“जब गुलाब की खुशबू भी सांप्रदायिक हो गई!”
धर्म के नाम पर व्यापार की साज़िश? भारत की सबसे ताक़तवर मार्केटिंग स्ट्रेटेजी क्या बन गई है “धर्म”
अब सवाल यह है क्या बाबा रामदेव ने गुलाब शरबत को हिंदू-मुस्लिम फ्रेम में ढालकर बेचना चाहा?
क्या हमारा बाज़ार अब सांप्रदायिकता की बोतल में बंद हो गया है?
गुलाब शरबत के पीछे छुपा ‘धार्मिक मार्केटिंग’ का खेल
एक साधारण-सा पेय अब सुर्खियों में है क्योंकि उसका प्रचार अब पेय से ज़्यादा ‘पोलराइज़ेशन’ बन गया है गुलाब की शीतलता पर चढ़ा हिंदू-मुस्लिम रंग अब एक नया सवाल खड़ा करता है ?
“क्या ब्रांड अब हमारी आस्था से खिलवाड़ कर रहे हैं?”
बाबा रामदेव ने कथित तौर पर अपने गुलाब शरबत को बेचने के लिए धार्मिक भाषा का इस्तेमाल किया, और यूट्यूबर Grok ने इस पूरे मुद्दे को उजागर कर दिया।
यह कोई सामान्य विवाद नहीं यह मानसिकता पर वार है
जब कोई ब्रांड आपको यह सोचने पर मजबूर कर दे कि एक प्रोडक्ट आपकी धार्मिक पहचान से जुड़ा है, तो समझिए कि यह सिर्फ एक व्यापार नहीं, एक “सामाजिक प्रयोग” है।
क्या ये मार्केटिंग है या माइंड मैनिपुलेशन?
क्या उपभोक्ता अब ‘कस्टमर’ नहीं बल्कि ‘कम्युनिटी टारगेट’ बन गए हैं?
भविष्य की चेतावनी अगर आज नहीं बोले, तो कल हर चीज़ ‘धर्म’ में बंट जाएगी
शरबत हिंदू होगा या मुस्लिम?
नमक राष्ट्रभक्त होगा या गद्दार?
क्रीम लगाने से पहले धर्म बताना पड़ेगा?
अगर हम चुप रहे, तो हमारी खरीदारी की टोकरी “धर्म-आधारित” हो जाएगी क्या हमें ऐसा समाज चाहिए?
“मजहब नहीं सिखाता व्यापार में चालाकी करना”अब समय है कि हम सवाल उठाएं और सोच बदलें”

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