25 Mar. Mumbai: महाराष्ट्र में चल रहे सियासी घमासान के बीच एक बड़ी खबर सामने आयी है। महाराष्ट्र में चल रहे 100 करोड़ की वसूली, ट्रांसफर के नाम पर रिश्वतखोरी और विपक्ष के 100 सवालों में अब घिरी हुई महा विकास अघाड़ी सरकार पर विपक्ष का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है। राजनीतिक जानकारों की मानें तो राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की सियासी बिसात लगभग बिछाई जा चुकी है। 2 मई को पश्चिम बंगाल समेत पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम की घोषणा के साथ ही सूबे में कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर राष्ट्रपति शासन लगवाने की भाजपा की कोशिश है।
जानकार मानते हैं कि यही कारण है कि भाजपा लगातार विभिन्न मुद्दों को उठाकर राज्य में कानून-व्यवस्था के खराब होने का माहौल तैयार करने में लगी हुई है।
प्लान ‘A’ फेल होने के बाद राष्ट्रपति शासन पर अमल
भाजपा के भरोसेमंद सूत्रों का कहना है कि दरअसल भाजपा का प्लान ‘A’ यानी अजित पवार को फिर से भाजपा के साथ लाने का उनका प्रयास विफल होता नजर आ रहा है। भाजपा को लग रहा था कि अजित पवार NCP विधायकों के बड़े खेमे को तोड़कर पार्टी से अलग हो जाएंगे।
NCP सुप्रीमो शरद पवार के पास सिर्फ 7-8 विधायक ही बचेंगे। ऐसे में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की सरकार अल्पमत में आ जाएगी और भाजपा विधानसभा में NCP के बागी विधायकों की मदद से किसी तरह बहुमत साबित कर सरकार बना लेगी। लेकिन शरद पवार की महाराष्ट्र पर कड़ी नजर और उनकी सख्ती के चलते NCP में टूट होने के आसार अब कम हैं। यही वजह है कि भाजपा ने प्लान ‘B’ पर काम करना शुरू किया है।
मध्यावधि चुनाव कराने की योजना
भाजपा के सूत्रों का कहना है कि सचिन वझे प्रकरण की वजह से NCP की छवि एक बार फिर सिंचाई घोटाले की तरह धूमिल हो गई है। इसलिए अब भाजपा रणनीतिकार NCP के साथ सरकार बनाने के पक्षधर नहीं हैं। ऐसे में भाजपा को महाराष्ट्र में पहले राष्ट्रपति शासन लगवाने और फिर मध्यावधि चुनाव कराने का रास्ता सही लग रहा है।
सुधीर मुनगंटीवार को प्रदेशाध्यक्ष बनाने की भी तैयारीयां चल रही हैं
भाजपा मध्यावधि चुनाव से पहले प्रदेशाध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल के स्थान पर पूर्व वित्त मंत्री सुधीर मुनगंटीवार को प्रदेशाध्यक्ष बनाने पर गंभीरता से विचार कर रही है। हालांकि, भाजपा की ओर से अभी भी देवेंद्र फडणवीस ही मुख्यमंत्री पद के चेहरे होंगे। अगर मुनगंटीवार की अध्यक्षता में पार्टी चुनाव लड़कर सरकार बनाने में सफल होती है, तो उन्हें केंद्र में मंत्री बनाए जाने की योजना है। ध्यान रहे कि महाराष्ट्र के सियासी गलियारे में फडणवीस को भी केंद्र में भेजने की चर्चा लंबे अर्से से चली आ रही है।
2019 के विधानसभा चुनाव में BJP को सबसे ज्यादा 105 सीटें मिली थीं
महाराष्ट्र में 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने शिवसेना के साथ और कांग्रेस ने NCP के साथ मिलकर लड़ा था। इस चुनाव में भाजपा को 105, शिवसेना को 56, NCP को 54 और कांग्रेस को 44 सीटें मिली थीं। किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं था।
शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने भाजपा के वरिष्ठ नेताओं को मातोश्री बंगले पर स्व. बालासाहेब ठाकरे के कमरे में किए गए वादों की दुहाई देते हुए ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री पद शिवसेना को देने के लिए दबाव बनाना शुरू किया था, लेकिन बात नहीं बनीं तो ठाकरे ने शरद पवार और सोनिया गांधी के साथ मिलकर राज्य में महाविकास आघाड़ी की सरकार बनाई।
महाराष्ट्र में कब-कब लगा राष्ट्रपति शासन
महाराष्ट्र में पहली बार राष्ट्रपति शासन 1980 में लगा था। तब महाराष्ट्र के राज्यपाल सादिक अली थे और सूबे में शरद पवार की अगुआई वाली पुरोगामी लोकशाही दल (पुलद) की गठबंधन सरकार थी। इस सरकार में जनता दल और कांग्रेस (इंदिरा) से टूटे लगभग 12 विधायक पवार के साथ सरकार में थे। तब 17 फरवरी से 9 जून 1980 तक महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन था। इसके बाद राज्य सरकार बर्खास्त कर मध्यावधि चुनाव कराया गया था।
महाराष्ट्र में दूसरी बार राष्ट्रपति शासन 2014 में लगा। इस बार भी शरद पवार राजनीतिक केंद्र बिंदु थे, क्योंकि पृथ्वीराज चव्हाण के नेतृत्व में चल रही कांग्रेस-राकांपा गठबंधन सरकार से पवार की पार्टी राकांपा ने समर्थन वापस ले लिया था। राज्य में तब 32 दिन तक 28 सितंबर 2014 से 31 अक्टूबर 2018 तक राष्ट्रपति शासन था।
महाराष्ट्र में तीसरी बार राष्ट्रपति शासन वर्तमान राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की सिफारिश पर 12 नवंबर 2019 से 23 नवंबर 2019 तक लगा था।
अब फिर यही कुछ मंज़र महाराष्ट्र में एक और बार देखने को मिल सकता है। महाराष्ट्र में चल रहे सियासी उठापटक के बीच आखिर कौन जीतता है उसकी तस्वीर भी बहुत ही जल्द साफ़ हो जाएगी।
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