पढ़ने का मन था तो मां ने मना कर दिया। 10 साल में दोगुनी उम्र के लड़के से शादी कर दी। पति ऐसा मिला कि एक अफवाह पर यकीन कर 9 महीने की गर्भवती होने के दौरान पेट में लात मारकर घर से निकाल दिया।ये कहानी है सिंधुताई सपकाल की, जो अब इस दुनिया में नहीं रहीं।
सिंधुताई कभी स्टेशन पर भीख मांगती तो कभी श्मशान घाट से चिता की रोटी खाती। दिन बदल रहे थे, पर सिंधुताई की जिंदगी नहीं।तभी एक दिन रेलवे स्टेशन पर सिंधुताई को एक अनाथ बच्चा मिलता है।मां के दिल में फिर से ममत्व की चिंगारी उठती है।धीरे-धीरे ये चिंगारी शोले में भड़कती है और शुरू होता है अनाथों का नाथ बनने का सफर।
उन्होंने शुरुआत में स्टेशन पर भीख मांगकर भी बेसहारा बच्चों का पेट भरा।अब बच्चे उन्हें माई कहकर पुकारने लगे थे।उन्होंने पुणे में सनमति बाल निकेतन संस्था भी शुरू की।उन्होंने 1500 से ज्यादा बच्चों को सहारा दिया।
भले ही आज सिंधुताई नहीं रहीं, लेकिन महाराष्ट्र में उनकी 6 बड़ी समाजसेवी संस्थाएं चल रही हैं।इनमें बेसहारा बच्चों के साथ-साथ विधवा महिलाओं को भी आसरा मिलता है।दिलचस्प है कि कभी परिवार से निकाली गईं सिंधुताई के परिवार में आज 382 दामाद और 49 बहुएं भी हैं।
सिंधुताई सपकाल का जन्म 14 नवंबर 1948 को महाराष्ट्र के वरधा जिले में हुआ था।
सिंधुताई को 2021 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।इसके अलावा उन्हें 750 से ज्यादा पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। उन्होंने हमेशा पुरस्कार राशि अनाथालयों में खर्च की।यही नहीं 2010 में उनकी बायोपिक बनी थी। मराठी भाषा में बनी बायोपिक का नाम ‘मी सिंधुताई सपकाल’ था। ये बायोपिक 54वें लंदन फिल्म फेस्टिवल के वर्ल्ड प्रीमियर के लिए भी चुनी गई थी।सिंधुताई सपकाल का मंगलवार को दिल का दौरा पड़ने से पुणे के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया।उनकी मौत पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी शोक जताया है।
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