राजस्थान की राजनीति में चुनाव प्रचार-प्रसार के अंतिम दिन दोनों की पार्टियों ने अपनी एड़ी चोटी का जोर लगा दिया। आखिरी दिन कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी दोनों ही राजनीतिक दल ने जनमत के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी। दोनों ही राजीतिक पार्टियां राजस्थान में अपनी सत्ता बनाने में लगी हुई है। मतदान के ठीक पहले राहुल गांधी ने राजस्थान में मोर्चा संभाल लिया। उससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अकेले अशोक गहलोत दो-दो हाथ कर रहे थे।
लेकिन, अब यहां की स्थिति मौजूदा वक्त में पलट गई है। डर और खौफ का माहौल है। सामने राहुल गांधी खड़े हैं जिनकी छवि को लेकर मौजूदा राजनीतिक सत्ता के भीतर कप-कपी है। वे इस बात को लेकर डर रहे हैं कि जिस राजनीति को अभी तक वे करते चले आए हैं उसके सामने पहली बार असली राजनीति आकर खड़ी हो गई है। जो इस राजस्थान चुनाव ही नहीं बल्कि इस देश के लोगों से जुड़ी है। लेकिन, देखा जाए तो इन पांच राज्यों के विधानसभाओं को 2024 में होने वाले लोकसभा का सेमीफाइनल मान रही है। इसलिए ये दोनों ही राजनीतिक दल अपनी-अपनी कवायद में जुटे थे।
इस दूरदर्शिता के साथ ही सारे राज्यों को छोड़कर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सारे कैबीनेट मंत्रियों के साथ सत्ता में आने के लिए यहां मोर्चा संभाल लिया। यहां 2023 की विधानसभाओं में हार का मतलब है 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में खड़े न होने की स्थिति में आना। दोनों ही पार्टियों को अच्छे तरीके से पता है कि 2024 के चुनावों में जीत हासिल करने के लिए राजस्थान का किला जीतना बेहद जरूरी है।
चुनाव में बदलते दृष्टिकोण
जहां एक ओर दोनों पार्टियां पहले दिन से ही राजस्थान में जीत की गारंटी दे रही हैं, वहीं दोनों पार्टियों के भीतर टकराव की स्थिति को लेकर एक जैसा हाल है। ऐसा समझने के पीछे दोनों ही दलों का अंदरूनी झगड़ा है। जिस प्रकार भाजपा नेतृत्व पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से परेशान रहा है, वैसे ही कांग्रेस आलाकमान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के खुलेआम चल रहे झगड़े से। हालाकि वोटिंग की तारीख नजदीक आते-आते दोनों ही पार्टियों की ओर से एकजुट होने के संदेश दिए गए। इसे लेकर दिल्ली में बैठी भाजपा की सत्ता ने कहा कि इस बार न महारानी चलेंगी और न ही उनके प्यादे चलेंगे।
राजनीतिक स्थिति का मूल्यांकन
आज के दौर में कहीं न कहीं राहुल गांधी अपनी ऐसी छवि बना रहे हैं कि पीएम मोदी को अपनी सत्ता में डगमगाहट महसूस हो रही है। 2002 में देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने गुजरात पहुंच कर सीएम को राजधर्म का पाठ पढाया था और अब देश के प्रधानमंत्री को एक नया पाठ नए तरीके से राहुल गांधी ने दिया है। ये सवाल पनौती का बिलकुल नहीं है। क्योंकि पनौती राजस्थान के रण में खेल के सवाल का था। लेकिन, राजनीतिक मैदान में भी यह स्थिति आएगी या नहीं आएगी इसके लिए सभी को 3 दिसंबर तक का इंतजार करना पड़ेगा।
नेताओं की चुनौतियों का सामना
इन चुनावों में खेल राजनीतिक छवि का है। आज हम एक-एक कर के इनकी छवि के पन्नों को खोलेंगे। राहुल गांधी ने इस दौर में इस देश के प्रधानमंत्री, देश के गृहमंत्री, देश के सबसे बड़े कॉर्पोरेट गौतम अडानी को लेकर खुलेआम चुनावी रैली में गढ़ दिया।
21 नवंबर को राहुल गांधी ने बाड़मेर के बायतु में जनसभा को संबोधित किया था। इस दौरान उन्होंने कहा था- जब दो जेबकतरे किसी की जेब काटना चाहते हैं तो सबसे पहले क्या करते हैं। ध्यान हटाने का काम करते हैं। एक आता है आपके सामने और आपसे कोई ना कोई बातचीत करता है। आपका ध्यान इधर-उधर ले जाता है। पीछे से दूसरा आता है। जेब काट लेता है। चला जाता है। मगर जेबकतरा सबसे पहले ध्यान हटाता है। भाइयों और बहनों नरेंद्र मोदी जी का काम आपके ध्यान को इधर-उधर करने का और आपकी जेब काटने का है।
राहुल गांधी ने अपने बयान में कसा ये तंज पीएम मोदी के साथ देश में हो रही आर्थिक गड़बड़ियों और लूट को लेकर दिया गया है। राहुल ने जो पीएम मोदी के खिलाफ ये छवि 2019 में जो चौकीदार चोर है के नारे के साथ गढने की कोशिश की गई उससे हटकर है।
राजस्थान में चुनाव प्रचार-प्रसार के वक्त जहां एक ओर पीएम मोदी ने भ्रष्टाचार, कानून व्यवस्था, लाल डायरी, परिवारवाद को लेकर कांग्रेस को घेरा, तो राहुल गांधी ने अदाणी, ओबीसी, जातीय जनगणना और कांग्रेस की राज्य सरकार की उपलब्धियों को गिनाया।
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