IPS अरुण बोथरा आज कल ट्वीटर पर बहुत एक्टिव रहते हैं। हालही में उन्होंने सड़क के किनारे लगे एक पोस्टर को ट्वीट करके कुछ ऐसे शब्द लिख दिए जिसके बाद वो अब मुख्य चर्चा का विषय बन गए हैं।
दरअसल जो तस्वीर अरुण बोथरा ने ट्वीट की वो किसी दीवार पर बना एक पोस्टर था। जिसमें एक बच्ची रोटी बेलती हुई दिख रही थी। और लिखा था, “कैसे खाओगे उनके हाथ की रोटियां, जब पैदा ही नहीं होने दोगे बेटियां।”
इस पोस्टर से बेटी बचाने का मैसेज जाए न जाए, ये मैसेज जरूर जा रहा है कि बेटी का जन्म रोटी बनाने के लिए ही होता। जिसे देख आईपीएस अरुण बोथरा का कुछ अलग ही अंदाज सामने आया था।
जिसके बाद मानों लोगों के कमेंट्स की बारिश सी शुरू हो गई थी। कुछ लोगों ने इस ट्वीट के खिलाफ कुछ बाते बोलीं तो कुछ ने इनके साथ जाके। लेकिन इतना तो तय है की जिन लोगों को इस तस्वीर में कुछ गलत नहीं नजर आया था उनको एक बार दोबारा सोचने समझने की जरूरत है।
लेकिन गौर से देखेंगे तो इसके पीछे औरत को रसोई तक समेटकर रखने वाली सोच नज़र आती है। वो सोच जिसमें लोग मान बैठे हैं कि घर संभालना, चूल्हा-चौका केवल औरत का काम है। वो सोच जो कहती है कि लड़की आएगी नहीं तो तुम्हारे काम करके कौन देगा?
तमाम जगहों में ऐसा साबित हो चुका है कि औरतें जितना काम करती हैं, उसके बदले अगर उन्हें पैसे देने पड़ें, तो तमाम देशों की जीडीपी उनके काम के आगे बौनी पड़ जाएगी। लेकिन इसके बाद भी उनके काम की कद्र नहीं की जाती है। रसोई को उसकी ही जिम्मेदारी बना दिया जाता है। और ये जिम्मेदारी केवल हाउस वाइव्स के जिम्मे नहीं आती, दफ्तर जाने वाली औरतों के सिर भी आती है। बदले में मदर्स डे, सिस्टर्स डे, डॉटर्स डे, गर्ल चाइल्ड डे… तो हम मनाते ही हैं।
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