08-09-2023
आज हम हिंदू धर्म के कई महान ग्रंथों में से एक श्रीमद्भागवत गीता में दिए life lessons के बारे में बात करेंगे यह lessons हमें जीवन जीने का तरीका बताते हैं। क्योंकि जो प्रश्न उस समय अर्जुन ने पूछे थे वह सिर्फ उस समय के लिए ही मायने नहीं रखते हैं बल्कि यह प्रश्न और समस्याएं हमें आज के जमाने में भी सताते हैं। जिंदगी की जंग में भागवत गीता की बातें हमें यह समझा सकती है कि हमें हर मुश्किल समय में खुद को कैसे स्थिर रखना चाहिए और हर परिस्थिति में कैसे काम लेना चाहिए।
1.) बुरे हालात कुछ ना करने से ही आ जाते हैं लेकिन अच्छे हालात पैदा करने के लिए एक्शन लेना पड़ता है।
भगवत गीता शुरू ही इस उद्देश्य के साथ होती है कि अगर आप कुछ हासिल करना चाहते हो लेकिन आप खुद कुछ करने के बजाए अपनी किस्मत को भगवान पर डाल देते हो कि वह आपका काम करें और आपकी लाइफ को बेहतर बनाएं तो ऐसे में आपको बुरा रिजल्ट ही मिलेगा। बिलकुल वैसे ही जैसे कि आपको गंदा होने के लिए कुछ नहीं करना होता बस बैठे रहो और आप गंदे हो जाओगे लेकिन साफ रहने के लिए आपको अपनी जगह से उठना पड़ेगा बाथरूम में जाना पड़ेगा और नहाना पड़ेगा ऐसा इसलिए क्योंकि हमारी बॉडी दुनिया के डिसऑर्डर से फाइट कर रही होती है और जो इंसान इस फाइट में इन एक्टिव हो जाता है वह इंसान अपनी जिंदगी के हर पहलू में हारता रहता है।
2.) बदलाव एक जीवन का नियम है इसलिए हर खुशी या दुख अस्थायी होता है।
अध्याय 2 के श्लोक 14 में श्री कृष्ण कहते हैं;
ओ कुंती पुत्र तुम्हारी इंद्रियां, आवाज, गंध, स्वाद या महसूस करे जाने वाली चीजों के संपर्क में आकर तुम्हारे अंदर ठंड, गर्मी सुख दुख या तनाव जैसी स्थिति पैदा करती हैं यह आस्थाई है यह जैसे आती हैं वैसे चले भी जाती हैं इसीलिए इन बदलावों को सहना सीखो।
सफलता या महारत हासिल करने के लिए एक इंसान को परिस्थितियों के हिसाब से ढलना होगा। बेहतर समाधान ढूंढने होंगे और अपनी उपलब्धियों को पहचानना होगा इसीलिए बदलाव को स्वीकार करो और हर परिस्थितियों में खुद को मजबूती से स्वीकार करना सीखो।
3.) अपना ध्यान अपने काम पर रखो उससे मिलने वाले फल पर नहीं।
यहां पर लक्ष्य बनाने की बात की जा रही है ज्यादातर लोग यह तो डिसाइड कर लेते हैं कि उन्हें क्या प्राप्त करना है। लेकिन वह कभी भी अपने लक्ष्य के रास्ते में आने वाले मुसीबतों को पार नहीं कर पाते यहां तक कि महाभारत में भी जब द्रोणाचार्य अपने छात्रों को तीरंदाजी सिखा रहे होते हैं और उन्हें कहते हैं कि वह पेड़ पर रखी चिड़िया की आंख पर निशाना लगाना है और फिर वह अपने सभी शिष्यों से पूछते हैं कि उन्हें क्या दिख रहा है; तो किसी ने कहा की उन्हें डाली पर बैठी चिड़िया दिख रही है तो किसी ने बोला पूरा पेड़ और उस पर बैठी चिड़िया लेकिन जब अर्जुन से पूछा गया कि उन्हें क्या दिख रहा है तो उन्होंने जवाब दिया कि उन्हें सिर्फ और सिर्फ चिड़िया की आंख दिखाई दे रही है। ना ही वह डाली जिस पर वह बैठी है, ओर ना ही चिड़िया का शरीर और ना ही वह पेड़ सिर्फ और सिर्फ चिड़िया की आंख ही दिखाई दे रही है। और जब अर्जुन तीर चलाते हैं तो वह सीधा चिड़िया की आंख पर ही लगता है।
बिल्कुल ऐसे ही हमें भी अपने लक्ष्य के रास्ते में बहुत सी मुसीबतें और रुकावटें मिलेंगी और हमारे ध्यान को बिना उपयोगी चीजों की तरफ मोड़ेगी इसलिए अपना ध्यान किसी एक लक्ष्य पर इतना गहराई से लगाओ कि, आपको बाकी कोई चीज दिखे ही ना।
4.) आप वह बनते हो जो आप अपने आप को मानते हो।
Belief एक बहुत ही ताकतवर चीज है यह एक बीमार इंसान को भी ठीक कर सकती है। एक दुखी इंसान को खुश कर सकती है। और नाकामयाब इंसान को तरक्की भी दिला सकती है। हर इंसान पहले अपने दिमाग को यह Belief कराता है कि वह कुछ बड़ा करने के लायक है और उसके बाद ही उसमें वह लक्ष्य अचीव करने की हिम्मत आती है।
इसीलिए आप भी अपने आप पर विश्वास करो कि आप भी मुश्किल कामों को करने के लिए तैयार हो और अपना लक्ष्य हासिल कर सकते हो आप अपने डर को काबू करो क्योंकि आप वही बनते हो जो अपने आप को मानते हो।
5.) कायरता और डर सफलता के दुश्मन है।
डर हमारे सबसे पुराने इमोशंस में से एक है जो हमें अपनी क्षमताओं पर शक करवाता है और यह तब बाहर आता है जब हम या तो किसी परिस्थिति को पूरी तरह से समझ नहीं पाते या फिर जब हम अपने इमोशंस को मैनेज नहीं कर पाते यह डर हमें कायर बनाता है और अपने लक्ष्य से भटकाता है। इसीलिए हमेशा बुद्धिमानी और नॉलेज का पीछा करो क्योंकि यही दो चीजें हैं जो हमें विपरीत परिस्थिति में बहुत ज्यादा सहायता करती हैं।
6.) आपका दिमाग या तो आपको आबाद कर सकता है या फिर बर्बाद।
अध्याय 6 के श्लोक 5 में श्री कृष्ण कहते हैं;
हर इंसान को अपने आप को अपने मन से ऊपर उठाना चाहिए वरना वह आगे बढ़ने की बजाय पीछे गिरते जाएंगे यह सच है कि मन हमारा सबसे अच्छा दोस्त भी बन सकता है और सबसे बुरा दुश्मन भी।
अगर आप अपने मन के मालिक नहीं हो तो आप उसके गुलाम हो और जो कि आपको धीरे-धीरे बर्बाद कर देगा इसी वजह से श्री कृष्णा हमें अपने अवचेतन मन को जागृत करने की बात कहते हैं।
7.) अपने इमोशन और दिमाग को मास्टर करने का सबसे पहला कदम हमारी इंद्रियों से शुरू होता है।
हर ऐसी चीज जो हमें अपने लक्ष्य से भटकाती है। उसे लालसा बोला गया है जैसे आप का लक्ष्य है कि आपको अपना मोटापा कम करके हेल्दी रहना है। लेकिन अगर आप हफ्ते में कई बार आइसक्रीम या चॉकलेट खा लेती हो तो आप उन चॉकलेट और आइसक्रीम के पीछे मिलने वाले टेस्ट के लालसी हो चुके हो। या अगर आपका लक्ष्य है टेस्ट में अच्छे मार्क्स लाना लेकिन आप बार-बार सोशल मीडिया या अपना मोबाइल चेक कर रहे हो तो आप उनके पीछे lust कर रहे हो।
अध्याय 3 के श्लोक 40 में श्री कृष्ण कहते हैं;
यह माना जाता है कि वह इंद्रियां, मन और बुद्धि होती है जिनमे ये lust घुस कर बैठा होता है और एक इंसान की सोचने की शक्तियों को दबा रहा होता है इसलिए सबसे पहले अपनी इंद्रियों को काबू करो उनके संपर्क में आने वाली चीजों को बदलकर।
सीधी सी बात है अगर आप अपने मुंह, कानो या दिमाग में गंदगी डालोगे तो बाहर भी गंदगी ही आएगी।
8.) रोज ध्यान करो।
ध्यान की मदद से आप अपने अंदर का सारा डर, तनाव और चिंता, संदेह से सीधा छुटकारा पा सकते हो। इसके साथ ही श्री कृष्ण अर्जुन को समझाते हैं कि मेडिटेशन आपको यह समझा सकता है कि आप अपने शरीर और खयालों से परे हो और आपके अंदर एक ऐसी चीज है जो कभी मर नहीं सकती। इसी सच को जानने के बाद आप खुद को अच्छे से जान लोगे इससे आप दूसरों की एक्सेप्टेशन से फ्री हो जाते हो और एक नई तरह की संतुष्टि हासिल करते हो।
9.) अपना धर्म करते रहो
धर्म एक ऐसा शब्द है जो यह दर्शाता है कि कोई काम ऐसा है जो उस काम को करने वाले से भी बड़ा है। ज्यादातर लोग अपनी जिंदगी में जरूरत के समय एक्शन इसलिए नहीं ले पाते क्योंकि वह एक्शंस को अपने लाभ हानि के लिए देख रहे होते हैं और यही कारण हमारे सपनों का है। हम सोचते हैं कि हम इतनी मेहनत करके कोई ऐसा काम करें जो दूसरों की लाइफ को बेहतर बनाएं लेकिन हम सिर्फ अपना ही काम करते हैं जितने में हमारा सपना पूरा हो सके। लेकिन यह सपने की भूक कभी ना बुझने वाली आग की तरह होती है।
श्री कृष्ण कहते हैं कि पृथ्वी हम इंसानों की कर्मभूमि है और यहां हमें हमारे कर्मों से ही जाना है इसीलिए कर्मों से दूर भागने की कोशिश मत करो जाना आपका Desireless action ही आपका कर्म है और आपका कर्म ही आपका धर्म है।
10.) आपकी जिंदगी आपके चुनाव का परिणाम होती है
अध्याय 18 के श्लोक 63 में श्री कृष्ण कहते हैं;
कि अर्जुन मैंने तुम्हें पूरी गीता का ज्ञान दे दिया है तुम उस पर चिंतन करो और यह चुनाव करो कि तुम क्या करना चाहते हो एक तरफ तुम्हारा धर्म है और दूसरी तरफ कायरता।
अर्जुन की तरह हम भी कई बार विपरीत परिस्थितियों को पाते हैं हालांकि कई लोग तो पैदा ही विपरीत परिस्थितियों में हुए होते हैं लेकिन इसके बाद भी हमें अपनी किस्मत को चुनाव करने की आजादी है। हमारे पास वह शक्तियां हैं जो हमें विपरीत परिस्थितियों को बदलने की शक्ति देती हैं क्योंकि हर इंसान अपने डिसीजन का ही परिणाम होता है। इसीलिए आप भी डिसाइड कर सकते हो कि आप अपनी लाइफ की डायरेक्शन को कहां मोड़ना चाहते हो सफलता की तरफ या आप फिर आलस्य की तरफ।
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