भारत में धार्मिक संपत्तियों और उनके प्रशासन से जुड़ा वक्फ संशोधन कानून, 2025 एक बार फिर चर्चा के केंद्र में है। देश के कई राज्यों में इसका तेज विरोध हो रहा है, तो दूसरी ओर केंद्र सरकार इसे पारदर्शिता और निष्पक्षता लाने वाला कदम बता रही है। इस कानून को लेकर आज सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई होनी है, जो इसकी संवैधानिक वैधता तय कर सकती है।
सुप्रीम कोर्ट की दहलीज पर वक्फ कानून
सोमवार को CJI संजीव खन्ना ने इस मामले पर याचिकाओं की मेंशनिंग स्वीकार की और कहा कि वे दोपहर में याचिकाओं पर फैसला लेंगे। अब तक इस कानून को चुनौती देने वाली 6 याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर हो चुकी हैं, और आज राष्ट्रीय जनता दल (RJD) भी एक नई याचिका दायर करने वाला है।
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने इसे “बेहद महत्वपूर्ण” बताते हुए तत्काल सुनवाई की मांग की। जमीयत उलेमा-ए-हिंद समेत कई मुस्लिम संगठनों का मानना है कि यह कानून धार्मिक स्वतंत्रता और वक्फ की मूल भावना पर हमला है।
जम्मू-कश्मीर से मणिपुर तक विरोध
जम्मू-कश्मीर विधानसभा में सोमवार को इस कानून को लेकर भारी हंगामा हुआ। नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) के विधायक ने सदन में वक्फ कानून की कॉपी फाड़ दी और सदन की कार्रवाई स्थगित करनी पड़ी।
मणिपुर के थौउबल जिले में भी इसका असर देखने को मिला, जहां भीड़ ने वक्फ कानून का समर्थन करने पर भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के नेता असगर अली मकाकमयुम के घर को आग लगा दी।
5 अप्रैल को मिली राष्ट्रपति की मंजूरी
लोकसभा और राज्यसभा में क्रमशः 2 और 3 अप्रैल को लंबी चर्चा के बाद यह बिल पारित हुआ। 5 अप्रैल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इसे मंजूरी दी और गजट नोटिफिकेशन जारी हुआ।
सरकार का कहना है कि कानून का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों में हो रहे भ्रष्टाचार, अतिक्रमण और पक्षपात को रोकना है। लेकिन आलोचक इसे राजनीतिक चाल मान रहे हैं, जो मुस्लिम समाज की धार्मिक आजादी में दखल है।
कौन क्या कह रहा है?
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राहुल गांधी: यह कानून मुसलमानों पर हमला है और भविष्य में अन्य अल्पसंख्यकों को भी निशाना बनाएगा।
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मल्लिकार्जुन खड़गे: सरकार इसे अंबानी-अडाणी जैसे उद्योगपतियों को सौंपने की मंशा रखती है।
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महबूबा मुफ्ती: यह मुसलमानों की संस्थाओं पर डाका डालने जैसा है।
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जमीयत उलेमा-ए-हिंद: सभी राज्यों के हाई कोर्ट में याचिकाएं दाखिल की जाएंगी।
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AIMPLB: 11 अप्रैल से पूरे देश में विरोध प्रदर्शन की तैयारी है।
दिलचस्प बयान – क्या वक्फ सिर्फ मुसलमानों का है?
बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने इस बहस में एक नया मोड़ दिया। उनका कहना है कि वक्फ संपत्तियां अल्लाह की होती हैं, और गैर-मुस्लिमों का भी इसमें बराबर का हक है।
वहीं, मौलाना अरशद मदनी ने सवाल उठाया कि वक्फ बोर्ड में हिंदू सदस्यों की नियुक्ति क्यों की जा रही है। जमीयत ने इस मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर कर दी है।
वक्फ कानून पर उठी बहस सिर्फ धार्मिक अधिकारों की नहीं है, यह भारत के धर्मनिरपेक्ष चरित्र, अल्पसंख्यकों के अधिकार और राज्य की भूमिका पर भी सवाल खड़े करती है। यदि सरकार पारदर्शिता लाने का दावा कर रही है तो उसे सभी समुदायों की सहमति और विश्वास के साथ आगे बढ़ना चाहिए।
किसी भी कानून का असर लोगों की आस्था और अधिकारों से जुड़ता है, तो उसे जबरन थोपने की बजाय संवाद और सहमति का रास्ता चुना जाना चाहिए। वरना यह मुद्दा एक और सांप्रदायिक दरार बनकर उभरेगा।
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