सुंदरलाल बहुगुणा- जिन्होंने “चिपको आंदोलन” को दुनिया तक पहुँचाया और तपस्या का जीवन व्यतीत किया, शुक्रवार को ऋषिकेश में कोविड के चलते उनका निधन हो गया है। वह अभी 94 वर्ष के थे। वह 8 मई को कोविड से संक्रमित पाए गए थे जिसके बाद उन्हें तुरंत ऋषिकेश के All India Institute of Medical Sciences में भर्ती करवाया गया था, लेकिन कल रात कोरोना के चलते उन्होंने दम तोड दिया।
बहुगुणा का जन्म 1927 में टिहरी में हुआ था; अपनी किशोरावस्था से, वह एक सामाजिक कार्यकर्ता थे। फिर मोहनदास गांधी से प्रेरित होकर वे एक राष्ट्रवादी और स्वतंत्रता सेनानी थे। वह हजारों किलोमीटर पैदल चलकर पहाड़ियों के अथक रक्षक थे। लेकिन यह चिपको आंदोलन था जिसने उन्हें राष्ट्रीय ध्यान में लाया।
यह बात सन 1974 की शुरुआती महीने की है जब, राज्य सरकार ने अलकनंदा नदी के ऊपर 2500 पेड़ों की नीलामी की घोषणा की, जो कीअब उत्तराखंड में स्थित है, जिसके बाद वहां गांव में पेड़ काटने के लिए कई सारे लकड़हड़े पहुंचे थे। एक स्थानीय लड़की ने उन्हें देखा और ग्रामीणों को सूचना दी। और फिर बड़ी संख्या में महिलाओं ने बाहर आकर पेड़ों को गले लगाकर लकड़हंडो को पेड़ो को कटने से रोका। तीन स्थानीय महिलाओं, गौरा देवी, सुदेशा देवी और बचनी देवी ने इसका समर्थन किया था। और उसके बाद तो उन्होंने पेड़ों को छोड़ने से इनकार कर दिया था।
इसने “चिपको आंदोलन” की शुरुआत को चिह्नित किया। लेकिन, दरासल यह वास्तव में विमला बहुगुणा नामक एक गांधीवादी कार्यकर्ता के दिमाग की उपज थी।
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