म्यूकोर्मिकोसिस की बढ़ती मरीजों की संख्या के बीच, कोरोनोवायरस के साथ-साथ जो लोग ठीक हो गए हैं, उनमें एस्परगिलोसिस के मामले सामने आने शुरू हो गए हैं। महाराष्ट्र के मुंबई और उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में एस्परगिलोसिस के मरीज़ पाए गए हैं।
एस्परगिलोसिस; एस्परगिलस के कारण होने वाला एक संक्रमण है, पर्यावरण से सूक्ष्म एस्परगिलस बीजाणुओं में सांस लेने से लोग एस्परगिलोसिस के चपेट में आ सकते है। यह ब्लैक फंगस से कुछ कम खतरनाक मगर समान लक्षणों वाला होता है। इसका इलाज भी कुछ अलग होता है। ब्लैक फंगस के रोगियों को दिए जाने वाले इंजेक्शन आदि राहत नहीं दे पाते हैं।
ब्लैक और व्हाइट फंगस की अपेक्षा में यह थोड़ा कम खतरनाक है। लेकिन इसमें अन्य फंगस संक्रमण की तरह इलाज नहीं होता। ब्लैक फंगस में एंफोटेरेसिन-बी इंजेक्शन का प्रयोग किया जाता है। इसमें ‘बोरी ‘कोनोजोल’ टेबलेट का इस्तेमाल किया जाता है।
दरअसल यह व्हाइट फंगस का एक स्वरूप है। व्हाइट फंगस के दो रूप होते हैं। कैंडिंडा और एस्परजिलस। कैंडिंडा घातक होता है जिससे त्वचा में इन्फेक्शन, मुंह में छाले, छाती में संक्रमण, अल्सर जैसी समस्या हो सकती है। एस्परजिलस कम घातक है। इसका संक्रमण फेफड़ों, सांस नली, आंख की कार्निया को प्रभावित करता है। इससे अंधत्व का खतरा रहता है।
एस्परगिलोसिस के लक्षण क्या हैं?
विभिन्न प्रकार के एस्परगिलोसिस अलग-अलग लक्षण पैदा कर सकते हैं। एलर्जी ब्रोंकोपुलमोनरी एस्परगिलोसिस (एबीपीए) के लक्षण अस्थमा के लक्षणों के समान हैं, जिनमें घरघराहट, सांस की तकलीफ, खांसी और बुखार शामिल हैं।
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