महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में निलंबित पुलिस सब-इंस्पेक्टर रंजीत कासले द्वारा लगाए गए ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) से संबंधित आरोपों ने एक नया विवाद खड़ा कर दिया है। कासले ने दावा किया कि परली में ईवीएम से छेड़छाड़ की गई थी, जिसके कारण उन्हें ड्यूटी से हटाया गया और बाद में उनके बैंक खाते में 10 लाख रुपये की रकम जमा कर दी गई। यह मामला तब सामने आया जब कासले ने आरोप लगाया कि उन्हें इस घटना से जुड़ी जानकारी देने के कारण परेशान किया गया।
कासले के आरोप: क्या है सच्चाई?
रंजीत कासले ने दावा किया कि चुनाव के दौरान परली में ईवीएम से छेड़छाड़ हो रही थी। कासले का कहना था कि एक व्यक्ति, वाल्मीक कराड, ने उन्हें इस बारे में आगाह किया था कि ईवीएम के साथ गड़बड़ी की जा रही है। इसके बाद कासले ने लोकसभा चुनाव में फर्जी मतदान को रोकने की कोशिश की थी। उनका आरोप था कि विधानसभा चुनाव के दौरान, जब एनसीपी विधायक धनंजय मुंडे की नकदी जब्त की गई, तो उन्हें ड्यूटी से हटा दिया गया और बाद में उनके खाते में 10 लाख रुपये की राशि ट्रांसफर कर दी गई।
चुनाव आयोग का जवाब: गंभीर आरोपों को नकारा
चुनाव आयोग ने कासले के आरोपों को पूरी तरह खारिज कर दिया। आयोग ने कहा, “यह आरोप एक असंतुष्ट पुलिस अधिकारी द्वारा लगाए गए हैं। चुनाव प्रक्रिया के दौरान ईवीएम को बेहद कड़ी सुरक्षा में रखा जाता है और उनके साथ किसी प्रकार की छेड़छाड़ की संभावना न के बराबर है। इस मामले की गंभीरता को देखते हुए, हमने संबंधित अधिकारियों से रिपोर्ट मांगी है, और इस रिपोर्ट के आधार पर उचित कार्रवाई की जाएगी।”
चुनाव आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि कासले चुनाव के दौरान ड्यूटी पर नहीं थे। “उनके आरोपों का उद्देश्य केवल सार्वजनिक शांति और सौहार्द को भंग करना है। साथ ही, लोगों को राज्य के खिलाफ हिंसा के लिए उकसाने की कोशिश की जा रही है,” आयोग ने बयान जारी किया।
धनंजय मुंडे पर भी लगाए गंभीर आरोप
इसके अलावा, रंजीत कासले ने एनसीपी विधायक धनंजय मुंडे के खिलाफ भी एक गंभीर आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि मुंडे ने उन्हें और अन्य अधिकारियों को डराने के लिए कराड के एनकाउंटर का प्रस्ताव रखा था, ताकि वह खुद इस मामले में फंसने से बच सकें। कासले ने दावा किया कि मुंडे ने इस मुद्दे को सुलझाने के लिए करोड़ों रुपये की पेशकश की थी।
क्या है इस मामले में सच्चाई?
यह मामला अभी भी जांच के अधीन है, और चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि कासले के आरोपों को नजरअंदाज नहीं किया जाएगा। हालांकि, आयोग ने आरोपों के समर्थन में किसी भी ठोस प्रमाण का अभाव पाया है। कासले का दावा है कि उन्हें इन आरोपों के चलते हटा दिया गया और उनके खिलाफ मामले दर्ज किए गए, लेकिन उनके द्वारा दिए गए सबूतों के आधार पर इस समय यह एक विवादास्पद मामला बना हुआ है।
इस मामले में सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या वाकई कासले का आरोप सही है या फिर इसे एक निलंबित अधिकारी द्वारा बदले की भावना से फैलाया गया विवाद माना जाए? चुनावी प्रक्रिया में ईवीएम की सुरक्षा एक गंभीर विषय है और इस तरह के आरोपों से जनता में असमंजस और संदेह फैल सकता है। यदि कासले के आरोप सही हैं, तो यह निश्चित रूप से एक गंभीर मामला होगा, लेकिन फिलहाल चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया और शुरुआती जांच के आधार पर यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि आरोपों के पीछे कोई ठोस आधार है या नहीं।
आखिरकार, यह मामला जांच के अधीन है और सही निर्णय आने तक किसी भी तरह की निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दबाजी होगी।

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