नेपाल – एक बार फिर हिंदू राष्ट्र बनने की दहलीज़ पर?
काठमांडू की गलियों में भगवा झंडों की छांव, पशुपतिनाथ मंदिर के प्रांगण में धूनी रमाए साधु, और गूंजते नारे—“हिंदू राष्ट्र चाहिए”—अब नेपाल के राजनीतिक और सामाजिक वातावरण का अहम हिस्सा बन चुके हैं।
कभी दुनिया का एकमात्र हिंदू राष्ट्र रहा नेपाल, 2008 में राजशाही के अंत के बाद सेक्युलर हो गया था। लेकिन अब, एक बार फिर आवाज़ें बुलंद हो रही हैं—धार्मिक पहचान की पुनःस्थापना के लिए, और संभवतः राजशाही की वापसी के लिए भी।
पशुपतिनाथ मंदिर से उठती पुकार:धर्म की पुर्नस्थापना
नेपाल के सबसे पवित्र स्थल पशुपतिनाथ मंदिर के बाहर, शिला पर बैठे बाबा गंगादास का चेहरा तप और अनुभव की गवाही देता है। लंबे जटाजूट, मौन मुस्कान और गहरी दृष्टि—वे साधारण व्यक्ति नहीं, बल्कि नेपाल के पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह के आध्यात्मिक गुरु माने जाते हैं।
बाबा गंगादास का कहना है,
“राजा भी यही मानते हैं कि नेपाल को फिर से हिंदू राष्ट्र बनाना चाहिए। धर्म का पतन हो रहा है, अब समय है धर्म को फिर से स्थापित करने का।”
“मोदी-योगी चाहें, तो बन सकता है हिंदू राष्ट्र”
बाबा गंगादास के सहयोगी बाबा शिवदास और मंदिर में आए श्रद्धालुओं की भी यही मांग है—राजशाही की वापसी के साथ नेपाल को फिर से हिंदू राष्ट्र बनाना।
शिवदास कहते हैं,
“जब राजा था, तब एक ही आदमी खाता था। अब सब ‘खाने’ वाले हैं। मोदी-योगी चाहें तो हिंदू राष्ट्र बनाना कोई कठिन काम नहीं है।”
आम जनता से लेकर संगठनों तक—सबकी एक ही मांग
42 वर्षीय मिलन, जो काठमांडू में टूरिस्ट गाइड हैं, कहते हैं,
“हमने कभी भी सेक्युलर राष्ट्र की मांग नहीं की थी। हमने लोकतंत्र के लिए लड़ा था, न कि धर्म की बलि चढ़ाने के लिए।”
नेपाल की 80% से अधिक आबादी हिंदू है, और अब आम जनता, चाहे वे राजशाही समर्थक हों या नहीं, एक सुर में हिंदू राष्ट्र की मांग कर रही है।
धर्मांतरण के खिलाफ ‘घर वापसी’ अभियान
विश्व हिंदू महासंघ जैसे संगठन नेपाल में धर्मांतरण के खिलाफ मोर्चा संभाले हुए हैं। संगठन की वाइस प्रेसिडेंट ज्योत्सना साउद बताती हैं,
“मिशनरियों द्वारा धर्मांतरण की घटनाएं बढ़ रही हैं। हमने पिछले 3 महीने में 1800 लोगों की ‘घर वापसी’ करवाई है। अब लोग फिर से सनातन की ओर लौट रहे हैं।”
सोशल मीडिया बन रहा आंदोलन का नया हथियार
सोशल मीडिया पर भी हिंदू राष्ट्र के लिए अभियान चल रहा है। पुष्पराज पुरुष जैसे कार्यकर्ता फेसबुक पर लाखों फॉलोअर्स के जरिए लोगों को जोड़ रहे हैं।
उनका कहना है,
“नेपाल कभी हिंदू राष्ट्र था और रहेगा। सेक्युलर होने का निर्णय नेताओं ने विदेशी पैसे खाकर लिया, न कि जनता की मर्ज़ी से।”
राजनीतिक दलों की सोच क्या कहती है?
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नेपाली कांग्रेस: “हमारे सीनियर लीडर्स भी हिंदू राष्ट्र की बहाली के पक्ष में हैं।”
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नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (UML): “हम सेक्युलर हैं, लेकिन धर्मांतरण पर रोक जरूरी है।”
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राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी: “हिंदू राष्ट्र पर जनमत संग्रह होना चाहिए।”
विश्लेषक क्या कहते हैं?
राजनीतिक विश्लेषक संजीव हुमागेन के अनुसार,
“राजतंत्र और हिंदुत्व नेपाली राष्ट्रवाद की आत्मा रहे हैं। 2008 के बाद एक नई पहचान गढ़ने में असफलता से लोग अब पुरानी पहचान की ओर लौट रहे हैं।”
नेपाल में आज जो हो रहा है, वह केवल धर्म या राजनीति का मामला नहीं है—यह पहचान की तलाश है। वैश्वीकरण, धर्मांतरण, और राजनीतिक अस्थिरता के बीच, आम नेपाली यह महसूस कर रहा है कि उसकी सांस्कृतिक और धार्मिक जड़ें खोती जा रही हैं।
परंतु, इस राह पर चलते हुए यह भी ध्यान रखना होगा कि ‘हिंदू राष्ट्र’ के नाम पर किसी अल्पसंख्यक का दमन न हो। सनातन धर्म की आत्मा ‘सर्व धर्म समभाव’ है—और यदि नेपाल सच में फिर से हिंदू राष्ट्र बनता है, तो उसे इस मूल्य को हर हाल में बनाए रखना होगा।
नेपाल में उठती ये लहर अब सिर्फ मांग नहीं, एक आंदोलन बन चुकी है—राजा की वापसी हो या ना हो, लेकिन जनता अब अपने धार्मिक स्वाभिमान को फिर से स्थापित करना चाहती है।

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