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संस्कार ऐसे जहां बचपन और प्रकृति एक अनमोल रिश्ता बनाएं

“बचपन काग़ज़ की कश्ती सा, बहता जाए धार में, अगर मिले कुदरत की बाहें, हर लम्हा महकाए प्यार में।”

बचपन, प्रकृति की तरह ही निश्छल और स्वच्छ होता है। जैसे बीज मिट्टी में पोषित होकर विशाल वृक्ष बनता है, वैसे ही बच्चों का विकास भी प्राकृतिक परिवेश में अधिक स्वस्थ और संपूर्ण होता है। आधुनिक जीवनशैली में डिजिटल दुनिया ने बचपन को घेर लिया है, लेकिन अगर हम अपने नन्हें फूलों को कुदरत की गोद में खिलने दें, तो वे और भी सुंदर और मजबूत बन सकते हैं।
आज का हमारा ये आर्टिकल ऐसे ही एक यूनिक फोटो “संस्कार” एक्जीबिशन से जुड़ा है जिसका आयोजन “MSU University” के Faculty Of Fine Arts में डॉ धारा भट्ट द्वारा आयोजित  किया गया एवं इसका मुख्य उद्देश्य लोगों को ये आभाष कराना था कि वास्तव में आज के मोबाइल युग में भी किस प्रकार बच्चों को प्राकृति के साथ जोड़ कर एक अच्छी परवरिश दी जा सकती है और इस वाक्य को पूर्ण करते हुए डॉ धारा भट्ट कहती है कि इस प्रक्रिया में ना केवल बच्चे बेहतर होंगे साथ ही पैरेंट्स के स्ट्रेस भी कम होगा साथ ही बच्चों का मां बाप के साथ और प्रकृति और जानवरों के साथ एक भावनात्मक जुड़ाव बन पाएगा जो आज के डिजिटल दौर में कही ना कही लुप्त होता नजर आ रहा है !

पेड़-पौधों से दोस्ती करवाएँ” “Hug the tree & fell the wisdom” संस्कार ऐसे जो नेचर के साथ जोड़े
अग्नि,जल,आकाश,धरती,मृदा इन पांच तत्वों से मिलकर बने शरीर को प्रकृति से जोड़कर बच्चों को इनकी महत्वता से अवगत कराये !

“धरती माँ की गोद में, जो बीज प्रेम से बोएगा, वही आगे चलकर, छाँव और फल दोनों संजोएगा।”

बच्चों को पौधे लगाने और उनकी देखभाल करने के लिए प्रेरित करें। एक बीज से अंकुर फूटते देखना, उसमें हर दिन बदलाव देखना उनके भीतर धैर्य, ज़िम्मेदारी और प्रकृति के प्रति प्रेम को विकसित करता है। उन्हें बताइए कि पेड़ हमारी धरती के असली रक्षक हैं।

मिट्टी से खेलने दें
“नन्हें हाथों में मिट्टी हो, मन में हो सौ रंग, जहाँ मिट्टी महके, वहीं बचपन खिले संग।”
मिट्टी में खेलना बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास के लिए अत्यंत लाभदायक है। यह न सिर्फ उनकी इम्यूनिटी बढ़ाता है, बल्कि रचनात्मकता को भी निखारता है। घर में छोटे-छोटे माटी के खिलौने बनवाएँ या खेतों में खेलने दें, ताकि वे प्रकृति की ताकत को महसूस कर सकें।

खुले आसमान के नीचे खेलने दें
“बादल छूने की तमन्ना, और हवा से बातें करना, ये सब मुमकिन है, अगर खुले आकाश में उड़ना।”

बच्चों को सूरज की रोशनी में खेलने, बारिश की बूँदों को महसूस करने और घास पर नंगे पाँव दौड़ने दें। इससे वे स्वस्थ और ऊर्जावान बने रहेंगे। बाहर खेलने से न केवल उनकी शारीरिक फिटनेस सुधरती है, बल्कि मानसिक शांति भी मिलती है।

पक्षियों और जानवरों से परिचय करवाएँ

“गौरैया की चहचहाहट में, बचपन की किलकारियाँ हैं, हर जीव में प्रेम जगाना, इंसानियत की पहचान है।”
बच्चों को बताइए कि चिड़ियों की चहचहाहट सुबह की सबसे प्यारी धुन होती है। उन्हें पक्षियों को दाना डालने, गायों को चारा देने और जानवरों से प्रेम करने की आदत डालें। इससे उनके भीतर करुणा और सहानुभूति का विकास होगा।

डिजिटल दुनिया से निकालें, प्रकृति की गोद में बिठाएँ

“मोबाइल की दुनिया से ज़रा दूर चलें, जहाँ हवा में महक, और धूप के रंग मिलें।”

आज के समय में बच्चे स्क्रीन के इतने आदी हो चुके हैं कि वे असली दुनिया से दूर होते जा रहे हैं इसलिए बच्चों के मानसिकता को समझे साथ ही उन्हें प्रकृति में जाने के लिए प्रेरित करें—नदी किनारे पत्थरों से खेलें,जानवरों के साथ भावनात्मक रूप से जुड़े
“Compassion with kindness”जो आज कल के बच्चों के लिए जरूरी है बात संस्कारों की है और जुड़ाव जानवरों से इस पर डॉ धारा भट्ट का कहना है कि जानवरों और प्रकृति के साथ बच्चे का जुड़ाव आगे आने वाले समय में एक सुंदर याद होगी साथ ही बचा भावनात्मक रूप से मज़ूब होगा जो आने वाले भावी भविष्य के लिए आवश्यक है जो ना केवल ज्ञान को बढ़ावा दे बल्कि बच्चे में विवेकपूर्ण विचारों को भी जन्म दे सके
Accounding to Dr Dhara Bhatt “”Because there is a huge difference between knowledge and wisdom”

“बसंत की कोयल, सावन की फुहार, शरद की ठंडी हवा, हर मौसम है उपहार।”

प्रकृति है सबसे बड़ी गुरु
“धरती का हर कण, हमें कुछ सिखाता है, जो इसे पढ़ ले, वही असली ज्ञानी कहलाता है।”

इस पूरे लेख का सार यही है कि प्रकृति ही सबसे बड़ी शिक्षक है। बच्चों को इसके करीब लाकर हम उन्हें एक बेहतर, संवेदनशील और समझदार इंसान बना सकते हैं

“जहाँ कुदरत होगी साथ, वहाँ हर बचपन बनेगा खास!

इसी कड़ी में सुमित्रानंदन पंत जी की कविता याद आती है कि
धरती कहती, अंबर गाता,
नदियों की धारा संगीत सुनाती।
फूलों की भाषा, पंछी के बोल,
बचपन है कुदरत का अनमोल तोहफ़ा!
आओ इसे सँवारें,इसे अपनाएँ,
हरी-भरी धरती का गीत गाएँ।”