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स्याही से सने वो पन्ने, खातों में भारत-पाकिस्तान के नेताओं के हस्ताक्षर… दिलचस्प है SBI के पहले मेन ब्रांच की कहानी

भारतीय स्टेट बैंक (SBI) का इतिहास जितना पुराना है, उतना ही रोमांचक भी। भारत के सबसे बड़े बैंक की पहली मेन ब्रांच की कहानी सिर्फ लेन-देन तक सीमित नहीं थी, बल्कि यह इतिहास के कुछ महत्वपूर्ण पलों का मूक गवाह भी रही। इन दीवारों ने भारत और पाकिस्तान के नेताओं के हस्ताक्षर देखे, बंटवारे के समय लोगों की पीड़ा को महसूस किया और देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की जिम्मेदारी भी निभाई।

जब स्याही से इतिहास लिखा गया…
1947 का वर्ष भारतीय उपमहाद्वीप के लिए निर्णायक था। एक ओर आज़ादी की खुशियाँ थीं, तो दूसरी ओर बंटवारे की पीड़ा। भारत और पाकिस्तान के बीच वित्तीय समझौतों को अंतिम रूप देने के लिए कई दस्तावेज़ तैयार किए गए, जिन पर हस्ताक्षर भी हुए। SBI की पहली मेन ब्रांच उन दस्तावेजों की साक्षी बनी, जिन पर भारत और पाकिस्तान के नेताओं ने अपने हस्ताक्षर किए।

यह वही बैंक था, जिसने 1947 में पाकिस्तान को 75 करोड़ रुपये (उस समय की बड़ी राशि) ट्रांसफर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। महात्मा गांधी ने शांति और समझौते के लिए इस राशि को देने का समर्थन किया था, हालांकि उस समय इस पर काफी विवाद भी हुआ !

बैंकिंग का केंद्र, जो इतिहास का हिस्सा बना SBI की पहली मेन ब्रांच सिर्फ पैसों का लेन-देन करने वाली जगह नहीं थी, बल्कि यह देश के विकास और आर्थिक मजबूती का गवाह भी बनी। बैंक में बड़े-बड़े उद्योगपतियों के खाते थे, जिन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था को नया स्वरूप दिया। 1955 में जब इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया को बदलकर भारतीय स्टेट बैंक बनाया गया, तब इसकी शाखाओं ने देश के कोने-कोने में बैंकिंग सुविधाओं को पहुँचाने की जिम्मेदारी उठाई।

कुछ अनसुने किस्से और तथ्य:

1. बंटवारे के दौरान बैंकिंग अफरा-तफरी – 1947 के दौरान लाखों लोग भारत और पाकिस्तान के बीच पलायन कर रहे थे। कई लोग अपनी सारी जमा-पूंजी निकालकर सुरक्षित जगहों पर ले जाना चाहते थे। SBI की पहली मेन ब्रांच ने उन दिनों में भारी भीड़ देखी थी।

2. पहला डिजिटल ट्रांजैक्शन – SBI की पहली मेन ब्रांच ने 1990 के दशक में कंप्यूटरीकृत बैंकिंग की शुरुआत की थी, जो भारत में डिजिटल बैंकिंग क्रांति का आधार बनी।

3. स्वतंत्र भारत के पहले उद्योगपतियों के खाते – SBI की मेन ब्रांच में टाटा, बिड़ला और अन्य बड़े उद्योगपतियों के खाते थे, जिन्होंने देश के औद्योगीकरण में योगदान दिया।

4. भारत-पाकिस्तान के बीच पहला आर्थिक समझौता – यह बैंक उन शुरुआती लेन-देन में शामिल था, जब भारत ने पाकिस्तान को उसकी हिस्सेदारी के पैसे ट्रांसफर किए थे।

आज भी बैंक की दीवारें इतिहास की कहानियाँ बयां करती हैं
SBI की पहली मेन ब्रांच आज भी अपने पुराने दस्तावेज़, हस्ताक्षरित कागजात और ऐतिहासिक रिकॉर्ड्स को संजोए हुए है। वहाँ आज भी कुछ पुराने लॉकर मौजूद हैं, जो बंटवारे के समय के हैं और जिन्हें कभी खोला नहीं गया।

बैंकिंग सिर्फ पैसों का खेल नहीं, बल्कि विश्वास और इतिहास का भी प्रतीक होती है। SBI की पहली मेन ब्रांच इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जो स्याही से सने पन्नों की कहानियाँ अपने भीतर समेटे हुए है।

यह लेख एक दिलचस्प ऐतिहासिक दृष्टिकोण से SBI की पहली मेन ब्रांच की कहानी को दर्शाता है। आपको यह कैसा लगा?