भारत एक ऐसा देश है, जो दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का सपना देख रहा है। लेकिन दूसरी तरफ, हर गली-मोहल्ले में गरीबी का दर्द पल रहा है। बड़ी-बड़ी इमारतें तो खड़ी हो रही हैं, लेकिन हजारों लोग आज भी बुनियादी सुविधाओं के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
हर साल बजट के सफेद कागजों पर गरीबों के लिए नए वादे लिखे जाते हैं। योजनाएँ बनाई जाती हैं, जिनका मकसद गरीबों को बेहतर जीवन देना होता है। लेकिन क्या ये वादे कभी सच होते है या ये महज़ एक मायाजाल है जो सरकारी फाइलों के अंधेरों में खो जाता है?
2015 में मोदी सरकार ने प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई) की शुरुआत की थी। इस योजना का उद्देश्य 2024 तक गरीब और निम्न आय वर्ग के परिवारों को टिकाऊ और किफायती आवास प्रदान करना था। इस योजना ने यह सपना दिखाया कि देश में कोई भी गरीब खुले आसमान के नीचे नहीं सोएगा और हर परिवार के पास एक सुरक्षित और सम्मानजनक घर होगा।इस योजना का उद्देश्य सिर्फ मकान देना नहीं बल्कि बुनियादी सुविधाएं भी देना था ।
लेकिन यह सपना जमीनी स्तर पर भ्रष्टाचार और लापरवाही के दलदल में धंस गया है। सरकारी दफ्तर, ठेकेदार और बेईमान अफसरों की मिलीभगत के चलते गरीबों का पक्का घर पाने का सपना अधूरा रह जाता है।
हमने वडोदरा के अकोटा-रामपुरा इलाके में प्रधानमंत्री आवास योजना के लाभार्थियों से बातचीत की। यहाँ लोगों ने अपने गुस्से और हताशा को खुलकर व्यक्त किया। उन्होंने बताया कि आवास योजना के तहत घर मिलने के बाद उनकी ज़िंदगी पहले से भी बदतर हो गई है।
मकान की बनावट और खराब गुणवत्ता के कारण बिजली का बिल अधिक आता है। मकानों में पाइपलाइन की गुणवत्ता बेहद खराब है, जिससे जगह-जगह पानी का रिसाव होता है। यह न केवल असुविधा पैदा करता है, बल्कि दीवारों को भी नुकसान पहुँचाता है। घरों और उनके आस-पास के इलाकों में सफाई की उचित व्यवस्था नहीं है। कूड़ा-कचरा जमा होने के कारण बीमारियाँ फैलने का खतरा बढ़ गया है। लोगों ने बताया कि घरों की दीवारें दरारों से भरी हैं, छतें बारिश में टपकती हैं और फर्श जगह-जगह से उखड़ चुका है। यह सब घटिया निर्माण सामग्री के इस्तेमाल का नतीजा है।
प्रधानमंत्री आवास योजना का उद्देश्य गरीबों को सम्मानजनक जीवन देना था। लेकिन योजना के तहत बने घरों की हालत देखकर यह साफ होता है कि यह सपना अधूरा रह गया है।सरकारी ठेकेदारों ने कम लागत में ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए घटिया सामग्री का इस्तेमाल किया। इसके परिणामस्वरूप मकान बनने के कुछ ही महीनों में उनकी हालत जर्जर हो गई।
प्रधानमंत्री आवास योजना जैसी योजनाएँ गरीबों की मदद के लिए बनाई जाती हैं। लेकिन अगर जमीनी स्तर पर इनका क्रियान्वयन सही तरीके से न हो, तो ये योजनाएँ केवल कागजों में सिमटकर रह जाती हैं।जरूरत है कि सरकार इन योजनाओं पर कड़ी निगरानी रखे, भ्रष्टाचार पर सख्त कार्रवाई करे और सुनिश्चित करे कि योजनाओं का लाभ वास्तविक जरूरतमंदों तक पहुँचे।गरीबों के लिए मकान सिर्फ चार दीवारें नहीं, बल्कि एक बेहतर भविष्य की नींव है। अगर इन नींवों में दरारें होंगी, तो उनके सपने भी दरकते रहेंगे।
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