19-01-23
सूरत के हीरा व्यापारी संघवी मोहन भाई की पोती और धनेश-अमी बेन की 9 साल की बेटी देवांशी ने संन्यास ले लिया। देवांशी का दीक्षा महोत्सव वेसू में 14 जनवरी को शुरू हुआ था। आज यानी बुधवार को सुबह 6 बजे से उनकी दीक्षा शुरू हो चुकी है। देवांशी ने 35 हजार से ज्यादा लोगों की मौजूदगी में जैनाचार्य कीर्तियशसूरीश्वर महाराज से दीक्षा ली।
अब वे साध्वी प्रज्ञाश्री कहलाएंगी। देवांशी के परिवार के ही स्व. ताराचंद का भी धर्म के क्षेत्र में एक विशेष स्थान था। उन्होंने श्री सम्मेदशिखर का भव्य संघ निकाला और आबू की पहाडिय़ों के नीचे संघवी भेरूतारक तीर्थ का निर्माण करवाया था।
सूरत में ही देवांशी की वर्षीदान यात्रा निकाली गई थी। इसमें 4 हाथी, 20 घोड़े, 11 ऊंट थे। इससे पहले मुंबई और एंट्वर्प में भी देवांशी की वर्षीदान यात्रा निकली थी। देवांशी 5 भाषाओं की जानकार है। वह संगीत, स्केटिंग, मेंटल मैथ्स और भरतनाट्यम में एक्सपर्ट है। देवांशी को वैराग्य शतक और तत्वार्थ के अध्याय जैसे महाग्रंथ कंठस्थ हैं।
देवांशी ने 8 साल की उम्र तक 357 दीक्षा दर्शन, 500 किमी पैदल विहार, तीर्थों की यात्रा व कई जैन ग्रन्थों का वाचन कर तत्व ज्ञान को समझा। देवांशी के माता-पिता अमी बेन धनेश भाई संघवी ने बताया कि उनकी बेटी ने कभी टीवी देखा नहीं, जैन धर्म में प्रतिबंधित चीजों को कभी इस्तेमाल नहीं किया। न ही कभी भी अक्षर लिखे हुए कपड़े पहने। देवांशी ने न केवल धार्मिक शिक्षा में, बल्कि क्विज में गोल्ड मेडल अर्जित किया। भरतनाट्यम, योगा में भी वह प्रवीण है।
देवांशी जब 25 दिन की थी तब से नवकारसी का पच्चखाण लेना शुरू किया। 4 महीने की थी तब से रात्रि भोजन का त्याग कर दिया था। 8 महीने की थी तो रोज त्रिकाल पूजन की शुरुआत की। 1 साल की हुई तब से रोजाना नवकार मंत्र का जाप किया। 2 साल 1 माह से गुरुओं से धार्मिक शिक्षा लेनी शुरू की और 4 साल 3 माह की उम्र से गुरुओं के साथ रहना शुरू कर दिया था।
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