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Monday, May 5   5:14:34

शहीद लेफ्टिनेंट विनय नरवाल की पत्नी हिमांशी के बयान पर विवाद ; ‘हमें न्याय चाहिए, नफरत नहीं’………. NCW और ओवैसी ने किया समर्थन

पहलगाम आतंकी हमले में अपने पति को खो चुकीं लेफ्टिनेंट विनय नरवाल की पत्नी हिमांशी इन दिनों सोशल मीडिया पर चर्चा का केंद्र बनी हुई हैं। दरअसल, 1 मई को हिमांशी ने एक बयान दिया था जिसमें उन्होंने साफ कहा कि आतंकवादी घटना के बाद मुस्लिम और कश्मीरी समुदाय के खिलाफ नफरत फैलाना गलत है। उन्होंने यह भी कहा, “हमें न्याय चाहिए, पर नफरत नहीं। जो दोषी हैं, उन्हें सजा मिलनी चाहिए, पर पूरे समुदाय को दोष देना अनुचित है।”

उनके इस बयान के बाद जहां कुछ लोगों ने उनकी सोच की तारीफ की, वहीं सोशल मीडिया पर उन्हें भारी ट्रोलिंग और अभद्र टिप्पणियों का सामना करना पड़ा। इस पर राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) ने सख्त प्रतिक्रिया दी और हिमांशी के समर्थन में बयान जारी किया। आयोग ने कहा कि किसी भी महिला को उसके व्यक्तिगत विचार या भावनात्मक अभिव्यक्ति के लिए ट्रोल करना न केवल गलत, बल्कि निंदनीय है।

महिला आयोग की प्रमुख टिप्पणियाँ

  1. किसी महिला को उसकी अभिव्यक्ति पर ट्रोल करना दुर्भाग्यपूर्ण है।

  2. किसी महिला के निजी जीवन को आधार बनाकर उसे अपमानित करना पूरी तरह से अस्वीकार्य है।

सोशल मीडिया पर नफरत भरे कमेंट्स

हिमांशी को लेकर कुछ लोगों ने बेहद आपत्तिजनक बातें लिखीं। किसी ने उन्हें “पब्लिसिटी पाने वाली महिला” कहा तो किसी ने तो यहां तक कह दिया कि “उसे भी गोली लगनी चाहिए थी।” कईयों ने यह सवाल उठाया कि वह “इतनी सामान्य” कैसे दिख रही थीं, जबकि उन्होंने अपने पति को अपनी आंखों के सामने खोया।

ओवैसी और कई लोगों का समर्थन

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने हिमांशी के बयान का समर्थन करते हुए कहा, “आतंकवादियों ने हिमांशी की जिंदगी तबाह कर दी, लेकिन फिर भी उन्होंने इंसानियत और एकता की बात की। उनके शब्दों को सरकार को याद रखना चाहिए।” ओवैसी ने यह भी कहा कि जो लोग नफरत फैला रहे हैं, वही आतंकियों के असली मददगार हैं।

विनय नरवाल का अंतिम संस्कार: एक भावनात्मक दृश्य

22 अप्रैल को हुए आतंकी हमले में विनय नरवाल शहीद हो गए थे। उनका अंतिम संस्कार 23 अप्रैल को हुआ। इस दौरान हिमांशी ने पति को सैल्यूट किया और बहन ने उन्हें कंधा दिया। दिल्ली एयरपोर्ट पर हिमांशी अपने पति के पार्थिव शरीर से लिपट कर बिलख पड़ी थीं। यह दृश्य देशवासियों की आंखों को नम कर गया।

हिमांशी ने जो कहा, वह न केवल साहसिक है बल्कि हमारे समाज के लिए एक आईना भी है। ऐसे समय में जब नफरत और पूर्वाग्रह हमारे सामाजिक ताने-बाने को कमजोर कर रहे हैं, हिमांशी जैसी आवाजें उम्मीद की किरण हैं। उनके बयान में न कोई राजनीतिक एजेंडा है, न कोई स्वार्थ—बल्कि एक दुखी पत्नी की इंसानियत की पुकार है।