जम्मू-कश्मीर की खूबसूरत वादियों में बसे पहलगाम की बैसरन घाटी, जो अब तक अपनी शांति, हरियाली और घुड़सवारी के लिए जानी जाती थी, अब गोलियों की गूंज से दहल उठी है। मंगलवार दोपहर को आतंकवादियों ने पर्यटकों के एक समूह पर अंधाधुंध फायरिंग कर दी, जिसमें एक राजस्थानी पर्यटक की मौके पर ही मौत हो गई। मृतक के सिर में गोली लगी थी। इस हमले में 5 अन्य लोग घायल हुए हैं, जिनमें कुछ स्थानीय लोग भी शामिल हैं।
स्थानीय प्रशासन और सुरक्षा एजेंसियों ने पूरे इलाके की घेराबंदी कर सर्च ऑपरेशन शुरू कर दिया है। हमला उस वक्त हुआ जब पर्यटक घोड़े की सवारी कर रहे थे। एक महिला ने पीटीआई को फोन कर बताया कि उसके पति को सिर में गोली लगी है, लेकिन उसने अपनी पहचान उजागर नहीं की।
घाटी का दर्द: हमले की तस्वीरें और भयावहता
हमले के तुरंत बाद घायलों को एंबुलेंस की सहायता से अस्पताल पहुंचाया गया। घटनास्थल पर सुरक्षाबलों की भारी तैनाती कर दी गई है और बैसरन घाटी को पूरी तरह से सील कर दिया गया है।
एक समय में जिस घाटी में कैमरों की क्लिक और बच्चों की हंसी सुनाई देती थी, वहां अब सन्नाटा और डर पसरा हुआ है।
पिछले कुछ दिनों में आतंक की लहरें तेज
यह हमला उस लंबी श्रृंखला का हिस्सा है जिसमें हाल ही में जम्मू-कश्मीर के कई हिस्सों में आतंकी गतिविधियां बढ़ी हैं:
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12 अप्रैल: जम्मू के अखनूर में मुठभेड़ के दौरान 9 पंजाब रेजिमेंट के JCO कुलदीप चंद शहीद हुए।
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11 अप्रैल: किश्तवाड़ जिले में सुरक्षाबलों ने जैश-ए-मोहम्मद के 3 आतंकियों को मार गिराया।
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4-5 अप्रैल: LoC के पास BSF ने पाकिस्तानी घुसपैठिए को ढेर किया।
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कठुआ में मार्च के महीने में तीन मुठभेड़ें, जिनमें SOG के चार जवान शहीद हुए और कई घायल हुए।
आतंकवाद बनाम पर्यटन – एक कठिन लड़ाई
जम्मू-कश्मीर के लिए पर्यटन न सिर्फ रोजगार का मुख्य स्रोत है, बल्कि यह क्षेत्र की सकारात्मक छवि को पुनर्स्थापित करने का भी माध्यम है। ऐसे में इस तरह के हमले न केवल निर्दोष लोगों की जान लेते हैं, बल्कि पूरे पर्यटन उद्योग को भी झटका देते हैं।
आतंक का यह चेहरा बेहद कायराना है, जो उन लोगों को निशाना बना रहा है जो वादियों में सुकून और सैर-सपाटे के लिए आए थे। यह हमला मानवता पर हमला है।
सरकार और सुरक्षा एजेंसियों को चाहिए कि वे घाटी में शांति बनाए रखने के साथ-साथ आतंक की हर कड़ी को जड़ से उखाड़ने का काम करें। स्थानीय लोगों को भी इसमें सहयोग करना होगा, क्योंकि आतंक का अंत तभी होगा जब समाज एकजुट होकर इसका विरोध करेगा।
बैसरन घाटी का यह काला दिन हमें याद दिलाता है कि जब तक आतंकवाद की जड़ें पूरी तरह से नहीं उखाड़ी जातीं, तब तक न कश्मीर पूरी तरह सुरक्षित है और न वहां आने वाले पर्यटक।
आइए, एकजुट हों – न सिर्फ आतंक के खिलाफ, बल्कि उस उम्मीद के लिए भी, जो हमें एक शांत, सुंदर और सुरक्षित कश्मीर की ओर ले जाए।
“कश्मीर हमारा है, और हम उसे आतंकियों से नहीं हारने देंगे!”

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