1 Mar. West Bengal: देश का चौथा सबसे बड़ा राज्य बंगाल है। बंगाल को आबादी के लिहाज से देश में चौथे नंबर पर कहा जाता है, लेकिन क्षेत्रफल के हिसाब से इसका 13वां नंबर है। 2011 की जनगणना के हिसाब से देखा जाए तो, पश्चिम बंगाल की आबादी 9.13 करोड़ थी, अब यह 10 करोड़ के करीब पहुंच चुकी है। बंगाल में 23 जिले हैं। 294 विधानसभा सीटों वाले बंगाल में इस बार मुख्य लड़ाई 10 साल से सत्ता में काबिज TMC और भाजपा के बीच दिख रही है। वहीं, 34 साल तक बंगाल में शासन करने वाला लेफ्ट मुख्य चुनावी मुकाबले में नजर नहीं आ रहा है।
कौन से तीन देशों की सीमाएं बंगाल को छूती हैं
आंतरिक सुरक्षा के हिसाब से पश्चिम बंगाल बहुत ही महत्वपूर्ण राज्य है। यह तीन देशों की सीमा को साझा करता है जिसमें नेपाल, भूटान और बांग्लादेश कि सीमा शामिल हैं। बांग्लादेश से लंबी सीमा छूने के कारण सीमावर्ती इलाकों में घुसपैठ की समस्या अक्सर देखी जाती है। पश्चिम बंगाल रूरल ओरिएंटेड स्टेट है। राज्य की 60% से ज्यादा आबादी गांवों में रहती है और जिसकी आमदनी का मुख्य जरिया खेती ही है। राज्य में शहरीकरण की रफ्तार काफी धीमी है।
पश्चिम बंगाल में धार्मिक जातीय की बात करें तो धार्मिक-जातीय लिहाज से बहुत विविधता वाला राज्य माना जाता है। राज्य की कुल जनसंख्या में 27% आबादी मुस्लिम है। यहां करीब 100 विधानसभा सीट पर मुस्लिम वोट निर्णायक हैं। 46 विधानसभा सीटों पर मुस्लिम जनसंख्या 50% से अधिक है।
समझते हैं इन बैठकों का गणित
पश्चिम बंगाल में विधानसभा की कुल 294 बैठकें हैं। 2016 के विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस ने यहां 211 सीटें जीती थीं। लेफ्ट-कांग्रेस के गठबंधन को 70 बैठकें हासिल हुई थीं। बीजेपी महज 3 सीटों पर जीत पायी थी। 10 सीटें अन्य के खाते में गई, लेकिन 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी के प्रदर्शन ने सबको चौका दिया था। 42 में से 18 सीटें जीतकर बीजेपी एक अलग पार्टी बनकर बंगाल में उभरी थी।
पिछले लोकसभा चुनाव में TMC ने 22 सीटें जीती थीं। वहीं 2 सीटें कांग्रेस के खाते में गई थीं। 34 साल तक बंगाल पर राज करने वाली CPM का लोकसभा चुनाव में खाता भी नहीं खुला था। अगर विधानसभावार देखें तो 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा 121 सीटों पर आगे रही थी। जबकि TMC ने 164 विधानसभा सीटों पर बढ़त बनाई थी।
पहले कांग्रेस, फिर लेफ्ट का गढ़ रहा बंगाल; अब 10 साल से ममता का है राज
1952 में कांग्रेस ने 238 में से 150 बैठकों पर जीत हासिल की थी। 1967 तक कांग्रेस की जीत का सिलसिला जारी रहा। 1967 में कांग्रेस और यूनाइटेड फ्रंट की गठबंधन सरकार बनी। 1972 में सिद्धार्थ शंकर रे की अगुवाई में कांग्रेस की अकेले वापसी हुई, लेकिन 60 का दशक राज्य के लिए हिंसा भरा रहा। यहीं से नक्सलवाद का आंदोलन भी शुरू हुआ, जिसने प्रदेश की राजनीति को बहुत प्रभावित किया। 1977 में वामपंथी सरकार बनने के बाद राज्य में स्थिरता आई।
34 साल के वामपंथी शासन के बाद 2011 में ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल की सरकार ने बंगाल में जगह बनाई। 2016 में भी ममता के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस ने जीत का परचम लहराया। 2021 के चुनावों में ममता बनर्जी अपनी सरकार बचाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही हैं, जबकि बीजेपी पहली बार राज्य में सत्ता को हासिल करने के लिए आक्रामक चुनावी अभियान छेड़े हुए है।
बीजेपी की जीत का सिलसिला
बंगाल कुल पांच जोन हिल्स, नॉर्थ, सेंट्रल, जंगलमहल और दक्षिण में बंटा हुआ है। भारतीय जनता पार्टी की जीत पर बात करें तो पार्टी की जीत का सिलसिला साल 2009 में पहाड़ों से ही शुरू हुआ था, जो नॉर्थ बंगाल का हिस्सा है। तब पार्टी ने दार्जिलिंग की लोकसभा सीट पर जीती थी।
जलपाईगुड़ी, कूचबिहार में वोट परसेंट बढ़ाया था। 2019 के लोकसभा चुनाव में पूर्व बंगाल की 8 में से 7 सीटें बीजेपी ने जीत ली थीं। कांग्रेस यहां सिर्फ एक सीट जीत हासिल कर सकी थी और तृणमूल एक भी सीट नहीं जीत पाई थी।
क्यों है बीजेपी के लिए बंगाल अहम?
पश्चिम बंगाल बीजेपी के लिए वैचारिक लिहाज से भी बहुत महत्वपूर्ण राज्य है, क्योंकि 19वीं सदी में अविभाजित बंगाल से ही हिंदू राष्ट्रवाद का विचार निकला था। भारतीय जनसंघ को स्थापित करने वालों में से एक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी भी बंगाल से ही थे। भारतीय जनसंघ ही बाद में बीजेपी के रूप में सामने आया। बंगाल की जीत पार्टी को 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में भी मदद करेगी और राज्यसभा में भी पार्टी की स्थिति और मजबूत होगी। इसके अलावा पूर्वी भारत का यही एक बड़ा राज्य है, जहां बीजेपी सरकार नहीं बना सकी है। जबकि उत्तर-पूर्व में आने वाले अरुणाचल, मेघालय, असम, त्रिपुरा में पार्टी जीत दर्ज कर चुकी है।
चुनावों में गर्म रहेगा CAA-NRC का मुद्दा
भारत के पूर्वोत्तर में स्थित असम में विधानसभा की 126 बैठकें हैं। 3.09 करोड़ की आबादी वाला असम जनसंख्या के हिसाब से देश का 15वां राज्य है। नागरिकता संशोधन विधेयक आने के बाद से यह असम में होने वाला पहला विधानसभा चुनाव है। असम में 61.47% हिंदू और 34.22% मुस्लिम मतदाता हैं।
असम के चुनावों में सबसे बड़ा मुद्दा CAA-NRC का है। 2016 में असम में भाजपा ने पहली बार सर्वानंद सोनवाल के नेतृत्व में सरकार बनाई थी। चुनावी माहौल के नजरिए से देखा जाए तो राज्य में मुख्य लड़ाई भाजपा-कांग्रेस के बीच है। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई की देहांत के बाद कांग्रेस के सामने फिलहाल चेहरे का संकट है। राज्य के मूल निवासियों की राजनीति करने वाली असम गण परिषद भी अपनी बैठकों की संख्या बढ़ाने की कोशिश करेगी।
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