N. Chandrababu Naidu: चंद्राबाबू नायडू एक अति महत्त्वाकांक्षी शख्शियत के रूप में आंध्रप्रदेश की राजनीति के फलक पर उभरे। आज जब नरेंद्र मोदी, नीतीश कुमार और चंद्राबाबू के सहारे से सरकार बनायेंगे ऐसे में चंद्रबाबू की शख्सियत जानने की उत्सुकता सब में रहती है।
लोकसभा 2024 के चुनाव के बाद जनता ने जो करवट ली है, उसको देखते हुए पूर्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पुनः सरकार बनाने के लिए नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू का सहारा लेना पड़ रहा है। अब मोदी को हर फैसले पर उनकी मंजूरी की मोर की जरूरत पड़ेगी। अब TDP और JDU कौनसी मोटी मोटी मांगे रखेंगे यह जल्द पता चलेगा। खैर यह तो हुई राजनीतिक समीकरणों की बात… लेकिन आंध्र प्रदेश के सर्वेसर्वा चंद्रबाबू कैसे बने, यह भी अपने आप में एक कहानी है।
चंद्रबाबू नायडू को अति महत्वाकांक्षी राजनीतिज्ञ के रूप में देखा जाता है। आंध्र प्रदेश के राजनीतिक तख्ते पर दो दशकों से वह गेम प्लेयर रहे हैं। 1970 के दशक में वे कांग्रेस से जुड़े और 28 वर्ष की उम्र में 1978 में विधानसभा परिषद में चुने गए। इमरजेंसी के दौरान वे संजय गांधी के समर्थक थे। उनके महत्वाकांक्षी होने की बात पर यदि गौर किया जाए तो सन् 1970 के दशक में कांग्रेस से जुड़कर उन्होंने कांग्रेस से वफादारी की बात करते हुए, मौका देखकर अपने ससुर एन टी रामा राव की तेलुगू देशम पार्टी में जुड़ गए थे। दामाद के तौर पर उन्हें वहां पर बहुत ही सम्मान मिला। वे पार्टी की अधिकतर काम देखते थे। लेकिन, TDP में उन्हें अपना भविष्य नजर नहीं आया, क्योंकि एन टी रामाराव का दबदबा था। और सन् 1995 में उन्होंने अपने ससुर एन टी रामा राव के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। और पार्टी में अफरा तफरी मचा दी।
उन्होंने एन टी रामा राव की दूसरी पत्नी पार्वती को टारगेट बनाते हुए पार्टी पर उनके जोर का आरोप लगाया। उनके इस बलवे में उनके साथ कई विधायक जुड़े ।और समाधान के रोज तौर पर अंततः पार्वती को पार्टी से हटा दिया गया। बाद में उन्होंने बाकी विधायकों के साथ मिलकर ऐसा गेम खेला, कि वे तेलुगू देशम पार्टी के नेता के रूप में चुने गए। उन्होंने पार्टी को मजबूत बनाने का काम शुरू कर दिया। और आखिरकार तेलुगु देशम पार्टी के स्थापक एन टी रामा राव को हटाकर स्वयं मुख्यमंत्री बन गए। उनके आने के बाद उनकी पार्टी को 1996 लोकसभा में 16 बैठकें मिली, और 1999 में यह आंकड़ा 29 तक पहुंचा। 29 बैठकों के चलते केंद्र में भी उनका दबदबा शुरू हुआ। सन् 1999 से 2004 तक वे NDA से जुड़े रहे।
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उन्होंने हैदराबाद के विकास के लिए बहुत काम किया, और हैदराबाद को आईटी हब बना दिया। माइक्रोसॉफ्ट और इन्फोसिस जैसी कंपनियों ने हैदराबाद पर अपनी मीठी नजर की। गवर्नेंस और रूरल डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स भी उन्होंने शुरू किये। 1999 में टाइम मैगजीन ने उन्हें “साउथ एशियन ऑफ द ईयर” के खिताब से नवाजा।वर्ष 2023 में उन्हें स्किल डेवलपमेंट स्कैम में गिरफ्तार किया गया।
इस बार यानी 2024 में हुए लोकसभा चुनावों में भी उनकी पार्टी ने 16 सीट्स जीती है ,और एक बार फिर वे किंग मेकर के रूप में उभर कर सामने आए। उन्होंने विपक्ष गठबंधन में जुड़ने के आमंत्रण को ठुकराकर मोदी का साथ निभाया। वहीं नीतीश कुमार की JDU पार्टी को भी 12 बैठक मिली है, इन दोनों की कुल 28 बैठकें सरकार बनाने में महत्वपूर्ण है। इस प्रकार फिलहाल दोनों NDA में किंग मेकर की स्थिति में आ गए हैं।
एक ओर जहां नरेंद्र मोदी के भाषणों में मुस्लिम विरोधी निवेदन थे, वही चंद्रबाबू नायडू ने इस चुनाव में मुसलमानों को बड़े-बड़े वचन दिए। जैसे ओबीसी आरक्षण में मुसलमानों को 4% अनामत, मस्जिदों को प्रति माह ₹5000, इमाम को प्रतिमा ₹10,000, 50 वर्ष से उपर की उम्र वाले मुसलमानों को प्रति माह पेंशन, हर शहर हर गांव में ईदगाह और कब्रिस्तान के लिए जमीन, मुसलमानों को ₹1,00,000 की हज सब्सिडी, और ₹5,00,000 की बिना ब्याज की लोन, के साथ कारपोरेशन को प्रतिवर्ष 100 करोड़ मुसलमानों को फंड देने जैसी बातें शामिल है।
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वैसे यह बात अलग है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस अनामत को लेकर कहा कि धर्म के आधार पर किसी को आरक्षण नहीं दिया जा सकता। तो दूसरी ओर मोदी प्रत्येक भारतीय को समान हक, एक देश एक कानून, एक देश एक चुनाव की बात करते है। मुस्लिम महिलाओं को तलाक शब्द से बचाने कानून बनाया। अमित शाह ने कहा था कि यदि भाजपा की सरकार बनेगी तो वे तेलंगाना में आरक्षण रद्द करेंगे। लेकिन, फिलहाल तो फोकस है आंध्रप्रदेश के चंद्रबाबू नायडू पर। अब एसी स्थिति में चंद्राबाबू नायडू का समर्थन नई सरकार को किस करवट पर बैठने के लिए मजबूर करेगा, यह बहुत जल्द पता चलेगा।
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