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Wednesday, March 12   3:57:27

दुनिया के 20 सबसे जहरीले शहरों में 13 भारत के ; दिल्ली बनी ‘मौत की राजधानी’!

भारत की जहरीली हवा: सांस लेना भी खतरनाक!

भारत में प्रदूषण की स्थिति हर साल और भयावह होती जा रही है। स्विस एयर क्वालिटी टेक्नोलॉजी कंपनी IQAir की ताजा रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से 13 भारत के हैं। मेघालय का बर्नीहाट सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर घोषित हुआ है, जबकि दिल्ली दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी बन गई है।

रिपोर्ट के अनुसार, भारत को दुनिया का पांचवां सबसे प्रदूषित देश माना गया है। हालांकि, 2023 में यह तीसरे स्थान पर था, यानी पिछले साल की तुलना में थोड़ा सुधार हुआ है। लेकिन क्या यह सुधार राहत की बात है? जब देश के कई शहर अब भी WHO के तय मानकों से दस गुना ज्यादा प्रदूषित हैं, तो इसे प्रगति कैसे माना जा सकता है?

दिल्ली: दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी

दिल्ली की हवा अब जानलेवा बन चुकी है। IQAir के अनुसार, दिल्ली में PM 2.5 का औसत स्तर 91.6 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर दर्ज किया गया, जो WHO के सुरक्षित स्तर से 18 गुना ज्यादा है। यह वही दिल्ली है, जहां हर साल प्रदूषण से हजारों लोगों की जान चली जाती है। लेकिन क्या समाधान निकाला जा रहा है?

दिल्ली सरकार ने 31 मार्च से 15 साल पुराने वाहनों को पेट्रोल-डीजल न देने का फैसला लिया है। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या सिर्फ वाहनों पर रोक लगाने से हवा साफ हो जाएगी? जब तक उद्योगों से निकलने वाले जहरीले धुएं, निर्माण कार्यों से उड़ने वाली धूल, पराली जलाने और अनियंत्रित शहरीकरण पर नियंत्रण नहीं होगा, तब तक यह समस्या बनी रहेगी।

भारत में हर साल 15 लाख लोगों की जान ले रहा है प्रदूषण

एक रिसर्च के अनुसार, 2009 से 2019 के बीच हर साल 15 लाख भारतीयों की मौत वायु प्रदूषण के कारण हुई। ये आंकड़े डराने वाले हैं। PM 2.5 जैसे सूक्ष्म कण फेफड़ों में जाकर सांस की बीमारी, हार्ट अटैक और कैंसर तक का कारण बन रहे हैं। खासकर बच्चों और बुजुर्गों के लिए यह धीमा जहर बन चुका है।

दूसरी ओर, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे देश सबसे साफ हवा वाले देशों की सूची में शामिल हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि यदि सही कदम उठाए जाएं, तो प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सकता है।

क्या वाकई भारत में सुधार हो रहा है? या सिर्फ आंकड़ों का खेल?

रिपोर्ट कहती है कि भारत में PM 2.5 के स्तर में 7% की गिरावट आई है। लेकिन क्या यह कमी किसी बड़े बदलाव का संकेत है? जब देश के कई शहरों की हवा अब भी घातक है, जब बच्चे मास्क पहनकर स्कूल जा रहे हैं, जब सांस लेना ही बीमारी का कारण बन रहा है—तब 7% की गिरावट कोई राहत नहीं, बल्कि एक दिखावटी आंकड़ा है।

सरकारें केवल वाहनों पर प्रतिबंध लगाने की घोषणाएं कर रही हैं, लेकिन क्या वे उद्योगों पर भी ऐसी ही सख्ती दिखाएंगी? क्या कंस्ट्रक्शन साइट्स पर धूल कम करने के ठोस उपाय होंगे? क्या पराली जलाने की समस्या का स्थायी समाधान निकाला जाएगा? जब तक इन बुनियादी मुद्दों पर काम नहीं होगा, तब तक भारत की हवा ज़हरीली बनी रहेगी।

अब भी वक्त है—वरना आने वाली पीढ़ियां सिर्फ प्रदूषण ही सांस में भरेंगी!

भारत को अब केवल छोटी-मोटी नीतियों से नहीं, बल्कि व्यापक स्तर पर एक युद्ध स्तर की नीति अपनाने की जरूरत है। सरकार और नागरिकों को मिलकर यह समझना होगा कि अगर अभी कदम नहीं उठाए गए, तो भविष्य की पीढ़ियों को सांस लेने के लिए शुद्ध हवा भी नसीब नहीं होगी।

अब समय है कि सरकार सिर्फ बयानबाजी न करें, बल्कि ठोस फैसले लें! वरना, भारत धीरे-धीरे दुनिया का सबसे बड़ा ‘गैस चेंबर’ बन जाएगा!