1.दो लोगों के मध्य मित्रता थी.. विश्वास पनापता रहा … संतुलन और सामंजस्य बढ़ता गया … धैर्य तो असीम देखा गया .. ख़ूब बातें होती रहीं.. सुख -दुःख साझा किये गए.. दोस्ती किसी प्रकार की दुविधा के बिना ऊपर के रास्ते की सीढियाँ चढ़ती गई..महिला मित्र ने अपनी सारी पीड़ाएं और परेशानियों से जूझते हुए आख़िरकार किसी रोज़ अपने पुरुष मित्र को अपना राज़दार बनाकर अपने जीवन को हौसले से भरकर थोड़ा आसान कर लिया .. अब रोज़मर्रा की कठिनाइयों से जूझने की ताकत उसको मिलने लगी.. सब कुछ सामान्य और सुंदर चलता रहा… मित्र सदैव उसे हिम्मत देता रहा..
फिर किसी रोज़ महिला को पता चला कि – उस भले मानुष ने उसके अनगिनत कॉल्स उसे बिना बतलाये रिकॉर्ड कर लिए हैं … महिला जानती है कि – वह मित्र कभी रिकॉर्ड किये गए उन तमाम फ़ोन कॉल्स का उसके खिलाफ़ गलत उपयोग नहीं करेगा… लेकिन यहां सवाल ये उठ खड़ा होता है कि – क्या बिना बताए किसी की डायरी पढ़ाना, अलमारी खोलना, पर्स या दराज टटोलना ही केवल अप्रिय घटना या क्रिया की फ़ेहरिस्त में शामिल किये गए काम होते हैं … दो लोगों के बीच लाख दोस्ती होने के बावजूद भी, क्या किसी के भावुक पलों में कही गई बातों या अहसास को उसे बिना बतलाये रिकॉर्ड किया जाना शर्मनाक नहीं….कभी -कभी गहराई वाली मित्रता में भरोसे ऐसे भी तो टूटटे हैं न…
2.दूसरी घटना में अक्सर ये देखा या सुना जाता है कि – घर की ऊपरी तौर पर सफाई करने वाले, घर के तमाम लोगों के कपड़ों की इस्त्री करने वाले, आपकी बागवानी में मदद करने वाले, आपकी गाड़ी को धो पोंछकर साफ करने वाले स्टॉफ़ या फिर मालिश करने आई बहनों के. मुंह पर लोग केवल इसीलिए चिढ़कर दरवाज़ा बंद कर देते हैं कि – अभी तो बीबी जी घर पर नहीं है..अभी ऐसे किसी काम की हमें ज़रूरत नहीं.. जब वो घर पर रहे तब उनसे फ़ोन पर पूछकर आना.. और फिर दरवाज़ा धम्म से बंद…
अब अपने इसी कार्य को ज़रा देर ठहर कर सोचिए तो भला..यह कितनी असंवेदनशील घटना हुई कि -आप समाज के एक जागरूक ज़िम्मेदार नागरिक तो हैं लेकिन मात्र अपने दोस्तों के लिए..रिश्तेदारों के लिए.. और अपने जैसे समान ओहदे वालों के लिए .. यक़ीन मानिए, आपके इस तरह के बेरुखी से भरे व्यवहार की चर्चा आपके ही समाज में आपके पीठ पीछे ख़ूब तबियत से होती है..
यहां ज़रा रुकिए, समभ्रान्त बनने से पहले मनुष्यता को अपनाइये…अपने चेहरे के मुस्कुराते गुलाब केवल अपनों पर ही नहीं उन पर भी बिखेरिए जो आपकी सेवा में सदैव तत्पर रहते हैं…
अपने घर दफ़्तर या मुहल्ले में काम करने वाले कामगारों से उनके सुख.. उनके दुःख अवश्य पूछिए …विश्वास कीजिये,हमारा और आपका उनके परेशानियों को पूछा जाना उन्हें आत्मिक बल और ऊर्जा से भर देगा..किसी रोज़ यूँ ही उनके परिधानों के रंगत की प्रशंसा करके देखिये या उनके स्वाभाव की किसी विशेषता को उजागर कर उस पर बात कीजिये…देखिएगा,यक़ीनन उनका चेहरा एकदम से ख़ुशी से खिल उठेगा…
- तीसरी घटना के तहत इन दिनों थोड़े -थोड़े अंतराल में किसी भी पास या दूर के पहचान वाले लोगों की आत्महत्या की ख़बरें अचानक देखने सुनने और पढ़ने को मिलती हैं.. निश्चित ही किसी भी इंसान की असामयिक मृत्यु हमारे आसपास के पूरे वातावरण को अपने बोझिल होते अंधकार से भरने लगती है.. यहां इस बात से पूरी तरह इत्तेफ़ाक़ रखा जाना चाहिए कि – जाने वाले व्यक्ति ने अपने संकट से लड़ने की ज़रूर कोशिशेँ की होंगी …ख़ूब सारे तरकीब भी सोचे होंगे.. मगर उस व्यक्ति की निजी समस्याएं उस पर हावी रही होंगी..
अब यहां अगर एक बात साफ़ और साकारात्मक तौर पर अपने समझ के परकोटे में बैठा लिया जाए तो शायद कोई निरीह बच भी सकता है..और वो ये कि – हमें समझना होगा दोस्तों कि – इस संसार में ऐसी कोई समस्या बनी ही नहीं जिसका कोई हल न या काट न बना हो… यानि सच में ये मान लीजिये कि – समाधान इस धरती पर पहले आये हैं.. समस्याएं उसके बहुत…. बहुत बाद में आयीं हैं …बस हम उस तक सही समय पर नहीं पहुंच पाते.. हम ज्ञान के अभाव में जूझ रहे होते हैं …. सही समय पर,सही दिशा में उठाया गया, सही कदम हमें हज़ार -हज़ार मौतों से बचा सकता है… बस हम इतनी सी बात को समझना नहीं चाहते या चाहकर भी स्वीकार नहीं कर पाते और अपना सारा हौसला एक समय के पश्चात खो देते हैं…
ख़ुद समझिये और दूसरों को भी समझाइये कि -हमें इसी समाज में रहते हुए इन्हीं से मदद मांगनी होगी …हाँ,…. हाँ…हर बार मांगनी होगी.. प्रतिष्ठा में प्राण न गंवाकर हमें अपनी परेशानियां साझा करनी ही होंगी बंधु ..यदि हम किसी जानकार के समक्ष अपनी बात प्रस्तुत ही नहीं करेंगे तो कोई कैसे हमारे प्रति करुणा, संवेदना या सहायता करने को इच्छुक होगा….
हमें अपने भीतर अपने आसपास के ईमानदार लोगों को.. मुहब्बत वाले लोगों को पहचानने की सलाहियत का विकास स्वयं समय रहते करना होगा.. और यही हमारे अपनों के लिए श्रेयष्कर सिद्ध होगा… वर्ना जब -जब हम ख़ुद को दुनिया से अलग करेंगे तब – तब लोग हमारे पीछे सवालों की लिस्ट लेकर हमारे अपनों को ढूंढ़ते फिरेंगे …
4.माना विश्व में यत्र तत्र सर्वत्र अंधकार भ्रष्टाचार व्याप्त है मगर उम्मीद और रौशनी की केवल एक किरण उन सभी बुराइयों का नाश करने को आज भी पर्याप्त है ..
इस पृथ्वी पर “सत्यमेव जयते” का ओज एवं विश्वास सदैव बना रहे..यही कामना हम सबकी होनी चाहिए..
वर्ना बशीर साहब ने तो बहुत पहले ही कहा है न –
दुश्मनी का सफ़र इक कदम दो कदम
तुम भी थक जाओगे हम भी थक जायेंगे
Voice artist, film critic, casual announcer in All India Radio Bilaspur, moderator, script writer, stage artist, experience of acting in three Hindi feature films, poetess, social worker, expert in stage management, nature lover, author of various newspapers, magazines and prestigious newspapers of the country and abroad. Continuous publication of creations in blogs
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