06-01-2023, Friday
લેખક: नलिनी रावल
प्रसिद्ध फोटोग्राफर और गुजराती साप्ताहिक चित्रलेखा की सह संस्थापक 92 वर्षीय मधुरी बेन कोटक का निधन हो गया है।उनकी चिर बिदाई से पत्रकार और फोटोग्राफी जगत में गमगिनी का माहौल है।उनको दिल से श्रद्धांजलि दी गई।
चित्रलेखा गुजराती साप्ताहिक की सह संस्थापक और जानिमानी फोटोग्राफर मधुरी कोटक का कल देर शाम उनके जुहू स्थित निवास स्थान पर 92 वर्ष की उम्र में निधन होने की खबर फैलने पर साहित्य, प्रकाशक ,पत्रकार, और फोटोग्राफी जगत में गामगिनी का माहौल है।आज विले पार्ले वेस्ट के अनंतयात्रा स्थल में उन्हें अंतिम बिदाई दी गई।
भावनगर में जीवराजभाई रूपारेल और दिवालीबेन रूपारेल के घर उनका जन्म हुआ। 9 भाई बहनों में वे चौथे नंबर की थी। 1949 में वजू कोटक के साथ उनका विवाह हुआ। लेकिन यह खूबसूरत दांपत्य जीवन शायद ईश्वर को भी रास नहीं आया,और 1959 में वजू कोटक का निधन हो गया।केवल 10 साल चले इस विवाह बंधन के छूटने से वे हारी नहीं। उन्होंने “चित्रलेखा,” “बीज” और “जी” मैगजीन का पूरा कार्यभार संभाल लिया। इन तीनों मैगज़ीन की लोकप्रियता में मधुरी बेन कोटक का अवर्णनीय योगदान रहा। चित्रलेखा परिवार की प्रेरणा मूर्ति मधुरी बेन कोटक ने अपने कार्यकाल की शुरुआत 60 से 70 के दशक में फोटोग्राफी से की। पत्रकारिता और फोटोग्राफी जगत की दिग्गज मधुरी बेन कोटक ने अपने पति वजू कोटक से पत्रकारिता और फोटोग्राफी के पाठ सीखे। चित्रलेखा की सह संपादक रही मधुरी बेन कोटक का चित्रलेखा के शुरू करने में बहुत बड़ा योगदान था ।शुरुआत में तो 80% लेख वजू कोटक ही लिखते थे। चित्रलेखा की सफलता में अनुशासन और मधुरी कोटक यह दो महत्वपूर्ण संबल रहे ।उनकी मेहनत ने और उनके समर्थन से इसकी नींव मजबूत बनी। प्रथम महिला फोटोग्राफर होमाई व्यारावाला के बाद महिला फोटोग्राफर जगत में जानामाना नाम है, मधुरी कोटक । उन्होंने पति की मौजूदगी में ही “बीज” और “जी” फिल्म मैगज़ीन के लिए अपना अमूल्य योगदान दिया, और इन साम्यिको के संपादन,और प्रकाशन कार्य में भी जुडी रही। इन तीनों मैगज़ीन में उनके द्वारा खींची गई तस्वीरें छपती थी।पत्रकारत्व के उनके इस साहस को कवि, लेखक और सीने पत्रकार विजय गुप्त मौर्य, वेणिभाई पुरोहित, हसित बुच, और हरकिशन मेहता का भरपूर सहकार मिला। प्रसिद्ध लेखक हरकिशन मेहता को उपन्यास लिखने के लिए प्रेरणा और प्रोत्साहन उन्होंने दिया। उसके बाद हरकिशन मेहता की सिद्धि अपने आप में एक इतिहास है।
वर्ष 2001में “वजू कोटक_ व्यक्ति,पत्रकार,लेखक”और “वजू कोटक नो वैभव ” पुस्तकों का उन्होंने संपादन किया। चित्रलेखा गुजराती और मराठी दो भाषाओं में प्रकाशित होती है, जिसकी साप्ताहिक बिक्री 2,50,000 प्रति प्रति है। रामायण और महाभारत सीरियल विषय पर मासिक विशेषांक ” जी” के गुजराती संस्करण की 1,40,000 प्रतियों की बिक्री, और मराठी संस्करण की 1,50,000 प्रति की बिक्री हुई थी। “जी” के रजतजयंती अंक के लिए 1983 में भारत सरकार के सूचना प्रसारण मंत्रालय की ओर से गुजराती प्रकाशक के तौर पर प्रथम राज्य पुरस्कार और उसी अंक के लिए चित्रलेखा को मुद्रक की श्रेणी में प्रथम राज्य पुरस्कार प्राप्त हुआ था।
मधुरी बेन कोटक आज हमारे बीच नहीं है, लेकिन उनके कार्य और चित्रलेखा, बीज,और जी की प्रसिद्धि और तीनो मैगजीन के प्रति उनकी निष्ठा में वे हरदम जिंदा रहेंगी। वीएनएम परिवार उन्हें हार्दिक श्रद्धांजलि देता है।
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