राजस्थान में चुनाव प्रचार अपने अंतिम चरण में है। यहां 25 नवंबर को मतदान होना है। ऐसे में भाजपा हो या कांग्रेस आखिरी दम तक जनता को लुभाने की कोशिश में लगातार रैलियां कर रहे हैं। वहीं चुनाव प्रचार का हॉट स्थल बन गया है जाटलैंड जहां एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बड़ा दांव चला रहे है तो वहीं दूसरी ओर आरएलडी प्रमुक जयंत चौधरी ने भी भरतपुर में रैली कर गठबंधन सहयोगी कांग्रेस की सरकार बनाने का आव्ह्यान किया है। पर क्या आपको पता है ये राजनेता जाट को लेकर इतना तबज्जो क्यों दे रहे हैं?
दरअसल राजस्थान की राजनीति में राजपूत और ब्राह्मणों के अलावा जाट सबसे ज्यादा महत्व रखते हैं। 5 दफा विधायक और 2 बार मुख्यमंत्री बनने वाली वसुंधरा राजे भी इसका फायदा उठा चुकी हैं। 2003 और 2013 में चुनाव के दरमियान वे खुद को जाटों की बहू बता कर इसका पूरा लुफ्त उठाया था। कहा जाता है कि जिस सूबे की सियासत में जाट मतदाता चले जाए उस दल का जयपुर की गद्दी तक का रास्ता आसान हो जाता है।
राजस्थान में जाटों का समीकरण
राजस्थान में कुल 200 विधानसभा सीटें हैं। इनमें 142 सीटें सामान्य, 35 सीट अनुसूचित जाति और 25 सीटें अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए रिजर्व है। लेकिन दल के हिसाब से टिकट बंटवारें में सामान्य वर्ग में जैसे राजपूत कैंडिडेट्स को ज्यादा टिकट मिलते हैं। वैसे हीं ओबीसी में सबसे ज्यादा टिकट जाटों को बांटे जाते हैं।
राजस्थान में चाहे कांग्रेस हो या विपक्षी पार्टी भाजपा दोनों ही दलों का जोर जाट मतदाताओं को अपने पाले में लेने पर है। कांग्रेस ने 200 में से 36 सीटों पर जाट नेताओं को चुनावी जंग में उतारा है। तो वहीं दूसरी ओर 31 जाट सीटों पर भाजपा रण में उतर रही है। राजस्थान विधानसभा में 15 प्रतिशत से ज्यादा सीटों पर जाट का कब्जा रहता है। अब देखना यह होगा की जीत किसके पाले में जाती है।
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