02 Apr. Vadodara: दुनियाभर में 2 अप्रैल ‘वर्ल्ड ऑटिज्म अवेयरनेस डे’ के रूप में मनाया जाता है। आइए जानते हैं ऑटिज्म बीमारी के क्या कारण हैं और इस बीमारी से पीड़ित को कैसे बचा जा सकता है।
दुनियाभर में 2 अप्रैल ‘वर्ल्ड ऑटिज्म अवेयरनेस डे’ के रूप में मनाया जाता है। ऑटिज्म डे मनाने का उद्देश्य इस गंभीर बीमारी के प्रति लोगों को जागरूक करना है। इस बार ऑटिज्म अवेयरनेस डे 2019 की थीम ‘सहायक तकनीक, सक्रिय भागीदारी’ (Assistive Technologies, Active Participation) है। साल 2007 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने हर साल 2 अप्रैल को वर्ल्ड ऑटिज्म अवेयरनेस डे मनाने का ऐलान किया था।
ऑटिज्म बीमारी क्या है?
हेल्थ एक्सपर्ट के मुताबिक, ऑटिज्म एक प्रकार की मानसिक बीमारी है। इस बीमारी के लक्षण बचपन से ही बच्चे में नजर आने लगते हैं। इस बीमारी में बच्चे का मानसिक विकास ठीक तरह से नहीं हो पाता है। इस बीमारी से जूझ रहे बच्चे दूसरे लोगों के साथ घुलने-मिलने से कतराते हैं। ऐसे बच्चे किसी भी विषय पर अपनी प्रतिक्रियाएं देने में भी काफी समय लेते हैं।
क्यों होता है ऑटिज्म?
दुनियाभर में ज्यादातर लोग ऑटिज्म बीमारी से पीड़ित हैं। इस बीमारी का अभी वास्तविक कारण पता नहीं लग पाया है। लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि ऑटिज्म की की बीमारी जींस के कारण भी हो सकती है. इसके अलावा वायरस, जन्म के समय ऑक्सीजन की कमी भी ऑटिज्म को जन्म दे सकती है।
इस बीमारी पर हुई एक स्टडी में बताया गया है कि पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) से पीड़ित महिलाओं के पैदा होने वाले बच्चों में ऑटिज्म विकसित होने की अधिक आशंका रहती है। इसके अलावा प्रेग्नेंसी के दौरान महिला में किसी बीमारी या पोषक तत्वों की कमी भी उनके बच्चे को ऑटिज्म बीमारी का शिकार बना सकती है।
जानिये क्या होते हैं इसके लक्षण-
– ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे सामान्य बच्चों की तरह किसी भी बात पर प्रतिक्रिया देने से कतराते हैं। ऐसे बच्चे आवाज सुनने के बावजूद भी प्रतिक्रिया नहीं देते हैं।
– ऑटिज्म पीड़ित बच्चों को भाषा संबंधी भी कई रुकावटों का सामना करना पड़ता है।
– ऑटिज्म बीमारी से पीड़ित बच्चे अपने आप में ही खोए रहते हैं।
– अगर आपका बच्चा नौ महीने का होने के बावजूद न तो मुस्कुराता है और न ही कोई प्रतिक्रिया देता है तो सावधान हो जाएं, क्योंकि ये ऑटिज्म का ही लक्षण है.
-ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे कभी भी किसी से नजरे मिलाकर बात नहीं करते हैं।
– मानसिक विकास न होने की वजह से ऑटिज्म से जूझ रहे बच्चों में समझ विकसित नहीं हो पाती है, जिस कारण उन्हें शब्दों को समझने में दिक्कत होती है।
ऑटिज्म का प्रभाव
-ऑटिज्म पूरी दुनिया में फैला हुआ है। क्या आप जानते हैं वर्ष 2010 तक विश्व में तकरीबन 7 करोड़ लोग ऑटिज्म से प्रभावित थे।
-इतना ही नहीं दुनियाभर में ऑटिज्म प्रभावित रोगियों की संख्या मधुमेह, कैंसर और एड्स के रोगियों की संख्या मिलाकर भी इससे अधिक है।
-ऑटिज्म प्रभावित रोगियों में डाउन सिंड्रोम की संख्या अपेक्षा से भी अधिक है।
-आप ऑटिज्म पीडि़तों की संख्या का इस बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि दुनियाभर में प्रति दस हजार में से 20 व्यक्ति इस रोग से प्रभावित होते हैं।
-लेकिन कई शोधों में यह भी बात सामने आई है कि ऑटिज्म महिलाओं के मुकाबले पुरूषों में अधिक देखने को मिला है। यानी 100 में से 80 फीसदी पुरूष इस बीमारी से प्रभावित हैं।
बच्चों में ऑटिज्म की पहचान
बच्चों में ऑटिज्म को बहुत आसानी से पहचाना जा सकता है। बच्चों में ऑटिज्म के कुछ लक्षण इस प्रकार हैं।
-कभी–कभी किसी भी बात का जवाब नहीं देते या फिर बात को सुनकर अनसुना कर देते हैं। कई बार आवाज लगाने पर भी जवाब नहीं देते।
-किसी दूसरे व्यक्ति की आंखों में आंखे डालकर बात करने से घबराते हैं।
-अकेले रहना अधिक पसंद करते हैं, ऐसे में बच्चों के साथ ग्रुप में खेलना भी इन्हें पसंद नहीं होता।
-बात करते हुए अपने हाथों का इस्तेमाल नहीं करते या फिर अंगुलियों से किसी तरह का कोई संकेत नहीं करते।
-बदलाव इन्हें पसंद नहीं होता। रोजाना एक जैसा काम करने में इन्हें मजा आता है।
-यदि कोई बात सामान्य तरीके से समझाते हैं तो इस पर अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं देते।
-बार-बार एक ही तरह के खेल खेलना इन्हें पसंद होता हैं।
-बहुत अधिक बेचैन होना, बहुत अधिक निष्क्रिय होना या फिर बहुत अधिक सक्रिय होना। कोई भी काम एक्सट्रीम लेवल पर करते हैं।
-ये बहुत अधिक व्यवहार कुशल नहीं होते और बचपन में ही ऐसे बच्चों में ये लक्षण उभरने लगते हैं। बच्चों में ऑटिज्म को पहचानने के लिए 3 साल की उम्र ही काफी है।
-इन बच्चों का विकास सामान्य बच्चों की तरह ना होकर बहुत धीमा होता है।
आईये जानते हैं ऑटिज्म होने के कारण
अभी तक शोधों में इस बात का पता नहीं चल पाया है कि ऑटिज्म होने का मुख्य कारण क्या है। यह कई कारणों से हो सकता है।
-जन्म संबंधी दोष होना।
-बच्चे के जन्म से पहले और बाद में जरूरी टीके ना लगवाना।
-गर्भावस्था के दौरान मां को कोई गंभीर बीमारी होना।
-दिमाग की गतिविधियों में असामान्यता होना।
-दिमाग के रसायनों में असामान्यता होना।
-बच्चे का समय से पहले जन्म या बच्चे का गर्भ में ठीक से विकास ना होना।
आपको बता दें की लड़कियों के मुकाबले लड़कों की इस बीमारी की चपेट में आने की ज्यादा संभावना होती है। इस बीमारी को पहचानने का कोई निश्चित तरीका नहीं है, हालांकि जल्दी इसका निदान हो जाने की स्थिति में सुधार लाने के लिए कुछ किया जा सकता है। यह बीमारी दुनिया भर में पाई जाती है और इसका गंभीर प्रभाव बच्चों, परिवारों, समुदाय और समाज सभी पर पड़ता है।
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