भारत में अधिक्तर देखने को मिलता है कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में ज्यादा घर के काम करती हैं। अब बात यहां आती हैं पुरुष प्रधान समाज की! समाज में कहा जाता है कि पुरुषों का काम बाहर जाकर कमाने का और महिलाओं का काम घर पर रहकर घर के काम करने का है। लेकिन, वहीं जब आर्थिक मजबूरी होने की वजह से महिलाएं घर के बाहर जाती है तो ये समाज चुप हो जाता है।
उस वक्त महिलाएं घर का काम पूरा करने के बाद ही बाहर निकलती हैं। एक महिला पर घर के कामों की जिम्मेदारी के साथ बाहर के कामों का भी बोझ होता है। पुरुष भले ही घर पर हो, लेकिन पत्नि के होते हुए वो कभी घर के काम नहीं करता। घर के काम केवल झाडू, पोछा, बर्तन, कपड़े, खाना बनाना या बच्चों की देखभाल करना नहीं होता। इनमें कई ऐसे भी काम होते हैं जो इन कामों को करते-करते किए जाते हैं। ये काम दिखाई नहीं देते, लेकिन इन कामों को करना भी एक जिम्मेदारी होती है।
क्या घर के काम करने का अधिकार केवल महिलाओं का ही है। आज हमारे बीच महिला और पुरुषों के बीच समानता की बात की जाती है, लेकिन इस दौरान समानता कहां गुम हो जाती है? इसे स्पष्ट तौर पर अधिकार इसलिए कह रही हूं क्योंकि घर के काम उन्हें ऐसे सौंपे जाते हैं जैसे उन पर अहसान किया जा रहा हो। शादी करके यदि कोई महिला अपने ससुराल जाती है तो उसे ये कहा जाता है कि ‘अब तो तुम इस घर की मालकिन हो, संभालो इसे अपने हिसाब से,’ ये तो बस एक उदाहरण है पर ज्यादातर इसी प्रकार की बातें होती हैं।
द टाइम यूज सर्वे 2019 के अनुसार भारतीय महिलाएं हर दिन पुरुषों के मुकाबले तीन गुना घर का काम करती हैं। इसके साथ ही वे घर के बाकी सदस्यों से भी भावनात्मक रूप से ज्यादा जुड़ी होती है। पुरुषों के कंपेरिजन में वे घर के सदस्यों का ज्यादा ध्यान रखती हैं।
कोरोना महामारी के वक्त लॉकडाउन तो सभी को याद होगा जब पूरी दुनिया घर में कैद हो गई थी। उस दौरान घर के कामों में महिलाओं की भागीदारी और वहां लैंगिक समानता को लेकर काफी चर्चाएं की गई थी।
एक रिपोर्ट के अनुसार पाया गया है कि जिस दर से दुनिया आगे बढ़ रही है उससे ये नजर आता है कि महिलाओं और पुरुषों के बीच पूरी तरह बराबरी में 131 साल लग जाएंगे। इसे लेकर दुनिया धीरे-धीरे आगे बढ़ रही है।
लॉकडाउन में पुरुषों को घर के कामों को नजदीक से देखने और हाथ बंटाने का मौका मिला। उस वक्त उन्हें पता चला की महिलाओं की थोड़ी सी मदद कर उनका बोझ कम किया जा सकता है। लॉकडाउन के बाद देखा गया कि महिलाओं को काम से घर के बाहर जाने के बाद पुरूष घर पर रहकर बच्चों की देखभाल करने से लेकर घर के कामों में हाथ बटाने की कोशिश कर रहे हैं। मगर ऐसे पुरुषों की तादाद हमारे देश में बहुत कम है।
More Stories
वडोदरा के समा तालाब के पास क्यों हुआ फ्लाईओवर की डिजाइन में परिवर्तन? लागत दुगनी होने से किसका फायदा!
रविचंद्रन अश्विन ने क्रिकेट से लिया संन्यास, भारत के लिए बने दूसरे सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले गेंदबाज
संसद में अंबेडकर को लेकर हंगामा, जानें पूरा मामला