मेरठ के एक रिसॉर्ट में शादी समारोह का एक वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है। इस वीडियो में दिखाए गए दहेज और परंपराओं पर खर्च की रकम ने हर किसी को हैरान कर दिया है। क्या यह दिखावा है, या परंपराओं का पालन?
ढाई करोड़ नकद का दहेज: सबको चौंकाने वाली रस्म
सोशल मीडिया पर चर्चा में आए इस वीडियो में शादी समारोह के दौरान दहेज के रूप में 2.5 करोड़ रुपये नगद दिए जाने का दृश्य देखा जा सकता है। सूटकेस में भरे इस कैश को देख हर कोई दंग रह गया। यह घटना मेरठ-दिल्ली-देहरादून हाईवे के एक आलीशान रिसॉर्ट की बताई जा रही है।
वीडियो में नकदी के इस खुले प्रदर्शन को लेकर लोग सोशल मीडिया पर अलग-अलग प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं। कुछ इसे परंपराओं का हिस्सा मानते हैं, तो कुछ इसे फिजूलखर्ची और दिखावे की हद बता रहे हैं।
जूते चुराई पर 11 लाख: रस्म बनी चर्चा का विषय
शादी की मजेदार रस्मों में से एक है जूते चुराई। आमतौर पर इस रस्म में शगुन के तौर पर कुछ नकदी दी जाती है, लेकिन इस वायरल वीडियो में इस रस्म के तहत 11 लाख रुपये की पेशकश ने सबके होश उड़ा दिए।इतना ही नहीं, अन्य रस्मों के दौरान भी करीब 8 लाख रुपये नकद दिए गए। सोशल मीडिया पर यह वीडियो शादी में होने वाले खर्चों और दिखावे की हदों को लेकर बड़ी बहस छेड़ रहा है।
सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाओं की बाढ़
वीडियो वायरल होते ही सोशल मीडिया यूजर्स ने तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं दीं।
- कुछ लोगों ने इसे गलत संदेश देने वाला बताया: उनका कहना है कि ऐसी घटनाएं समाज में दहेज प्रथा को बढ़ावा देती हैं और इसे सामान्य बनाती हैं।
- कुछ इसे निजी मामला मानते हैं: उनके अनुसार, यह परिवारों की इच्छा और उनकी आर्थिक स्थिति का मामला है, इसमें दूसरों को दखल देने की जरूरत नहीं।
दहेज प्रथा: एक अनसुलझी कड़वी सच्चाई
दहेज का यह वायरल वीडियो समाज में गहरी समस्याओं को उजागर करता है। भले ही इसे “पारिवारिक मामला” कहा जाए, लेकिन यह परंपराएं न केवल आर्थिक असमानता को बढ़ावा देती हैं, बल्कि इसे शादी का अनिवार्य हिस्सा भी बना देती हैं।
ऐसी घटनाएं भले ही कुछ परिवारों के लिए व्यक्तिगत खुशी का मामला हों, लेकिन इससे समाज में एक नकारात्मक संदेश जाता है। दहेज के नाम पर ऐसे दिखावे न केवल गरीब परिवारों पर दबाव डालते हैं, बल्कि इसे एक अनिवार्य प्रथा भी बना देते हैं। समय आ गया है कि हम परंपराओं को नए नजरिए से देखें और समाज को ऐसे रिवाजों से मुक्त करें जो दबाव और असमानता को जन्म देते हैं।
शादी परिवारों का आपसी मिलन और खुशी का पर्व है। ऐसे में यह जरूरी है कि रस्में दिखावे और खर्चों के बोझ से मुक्त होकर सरल और सादगीपूर्ण हों। सवाल यह है कि क्या हम इस परंपरा को नई दिशा दे सकते हैं, या यह केवल दिखावे का खेल बनकर रह जाएगा?
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