CATEGORIES

January 2025
M T W T F S S
 12345
6789101112
13141516171819
20212223242526
2728293031  
Friday, January 3   10:58:12

वैवाहिक बलात्कार- दंडनीय अपराध??

भारतीय कानून के हिसाब से रेप /बलात्कार एक अपराध है. जिसकी सजा भी निर्धारित है, कित्नु वैवाहिक बलात्कार अभी तक अपराध घोषित नहीं किया गया है।
चलिए इस मुद्दे को समझने की कोशिश करते है।
दरअसल मैरिटल रेप का अर्थ ऐसे सेक्स से होता है जिसमे पत्नी की सहमति नहीं होती है और उसके पति के द्वारा शारीरिक शक्ति या मानसिक क्षमता के ज़ोर से उसका यौन शोषण होता है।
भारतीय सामाजिक ढांचे में ऐसे कई क्षेत्र है जहां स्त्री का दर्जा पुरुष के दर्जे से बहुत नीचा है और ऐसा ही कुछ हमारीविवाह की व्यवस्था में देखने भी मिलता है।
दुनिया के मुकाबले, भारतीय सामाजिक ढांचे की स्तिथि काफी अच्छी है, परन्तु इसका अर्थ यह नही है की देश भर में सभी वैवाहिक सम्बन्धों में शांति और सहमति बनी हुई है।
भले ही भारत में दुनिया के मुकाबले कम तलाक होते हो पर इसका अर्थ यह नही है भारत में वैवाहिक हिंसा का नामो निशान ही नहीं है। 2020 में अप्रैल से जून के बीच भारत में घरेलू हिंसा के कुल 3582 केस दर्ज हुए थे जबकि आधे से ज़्यादा मुकदमे तो सामाजिक छवि बिगाड़ने के कारण से दर्ज भी नहीं होते।

कहने को भारतीय स्त्री विवाह के पश्चात अर्धांगिनी कहलाती है किंतु कई बार इस अर्धांगिनी को अपनी इच्छा प्रकट करने का मौका नहीं मिलता और उसकी इच्छा का सम्मान भी नहीं होता, एक पत्नी का बलात्कार उसी के पति द्वारा होता है जिसे समाज ने उसकी रक्षा करने का दायित्व दिया था।
यहां एक महत्वपूर्ण प्रश्न ये है कि जब बलात्कार को अपराध घोषित किया गया है तो वैवाहिक बलात्कार को अपराध क्यों नहीं घोषित किया जाता है।
इस मुद्दे के कई पहलू है जिन्हे हमे ध्यानपूर्वक समझना चाहिए।

पहला – यदि यह कानून बनता है तो यह साबित करना मुश्किल होगा कि बलात्कार हुआ था या नहीं। इसके लिए भारत को बाकी देशों का उदाहरण लेना
चाहिए जहां मैरिटल रेप को अपराध घोषित किया गया है। हमें उन देशों से सीखना चाहिए कि इस मुद्दे को उन्होंने कानून में किस प्रकार बदला।
दूसरा – देश भर में घरेलू हिंसा के कानून का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग हुआ है, तो क्या यह संभव है कि इस कानून का दुरुपयोग नहीं होगा।
तीसरा– इसके दुरुपयोग के डर से भारतीय पुरुष का विवाह की व्यवस्था से विश्वास उठ सकता है। यही मुद्दा देश के राजनीतिक और सामाजिक विशेषज्ञों को परेशान कर रहा है।
इन सभी बातों को मद्देनजर रखते हुए हम यह कह सकते है कि में इस कानून को लाने और लागू करने में परेशानी हो सकती है किन्तु इसकी जरूरत को अनदेखा बिल्कुल नहीं किया जा सकता।