है क्योंकि इसमें डाइग्लिसराइड्स, कैरेजेनन या पॉलीसोर्बेट 80 शामिल है। यह तो बस एक पुरानी सामान्य सी आइसक्रीम है। बस इसमें एक छोटा सा बदलाव है।
इस आइसक्रीम की बनने के पीछे की कहानी बहुत ही दिलचस्प है। इसको इंटेंशनली नहीं बनाया गया था। यह गलती से बन गई थी। दरअसल इस कहानी की शुरुआत 2011 में हुई थी। उस साल जापान में तोहोकू भूकंप और सुनामी आया था जिसने जापान को तबाह कर दिया था और जिसकी वजह से Fukushima Daini Nuclear Power Plant पिघल गया था। जब यह तबाही का असर कम हुआ तो वहां के एक शेफ को यह पता लगाने का काम सौंपा गया था कि स्ट्रॉबेरी से निकाले गए रसायन स्ट्रॉबेरी पॉलीफेनोल का क्या किया जाए।
उस दौरान स्ट्रॉबेरी पूरी तरह से ख़राब हो गई थी। और कोई भी ऐसी सड़ी हुई, अलग शेप की स्ट्रॉबेरी नहीं खरीदना चाहता था। जापान के बायोथेरेपी डेवलपमेंट रिसर्च सेंटर ने सोचा कि सभी स्ट्रॉबेरीज को बर्बाद करने के बजाय, पॉलीफेनोल के साथ कुछ किया जा सकता है। उन्होंने पेस्ट्री शेफ से इसके साथ एक डिजर्ट बनाने के लिए कहा। प्रयोग तो ठीक रहा, लेकिन समस्या यह थी कि जब भी वह क्रीम में पॉलीफेनोल मिलाता था, वह तुरंत सख्त हो जाती थी।
और बस फिर क्या था। यह एक्सपेरिमेंट सफल होते ही उनको एक आईडिया आ गया। पॉलीफेनोल तरल में पानी और तेल को अलग करना मुश्किल बनाने के गुण होते हैं, जिससे कि इसमें मौजूद पॉप्सिकल क्रीम के मूल आकार को सामान्य से अधिक समय तक बनाए रखने में सक्षम होगा और पिघलना मुश्किल होगा।
इस तकनीक के साथ, तोमिहिसा ओटा और उनकी रिसर्च टीम ने कनाज़ावा आइस पॉप्सिकल्स बनाई थी। यह पॉप्सिकल्स हर तरह की सिचुएशन को हैंडल कर सकती है जिसे साधारण पोप्सिकल नहीं कर सकती।
क्या आपको भी अब यह आइसक्रीम खाने की इच्छा हो गई ? अगर हां तो अफ़सोस इसे खाने के लिए आपको जापान जाना होगा। यह टेक्नोलॉजी अभी तक जापान से बाहर नहीं आई है।
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