26 जनवरी को गणतंत्र दिवस परेड के लिए कुछ झांकियों को मंज़ूरी नहीं मिलने के कारण केंद्र सरकार और संबंधित राज्यों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है.
सबसे अधिक आपत्ति पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने जताई है. इसके अलावा केरल ने भी गंभीर आरोप लगाए हैं.
ये ऐसे राज्य हैं जहां बीजेपी की सरकार नहीं है. इन तीन राज्यों ने केंद्र सरकार के इस फ़ैसले को संबंधित राज्यों के प्रतीकों को कमतर करके दिखाने के लिए लिया गया एक ‘राजनीतिक फ़ैसला’ बताया है.
जिन राज्यों की झांकियों को मंज़ूरी नहीं मिली है उनमें से दो राज्यों के मुख्यमंत्रियों (पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस संबंध में तल्ख़ चिट्ठी लिखकर अपना असंतोष ज़ाहिर किया है.
दूसरी ओर, केंद्र सरकार ने सफ़ाई दी है कि झांकियों के चयन का फ़ैसला विशेषज्ञ समिति कई मानकों के आधार पर करती है. समिति ने उचित प्रक्रिया और विचार करने के बाद ही कुछ राज्यों की झांकियों को मंज़ूरी नहीं दी है.
विशेषज्ञ पैनल कैसे करता है झांकियों का चयन
केंद्र के विशेषज्ञ पैनल (इस पैनल में कला, संस्कृति, चित्रकला, मूर्तिकला, संगीत, वास्तुकला, नृत्यकला और संबंधित क्षेत्रों के नामचीन लोग शामिल होते हैं) ने 12 झांकियों को चुना है.
वहीं रक्षा मंत्रालय ने राज्यों को बताया था कि इस वर्ष गणतंत्र दिवस परेड के लिए झांकी भारत@75-स्वतंत्रता संग्राम, विचार@ 75, उपलब्धियां@75, ऐक्शन्स@ 75 और संकल्प@75 विषयों पर होनी चाहिए.
तमिलनाडु के संदर्भ में विशेषज्ञ पैनल के साथ तीन बार राज्य के प्रस्ताव पर चर्चा हुई थी. वहीं पश्चिम बंगाल के मामले में, प्रदेश की मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया है कि उनके राज्य के प्रस्ताव को बिना किसी कारण के ही ख़ारिज कर दिया गया.
एक अधिकारी ने बताया कि केरल के समाज सुधारक श्री नारायण गुरु की झांकी के प्रस्ताव को पांचवीं बार की मुलाक़ात में मौखिक तौर पर मंज़ूरी मिली थी, लेकिन रक्षा मंत्रालय के स्तर पर इसे मंज़ूरी नहीं मिली.
पश्चिम बंगाल की झांकी
गणतंत्र दिवस समारोह के मौके पर होने वाली परेड में पश्चिम बंगाल की झांकी को शामिल नहीं करने के फ़ैसले पर सियासत लगातार गरमा रही है. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजे गए दो पन्नों के पत्र में इसे बंगाल के लोगों का अपमान और स्वाधीनता संग्राम में उसकी भूमिका को अस्वीकार करना बताया है.
वहीं बीजेपी नेता और मेघालय के पूर्व राज्यपाल तथागत राय ने भी अपने ट्वीट में प्रधानमंत्री से इस फ़ैसले पर पुनर्विचार करने की अपील की है.
तमिलनाडु का आरोप क्या है
राज्य के मुख्यमंत्री स्टालिन ने अपने खेद पत्र में लिखा है कि पहले समिति ने तमिलनाडु के प्रस्तावित झांकी के विषय पर संतुष्टि ज़ाहिर की थी. इस प्रस्तावित डिज़ाइन में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान तमिलनाडु के स्वतंत्रता सेनानियों को दिखाया गया था. इस डिज़ाइन में मशहूर स्वतंत्रता सेनानी वीओ चिदंबरनार को दिखाया गया था. चिदंबरनार ने अंग्रेज़ों का मुक़ाबला करने के लिए साल 1906 में स्वदेशी स्टीम नेविगेशन कंपनी की स्थापना की थी. हालांकि बाद में उन पर राजद्रोह के तहत चार्ज लगाकर उन्हें कालकोठरी में डाल दिया गया.
इसके अलावा सुब्रमण्यम भारती को भी इस डिज़ाइन में दिखाया गया था. सुब्रमण्यम भारती ने आज़ादी की लड़ाई के दौरान अपने देशभक्ति गीतों से और लेखों से लोगों में देशभक्ति की अलख जगाने का काम किया था. इस प्रस्तावित झांकी में घोड़े पर सवार, हाथ में तलवार लिए रानी वेलु नचियार की प्रतिमा को भी स्थान दिया गया था. उन्हें ‘वीरमंगई’ यानी एक बहादुर महिला के रूप में प्रेरक माना जाता है. इस झांकी में ईस्ट इंडिया कंपनी से मुक़ाबला करने वाले मरुधुपंधियार भाइयों की प्रतिमा को भी शामिल किया गया था.
केरल की आपत्ति
केरल के इस संबंध में अपने अलग अनुभव हैं. केरल की टीम को कहा गया था कि वह अपनी झांकी की थीम को आदि शंकराचार्य पर आधारित थीम से बदल दे.
एक अधिकारी ने नाम ज़ाहिर नहीं करने की शर्त पर बताया कि हमें आदि शंकराचार्य पर केंद्रित थीम से कोई आपत्ति नहीं थी, लेकिन वह एक नेशनल फ़ीगर हैं. ऐसे में केरल की टीम ने सुझाव दिया था कि महान समाज सुधारक और छुआछूत के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ने वाले श्री नारायण गुरु को झांकी में राज्य की ओर से दर्शाया जाए.
इस अधिकारी ने बताया कि शुरुआती चार दौर की चर्चा में इसी पर बात हुई.
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