“हमारे बीच मतभेद हो सकते हैं, लेकिन विवाद नहीं होना चाहिए!” – यह शब्द हैं भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर के, जो भारत-चीन संबंधों की जटिलता को दर्शाते हैं। लेकिन क्या वाकई यह इतना आसान है? जब गलवान घाटी में टकराव हुआ था, तब भी कहा गया था कि बातचीत से समाधान निकलेगा, लेकिन हकीकत यह है कि दोनों देशों के बीच तनाव कभी खत्म नहीं होता – यह कभी धीमा पड़ता है, तो कभी भड़क उठता है।
भारत और चीन: दोस्ती या मजबूरी.?
भारत और चीन एशिया की दो महाशक्तियां हैं, लेकिन इनके रिश्ते हमेशा से तलवार की धार पर रहे हैं। एक तरफ आर्थिक संबंध, व्यापार और सांस्कृतिक जुड़ाव हैं, तो दूसरी तरफ सीमा विवाद, सैन्य तनाव और कूटनीतिक खींचतान जयशंकर का बयान एक सुलझे हुए राजनयिक का प्रतीक है, लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या चीन भी इसी सोच के साथ आगे बढ़ रहा है? ड्रैगन की चालें अक्सर उसकी बातों से मेल नहीं खातीं!
क्या अमेरिका भारत को घेरने की कोशिश कर रहा है?
अगर भारत-चीन की यह गूढ़ पहेली सुलझ भी जाए, तो एक और चौंकाने वाली खबर सामने आई – अमेरिका ने भारत पर एक गंभीर आरोप लगाया है! लेकिन सवाल यह है कि क्या अमेरिका सच में भारत के खिलाफ है, या फिर यह सिर्फ एक राजनीतिक चाल है?
अमेरिका और भारत के रिश्ते हाल के वर्षों में मजबूत हुए हैं, लेकिन विश्व राजनीति में कोई भी रिश्ता स्थायी दोस्ती या दुश्मनी पर नहीं चलता – यह सिर्फ हितों की लड़ाई होती है। तो क्या यह आरोप भारत पर दबाव बनाने का एक तरीका है?
भारत की विदेश नीति: दांव-पेंच का नया दौर!
भारत के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती है – ड्रैगन और ईगल के बीच संतुलन बनाए रखना! चीन की आक्रामक नीतियों से निपटना भी जरूरी है, लेकिन अमेरिका के साथ बढ़ती दोस्ती में संतुलन बनाए रखना भी आसान नहीं है।
यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में भारत की कूटनीति इन दोनों शक्तियों के साथ कैसा संतुलन बनाती है। क्या यह दोस्ती और मतभेदों के बीच की रस्साकशी है, या फिर एक नई रणनीति का संकेत? आने वाला समय ही बताएगा!

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