अभी देश कोरोनावायरस और ब्लैक वायरस जैसी बीमारियों से उभरा भी नही था की थोड़ी दिनों पहले ही व्हाइट फंगस नामक एक बीमारी ने दस्तक दे दी थी, लेकिन शायद यह बीमारियों की लहर अभी खत्म नहीं हुई है, जिसके चलते कल यानी सोमवार को गाज़ियाबाद के एक अस्पताल में एक मरीज में “येलो फंगस” नामक एक नई बीमारी की सृष्टि हुई है। इतना हिनाही, वैज्ञानिकों और डॉक्टरों का ऐसा मन ना है यह फंगस ब्लैक और व्हाइट फंगस से भी बेहद खतरनाक और जानलेवा हो सकता है, आगर इस बीमारी को सक्ति से नहीं लिया गया।
“येलो फंगस” को मुकोर सेप्टिकस का नाम दिया गया है। पीला फंगस का पहला मरीज हर्ष ईएनटी अस्पताल में मिला है। बताया जा रहा है कि इस मरीज में तीन लक्षण पाए गए हैं। उस मरीज़ की उम्र करीबन 34 साल बताई गई है। इसके साथ ही वह डाइबिटीज से भी पीड़ित है।
येलो फंगस होने का कारण?
येलो फंगस फैलने का कारण अनहाईजीन है। डॉक्टरों के मुताबिक अपने घर के आसपास साफ-सफाई रखें क्योंकि स्वच्छता से ही बैक्टीरिया और फ़ंगस बढ़ने से रोका जा सकता है।
येलो फंगस होने के लक्षण?
सुस्ती आजाना।
वज़न कम होना।
भूख या तो कम लगना या नहीं लगना।
कुपोषण या अंग विफलता।
आंखे अंदर के ओर धस जाना।
इन सब के बाद यह फंगस जैसे जैसे ज़्यादा बढ़ता जाता है, वैसे वैसे ही यह अपना भीषण रूप दिखाना शुरु करता है।
उसके लक्षण कुछ अलग होते हैं, जैसे की आगर कोई घाव है तो वो घाव भरने में लंबा समय ले सकता है, या उस घाव से मवाद का रिसाव शुरू हो सकता है
ज्यादा ख़तरा किसे?
डॉक्टरों का मन ना है की यह वायरस बहुत ज्यादा खतरनाक है। लेकिन ऐसे कुछ लोग हैं जिनके लिए यह वायरस बहुत ही ज्यादा खतरनाक साबित हो सकता है। कुछ विशेष लोगों के लिए इसका खतरा और भी बढ़ जाता है।
शीर्ष अमेरिकी हेल्थ एजेंसी सेंटर ऑफ़ डिजीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन या CDC के मुताबिक़, निम्नलिखित लोगों को येलो फंगस से ज्यादा खतरा है-
– जो लम्बे वक्त तक इंटेंसिव केयर यूनिट (ICU) में रहे हों।
– जिनका हाल ही में कोई ऑर्गन ट्रांसप्लांट हुआ हो।
– जिनकी इम्युनिटी कमज़ोर हो या जिसके वाइट ब्लड सेल्स काउंट कम हों।
– जो बहुत स्टेरॉयड या एंटीबैक्टीरियल का इस्तेमाल करते हों।
– जिनकी किडनी खराब हो या डायलिसिस पर रखा गया हो।
इसका इलाज क्या है?
पीले फंगस का इलाज एम्फोटेरिसिन बी इंजेक्शन है, जो एक एंटी-फंगल दवा है।
स्वास्थ्य मंत्रालय का क्या कहना है?
येलो फंगस से जुड़ी रिपोर्टों के बीच केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि ‘ब्लैक फंगस’ और ‘येलो फंगस’ जैसे शब्द भ्रामक हो सकते हैं। एम्स के निदेशक डॉ रणदीप गुलेरिया ने मामले को लेकर कहा है कि भ्रम से बचने के लिए इन संक्रमणों की पहचान उनके चिकित्सा नामों से की जानी चाहिए। उन्होंने साफ़ किया कि फंगल इन्फेक्शन संक्रामक बीमारी नहीं हैं।
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