सूरत में एक बेहद दुखद घटना घटी, जिसमें आठवीं कक्षा की 14 वर्षीय छात्रा, भावना खटीक ने आत्महत्या कर ली। छात्रा के परिजनों का आरोप है कि स्कूल प्रशासन ने उसकी फीस का बकाया होने की वजह से उसे शारीरिक और मानसिक रूप से उत्पीड़ित किया, जिसके कारण उसने यह आत्मघाती कदम उठाया।
राजू खटीक, भावना के पिता, जो पेशे से ऑटो चालक हैं, ने बताया कि उनकी बेटी को मकर संक्रांति से पहले परीक्षा में बैठने से रोका गया था, क्योंकि उसकी फीस बाकी थी। राजू ने स्कूल से अगले महीने फीस भरने का वादा किया था, लेकिन इसके बावजूद स्कूल ने उनकी बेटी को लगातार मानसिक प्रताड़ना दी। उन्हें बाथरूम के पास खड़ा किया जाता था, जिससे भावना तनाव में आ गई थी।
सोमवार को परिवार एक रिश्तेदार के घर गया हुआ था, और इसी दौरान भावना ने अपने घर में पंखे से फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। जब परिवार घर लौटा, तो उसने भावना को पंखे से लटका हुआ पाया। उसे तुरंत अस्पताल ले जाया गया, लेकिन तब तक उसकी मौत हो चुकी थी।
भावना के परिवार में उसके माता-पिता के अलावा दो बेटियां और एक बेटा हैं। परिवार आर्थिक तंगी से गुजर रहा था और राजू अपनी बेटी की पढ़ाई के लिए कड़ी मेहनत कर रहे थे। लेकिन स्कूल द्वारा लगातार उत्पीड़न ने उनकी बेटी को मानसिक रूप से इतना प्रभावित किया कि उसने अपनी जिंदगी से हार मान ली।
यह घटना एक गंभीर सवाल खड़ा करती है कि क्या स्कूलों को बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य और भावनात्मक स्थिति को समझने की आवश्यकता नहीं है? बच्चों को शिक्षा देने के साथ-साथ, उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से सुरक्षित और खुशहाल माहौल प्रदान करना भी हमारी जिम्मेदारी है। स्कूलों को फीस और अन्य प्रशासनिक मुद्दों को इस तरीके से नहीं निपटना चाहिए कि बच्चों के जीवन पर इसका बुरा असर पड़े।
पुलिस और शिक्षा विभाग इस मामले की जांच कर रहे हैं, और यह समय है कि स्कूलों में सुधार लाने के लिए कड़े कदम उठाए जाएं, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोका जा सके। बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे को गंभीरता से लिया जाना चाहिए और उनके अधिकारों का उल्लंघन करने वाले किसी भी व्यक्ति या संस्था के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए।

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