CATEGORIES

November 2024
M T W T F S S
 123
45678910
11121314151617
18192021222324
252627282930  
Thursday, November 21   3:53:07

क्या है ये कालापानी की सजा, जिसे हर कैदी कांपता था

अंडमान निकोबार के द्वीप पर एक सेलुलर जेल स्थित है, यह जेल द्वीप की राजधानी पोर्ट ब्लेयर में बनी हुई है। इसे अंग्रेजों द्वारा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों को कैद करने के लिए बनाया गया था, जो कि भारत की भूमि से हजारों किलोमीटर दूर स्थित थी। “काला पानी” का अर्थ होता है समय या मृत्यु। यानी काला पानी शब्द का अर्थ मृत्यु के स्थान से है, जहां से कोई वापस नहीं आता। हालांकि अंग्रजों ने इसे सेल्यूलर नाम दिया था, जिसके पीछे एक हैरान करने वाली वजह है। यह जेल अंग्रेजों द्वारा भारत के स्वतंत्रता सेनानियों पर किए गए अत्याचारों का गवाह है। इस जेल की नींव 1897 ईस्वी में रखी गई थी और 1906 में यह बनकर तैयार हो गई थी। इस जेल में कुल 698 कोठरियां बनी थीं और प्रत्येक कोठरी 15×8 फीट की थी। इन कोठरियों में तीन मीटर की ऊंचाई पर रोशनदान बनाए गए थे ताकि कोई भी कैदी दूसरे कैदी से बात न कर सके। इतना ही नहीं, सजा पाने वालों को छोटे छोटे सेल या कमरे में एक दूसरे से अलग रखा जाता था।
और यह बात एक दम सच है कि, स्वतंत्रता पाने के लिए जो अपार कष्ट सेनानियों ने भोगे है, आज की पीढ़ी को उसका अनुमान भी नहीं है!

इस साढ़े तेरह फीट लम्बी और मात्र सात फीट चौड़ी सेल में भारत के स्वतंत्र सैनानी, अपनी भारत भूमि को स्वतंत्र करने के लिए अत्याचार सहन कर रहे थे। यह जेल गहरे समुद्र से घिरी हुई है, जिसके चारों ओर कई किलोमीटर तक सिर्फ और सिर्फ समुद्र का पानी ही दिखता है। इस जेल की सबसे बड़ी खूबी ये थी कि इसकी चहारदीवारी एकदम छोटा बनाया गया था, जिसे कोई भी आसानी से पार कर सकता था, लेकिन इसके बाद जेल से बाहर निकलकर भाग जाना लगभग नामुमकिन था, क्योंकि ऐसा कोशिश करने पर कैदी समुद्र के पानी में ही डूबकर मर जाते। 
इस जेल में कैदियों को कोल्हू का बैल बना कर रखा जाता था और काम के नाम पर ज़मीन से तेल निकलवाया जाता था। आये दिन भीषण अत्याचार और फांसी दिया जाना तो ऐसे आम बात थी। मनुष्य का मनुष्यों के प्रति घृणा और अपमान का इससे डरावना उदाहरण शायद और कोई नहीं हो सकता था।

अंडमान के इन कैदियों को जूट की बनी हुई पोशाक पहनाई जाती थी, अंग्रेजो द्वारा दी गई यह पोशाक की भी अलग ही एक कहानी है। कहा जाता है की यह पोशाक जुटे की बने होने की वजह से कैदियों की चमड़ी को तिल-तिल कर काटती थी और कई बड़ी तो चमड़ी छिल जाने के कारण इन्फेक्शन हो जाता था और कई कैदियों की इस वजह से मृत्यु भी हो जाती थी।
इस जेल का नाम सेल्यूलर पड़ने के पीछे भी एक वजह है। दरअसल, यहां हर कैदी के लिए एक अलग सेल होती थी जिससे हर कैदी को अलग-अलग ही रखा जाता था, ताकि वो एक दूसरे से बात न कर सकें। ऐसे में कैदी बिल्कुल अकेले पड़ जाते थे और वो अकेलापन उनके लिए सबसे भयानक होता था।  

अंतः आज की पीढ़ी से बस इतना ही अनुरोध है की लॉकडाउन को व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर आघात न मान कर इस देश की स्वतंत्रता का सम्मान कीजिये, इसको पाने के लिये किये गए त्याग को जानिए। इस राष्ट्र की अस्मिता आपकी नैतिकता पर निर्भर है।