17 Feb. Vadodara: मध्य प्रदेश के सीधी बस हादसे में कई परिवारों को कभी न मिटने वाला गहरा जख्म मिला है। हादसे में मरने वालों की संख्या अब 51 हो चुकी है। मंगलवार रात तक 47 शव मिले थे। बुधवार को 4 शव और मिले, जिसमें 5 महीने की बच्ची का शव रीवा में मिला। 3 लापता लोगों की तलाश अभी भी जारी है। इस बीच, आज मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान घटनास्थल पर पहुंचेंगे। वे पीड़ित परिवारों से भी मुलाकात करेंगे।
बस चालक को देर रात किया गिरफ्तार
रीवा के सिमरिया निवासी बस ड्राइवर 28 साल के बालेंद्र विश्वकर्मा को पुलिस ने मंगलवार देर रात गिरफ्तार कर लिया। ड्राइवर ने पूछताछ में पुलिस को बताया कि उसका एक ड्राइविंग लाइसेंस हादसे में बह गया जबकि दूसरा लाइसेंस रीवा में है, वही गाड़ी के दस्तावेज सतना में है। इसके बाद बालेंद्र के ड्राइविंग लाइसेंस और बस के डॉक्यूमेंट्स के लिए दो टीमें रीवा और सतना भेजी गई हैं।
पुलिस ड्राइवर से यह पता करने में जुटी है कि क्या वह पहले भी ओवरलोड कर बस चलाता था? ASP अंजूलता पटले के मुताबिक, बस में कुल 63 यात्री सवार थे। इनमें से तीन यात्री हादसे से पहले ही बस से उतर गए थे। वहीं 60 यात्रियों में छह की जान बचाई जा चुकी है।
नहर में पलटने वाली सीधी-सतना रूट की बस MP-19P 1882 में कुल 33 स्थानों से 60 लोग सवार हुए थे। इसमें सबसे ज्यादा रामपुर नैकिन, कुसमी और बहरी वेलहा से 3-3, बाकी आसपास के गांवों में रहने वाले थे। बस हादसे में जिंदा बच गए लोगों के लिए यह किसी चमत्कार से कम नहीं हैं। इस बड़े हादसे में छह लोगों को उनके जज्बे ने बचा लिया। इसमें तीन पुरुष और तीन युवतियां शामिल हैं। इस दौरान बहादुर बेटी शिवरानी और उसके परिजन ने इन छह लोगों को बचाने में गजब की हिम्मत और जज्बा दिखाया। इसमें से अधिकतर 200 से 500 मीटर तक बह गए थे।
इन 6 लोगों को बचाया गया
स्वर्णलता प्रभा (24), विभा प्रजापति- (21), अर्चना जायसवाल (23), सुरेश गुप्ता (60), ज्ञानेश्वर चतुर्वेदी (50) और अनिल तिवारी (40)
मौत की नहर से निकल कर मिला ज़िंदगी का वरदान
अनिल तिवारी ने बताया, ‘जैसे ही बस नहर में डूबने लगी, बस की बंद खिड़की को जोर से हाथ मारा, जिससे कांच टूट गया। मुझे तैरना आता था। बगल में बैठे सुरेश गुप्ता को बचाने की कोशिश की और उनका हाथ पकड़कर खिड़की से बाहर खींच लिया।’ सुरेश गुप्ता 62 वर्ष के हैं, तैरना भी कम जानते थे, लेकिन दोनों ने एक-दूसरे का हाथ पकड़कर नहर का किनारा पकड़ लिया। करीब 300 मीटर दूर जाकर एक पत्थर मिला, जिसके सहारे दोनों अपनी जान बचा पाए।
कुछ इस तरह बचाई खुद की जान
ज्ञानेश्वर चतुर्वेदी बस में सामने के कांच से आगे की ओर देख रहे थे। जैसे ही बस नहर में गिरने लगी तो उन्होंने खिड़की के कांच में पैर मारा और पानी में कूद गए। गनीमत यह रही कि वे बस के किसी हिस्से में नहीं फंसे। देखते ही देखते उनकी आंखों के सामने ही बस धीरे धीरे डूब गई। वे नहर का किनारा पकड़कर तैरने लगे। तभी एक सीढ़ी मिली, जिसे पकड़कर ऊपर आए।
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