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गढ़ीमाई महोत्सव से बचाए गए 400 पशुओं को अब मिलेगा जीवनभर का आश्रय ,वनतारा ने किया वादा

गढ़ीमाई महोत्सव, जो भारत-नेपाल सीमा पर होने वाले एक क्रूर पशु बलि उत्सव के रूप में जाना जाता है, इस साल भी सुर्खियों में आया। हालांकि, इस बार इस महोत्सव के दौरान होने वाली अवैध पशु तस्करी पर सख्ती से लगाम लगी, और 400 से अधिक पशुओं की जान बचाई गई। ये पशु, जो गढ़ीमाई महोत्सव में बलि के लिए अवैध रूप से नेपाल ले जाए जा रहे थे, अब वनतारा के आश्रय में सुरक्षित हैं, जहां उनकी जीवनभर देखभाल की जाएगी।

वनतारा ने 400 पशुओं को दिया नया जीवन

वनतारा, जो अनंत अंबानी द्वारा स्थापित एक पशु देखभाल केंद्र है, अब इन 400 पशुओं की स्थायी देखभाल करेगा। इनमें 74 भैंसें और 326 बकरियां शामिल हैं। ये पशु बिहार और उत्तर भारत के विभिन्न राज्यों से अवैध रूप से नेपाल ले जाए जा रहे थे। इनकी तस्करी रोकने में सशस्त्र सीमा बल (SSB) और बिहार सरकार की महत्वपूर्ण भूमिका रही।

अवैध पशु तस्करी का खात्मा

इन पशुओं को पीपल फॉर एनिमल्स (PFA) और ह्यूमन सोसाइटी इंटरनेशनल (HSI) जैसी प्रमुख पशु कल्याण संस्थाओं के सहयोग से बचाया गया। इन संस्थाओं ने SSB के साथ मिलकर इस कड़ी कार्रवाई को अंजाम दिया। पशुओं की हालत बहुत खराब थी, क्योंकि इन्हें कई दिनों तक बिना भोजन और पानी के यातनापूर्ण यात्रा करनी पड़ी थी।

अब वनतारा में इन पशुओं का उपचार और पुनर्वास किया जाएगा। विशेष रूप से, 21 छोटे बकरों को, जिनमें विशेष देखभाल की आवश्यकता है, उत्तराखंड स्थित हैप्पी होम सेंक्चुरी भेजा जाएगा।

गढ़ीमाई महोत्सव की क्रूरता पर फिर से सवाल

गढ़ीमाई महोत्सव भारत और नेपाल के बीच एक विवादास्पद धार्मिक उत्सव है, जिसमें बड़े पैमाने पर पशु बलि दी जाती है। 2014 में, इस महोत्सव में 5 लाख से अधिक पशुओं की बलि दी गई थी, जिन्हें मुख्यतः भारत के विभिन्न राज्यों से अवैध रूप से नेपाल लाया गया था। इस महोत्सव को लेकर पिछले कुछ वर्षों में कई बार विरोध और विवाद उठ चुका है, क्योंकि इसमें पशुओं के प्रति क्रूरता की घटनाएं सामने आई हैं।

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने पशु तस्करी और अवैध परिवहन को रोकने के लिए सख्त निर्देश दिए थे, लेकिन बावजूद इसके, ऐसी घटनाएं लगातार होती रही हैं। यह बचाव अभियान इस बात का उदाहरण है कि हमें इन प्रथाओं को रोकने के लिए और भी सख्त कदम उठाने होंगे।

हमारा कर्तव्य और जिम्मेदारी

यह घटना यह दिखाती है कि सशस्त्र सीमा बल (SSB) और बिहार सरकार जैसी संस्थाओं का कार्य कितना महत्वपूर्ण है। उनका योगदान इस बचाव अभियान में अत्यंत सराहनीय था। साथ ही, वनतारा जैसे संस्थान और अनंत अंबानी का समर्थन भी पशु कल्याण के मामले में बहुत जरूरी है।

यह समय है जब हमें अपने समाज और संस्कृति के पहलुओं को पुनः मूल्यांकित करना होगा, और पशुओं के साथ होने वाली क्रूरता को रोकने के लिए कदम उठाने होंगे। हमें यह समझना होगा कि एक संवेदनशील समाज में हमें सभी जीवों के प्रति सम्मान और सहिष्णुता की भावना को बढ़ावा देना चाहिए।

बांगलादेश और नेपाल जैसे देशों में होने वाली इन क्रूर प्रथाओं पर नियंत्रण पाना कोई आसान काम नहीं है, लेकिन यह बचाव अभियान एक सकारात्मक कदम है। इस तरह के प्रयासों से न सिर्फ पशुओं की जान बचती है, बल्कि यह हमें यह भी सिखाता है कि हमारे समाज में संवेदनशीलता और कानूनी उपायों की आवश्यकता है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि अवैध पशु तस्करी और क्रूर बलि प्रथाओं पर पूरी तरह से काबू पाया जाए, ताकि ऐसे द्रुतगामी और क्रूर घटनाओं को भविष्य में रोका जा सके।